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Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 21 मई 2024 (15:57 IST)

प्रसिद्ध बौद्ध धर्म तीर्थ सारनाथ का फेमस मंदिर

Famous Temples : प्रसिद्ध बौद्ध धर्म तीर्थ सारनाथ का फेमस मंदिर - Famous Buddhist pilgrimage temple of Sarnath
Dhamekh Stupa, Sarnath: प्राचीन काल में बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्र बामियान में गुफा मंदिर होते थे जिनके अवशेष आज भी है। बौद्ध काल में हिंदू कुश पर्वत से लेकर कंदहार तक अनेकों स्तूप थे। पेशावर, कौशाम्बी, चाँपानेर (पावागढ़), सांची,  बोधगया, श्रावस्ती, लुम्बिनी और सारनाथ सहित कई जगहों पर फेमस बौद्ध टेम्पल रहे हैं इनमें से कुछ पर आज भी विद्यामान है।
 
1. लुम्बिनी : जहाँ बुद्ध का जन्म हुआ।
2. बोधगया : जहाँ बुद्ध ने 'बोध' प्राप्त किया।
3. सारनाथ : जहाँ से बुद्ध ने दिव्यज्ञान देना प्रारंभ किया।
4 कुशीनगर : जहाँ बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ।
सारनाथ बौद्ध मंदिर धमेख स्तूप : 
सारनाथ स्थित प्रसिद्ध बौद्ध धार्मिक स्थल धमेख स्तूप है। कहते हैं कि धमेख स्तूप ही वह स्थान है, जहां भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को प्रथम उपदेश दिया था। धमेख स्तूप के निर्माण की शुरुआत सम्राट अशोक के काल में हुई थी। गुप्त काल में यह बनकर तैयार हुआ था। धमेख स्तूप एक ठोस गोलाकार बुर्ज की तरह है। इसका व्यास करीब 28.35 मीटर (93 फुट) और ऊंचाई 39.01 मीटर (143 फुट) है।
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सारनाथ के अन्य दर्शनीय स्थल हैं- अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तम्भ, भगवान बुद्ध का मंदिर (यही यहां का प्रधान मंदिर है), चौखंडी स्तूप, सारनाथ का वस्तु संग्रहालय, जैन मंदिर, मूलगंधकुटी और नवीन विहार। जैन ग्रंथों में इसे सिंहपुर कहा गया है। जैन धर्मावलंबी इसे अतिशय क्षेत्र मानते हैं। श्रेयांसनाथ के यहाँ गर्भ, जन्म और तप- ये तीन कल्याण हुए हैं। यहाँ श्रेयांसनाथजी की प्रतिमा भी है यहाँ के जैन मंदिरों में। इस मंदिर के सामने ही अशोक स्तम्भ है।
कैसे पहुंचे : बनारस छावनी स्टेशन से पांच मील, बनारस-सिटी स्टेशन से तीन मील और सड़क मार्ग से सारनाथ चार मील पड़ता है। यह पूर्वोत्तर रेलवे का स्टेशन है और बनारस से यहां जाने के लिए सवारियां- तांगा, रिक्शा आदि मिलते हैं। सारनाथ में बौद्ध-धर्मशाला है। यह बौद्ध-तीर्थ है।
 
सारनाथ में विध्वंस : सारनाथ बौद्ध धर्म का प्रधान केंद्र था किंतु मोहम्मद गोरी ने आक्रमण करके इसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। वह यहां की स्वर्ण-मूर्तियाँ उठा ले गया और कलापूर्ण मूर्तियों को उसने तोड़ डाला। फलतः सारनाथ उजाड़ हो गया। केवल धमेख स्तूप टूटी-फूटी दशा में बचा रहा। यह स्थान चरागाह मात्र रह गया था।
 
सन्‌ 1905 ई. में पुरातत्व विभाग ने यहाँ खुदाई का काम प्रारंभ किया। इतिहास के विद्वानों तथा बौद्ध-धर्म के अनुयायियों का इधर ध्यान गया। तब से सारनाथ महत्व प्राप्त करने लगा। इसका जीर्णोद्धार हुआ, यहाँ वस्तु-संग्रहालय स्थापित हुआ, नवीन विहार निर्मित हुआ, भगवान बुद्ध का मंदिर और बौद्ध-धर्मशाला बनी। सारनाथ अब बराबर विस्तृत होता जा रहा है।
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