ब्रजभूमि : जहां कृष्ण ने की अनेक लीलाएं...
ब्रजभूमि का परिचय
भगवान् श्रीकृष्ण धन्य हैं, उनकी लीलाएं धन्य हैं और इसी प्रकार वह भूमि भी धन्य है, जहां वह त्रिभुवनपति मानस रूप में अवतरित हुए और ब्रजभूमि जहां उन्होंने वे परम पुनीत अनुपम अलौकिक लीलाएं कीं।
हिंदुस्थान में अनेक तीर्थ स्थान हैं, सबका महात्म्य है, भगवान् के और-और भी जन्मस्थान हैं पर यहां की बात ही कुछ निराली है। यहां के नगर-ग्राम, मठ-मंदिर, वन-उपवन, लता-कुंज आदि की अनुपम शोभा भिन्न-भिन्न ऋतुओं में भिन्न-भिन्न प्रकार से देखने को मिलती है। अपनी जन्मभूमि से सभी को प्रेम होता है फिर वह चाहे खुला खंडहर हो और चाह सुरम्य स्थान, वह जन्मस्थान है, यह विचार ही उसके प्रति होने के लिए पर्याप्त है।
इसी से सब प्रकार से सुंदर द्वारका में वास करते हुए भी भगवान् श्रीकृष्ण जब ब्रज का स्मरण करते थे, तब उनकी कुछ विचित्र ही दशा हो जाती थी।
जब ब्रज भूमि के वियोग से स्वयं ब्रज के अधीश्वर भगवान् श्रीकृष्ण का ही यह हाल हो जाता है, तब फिर उस पुण्यभूमि की रही-सही नैसर्गिक छटा के दर्शन के लिए, उस छटा के लिए जिसकी एक झांकी उस पुनीत युग का, उस जगद् गुरु का, उसकी लौकिक रूप में की गई अलौकिक लीलाओं का अद्भुत प्रकार से स्मरण कराती, अनुभव का आनंद देती और मलिन मन-मंदिर को सर्वथा स्वच्छ करने में सहायता प्रदान करती है, भावुक भक्त तरसा करते हैं। इसमें आश्चर्य ही क्या है? नैसर्गिक शोभा न भी होती, प्राचीन लीलाचिह्न भी न मिलते होते तो भी केवल साक्षात् परब्रह्म का यहां विग्रह होने के नाते ही यह स्थान आज हमारे लिए तीर्थ था, यह भूमि हमारे लिए तीर्थ थी, जहां की पावन रज को ब्रह्मज्ञ उद्धव ने अपने मस्तक पर धारण किया था।