नर्मदा के उत्तरी तट पर बसा 'धाराजी'
पौराणिक और दर्शनीय स्थल धावड़ीकुंड
* संस्कृति और अध्यात्म का अभूतपूर्व संगम देश में काशी ज्ञानभूमि, वृंदावन प्रेमभूमि और नर्मदा तट को तपोभूमि माना जाता है। संत डोंगरेजी महाराज गंगा में स्थान करने, जमुना में आचमन करने और नर्मदा के दर्शन करने का समान फल मानते थे। मालवावासी जिसे धाराजी के नाम से जानते हैं, वह धावड़ी कुंड देवास जिले का महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यहां संपूर्ण नर्मदा 50 फुट से गिरती है, जिसके फलस्वरूप पत्थरों में 10-15 फुट व्यास के गोल (ओखल के आकार के) गड्ढे हो गए हैं। बहकर आए पत्थर इन गड्ढों में गिरकर पानी के सहारे गोल-गोल घूमते हैं, जिससे घिस-घिसकर ये पत्थर शिवलिंग का रूप ले लेते हैं।