अजमेर की दरगाह शरीफ  
					
					
                                          दीदार गरीब नवाज की मजार का
                                       
                  
				  				
								 
				  
                  				  - 
श्रुति अग्रवालदरगाह अजमेर शरीफ...एक ऐसा पाक-शफ्फाक नाम है जिसे सुनने मात्र से ही रूहानी सुकून मिलता है। अजमेर शरीफ में हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह की मजार की जियारत कर दरूर-ओ-फातेहा पढ़ने की चाहत हर ख्वाजा के चाहने वाले की होती है, लेकिन हर कोई उनके द्वार पर दस्तक नहीं दे पाता ऐसे सभी श्रद्धालुओं के लिए धर्मयात्रा में हमारी यह प्रस्तुति खास तोहफा है।दरगाह अजमेर शरीफ का भारत में बड़ा महत्व है। खास बात यह भी है कि ख्वाजा पर हर धर्म के लोगों का विश्वास है। यहाँ आने वाले जायरीन चाहे वे किसी भी मजहब के क्यों न हों, ख्वाजा के दर पर दस्तक देने के बाद उनके जहन में सिर्फ अकीदा ही बाकी रहता है। दरगाह अजमेर डॉट काम चलाने वाले हमीद साहब कहते हैं कि गरीब नवाज का का आकर्षण ही कुछ ऐसा है कि लोग यहाँ खिंचे चले आते हैं। यहाँ आकर लोगों को रूहानी सुकून मिलता है। 				  
				  				   भारत में इस्लाम के साथ ही सूफी मत की शुरुआत हुई थी। सूफी संत एक ईश्वरवाद पर विश्वास रखते थे...ये सभी धार्मिक आडंबरों से ऊपर अल्लाह को अपना सब कुछ समर्पित कर देते थे। ये धार्मिक सहिष्णुता, उदारवाद, प्रेम और भाईचारे पर बल देते थे। इन्हीं में से एक थे हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह। ख्वाजा साहब का जन्म ईरान में हुआ था अपने जीवन के कुछ पड़ाव वहाँ बिताने के बाद वे हिन्दुस्तान आ गए। एक बार बादशाह अकबर ने इनकी दरगाह पर पुत्र प्राप्ति के लिए मन्नत माँगी थी। ख्वाजा साहब की दुआ से बादशाह अकबर को पुत्र की प्राप्ति हुई। खुशी के इस मौके पर ख्वाजा साहब का शुक्रिया अदा करने के लिए अकबर बादशाह ने आमेर से अजमेर शरीफ तक पैदल ख्वाजा के दर पर दस्तक दी थी...तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी में स्थित दरगाह शरीफ वास्तुकला की दृष्टि से भी बेजोड़ है...यहाँ ईरानी और हिन्दुस्तानी वास्तुकला का सुंदर संगम दिखता है। दरगाह का प्रवेश द्वार और गुंबद बेहद खूबसूरत है। इसका कुछ भाग अकबर ने तो कुछ जहाँगीर ने पूरा करवाया था। माना जाता है कि दरगाह को पक्का करवाने का काम माण्डू के सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने करवाया था। दरगाह के अंदर बेहतरीन नक्काशी किया हुआ एक चाँदी का कटघरा है। इस कटघरे के अंदर ख्वाजा साहब की मजार है। यह कटघरा जयपुर के महाराजा राजा जयसिंह ने बनवाया था। दरगाह में एक खूबसूरत महफिल खाना भी है, जहाँ कव्वाल ख्वाजा की शान में कव्वाली गाते हैं। दरगाह के आस-पास कई अन्य ऐतिहासिक इमारतें भी स्थित हैं।  धार्मिक सद्भाव की मिसाल- धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोगों को गरीब नवाज की दरगाह से सबक लेना चाहिए...ख्वाजा के दर पर हिन्दू हों या मुस्लिम या किसी अन्य धर्म को मानने वाले, सभी जियारत करने आते हैं। यहाँ का मुख्य पर्व उर्स कहलाता है जो इस्लाम कैलेंडर के रजब माह की पहली से छठी तारीख तक मनाया जाता है। उर्स की शुरुआत बाबा की मजार पर हिन्दू परिवार द्वारा चादर चढ़ाने के बाद ही होती है।				  
				  				  																													
								 
 
 
  
														
																		 							
																		
									    देग का इतिहास- दरगाह के बरामदे में दो बड़ी देग रखी हुई हैं...इन देगों को बादशाह अकबर और जहाँगीर ने चढ़ाया था। तब से लेकर आज तक इन देगों में काजू, बादाम, पिस्ता, इलायची, केसर के साथ चावल पकाया जाता है और गरीबों में बाँटा जाता है।कैसे जाएँ- दरगाह अजमेर शरीफ राजस्थान के अजमेर शहर में स्थित है। यह शहर सड़क, रेल, वायु परिवहन द्वारा शेष देश से जुड़ा हुआ है। यदि आप विदेश में रहते हैं या फिर यहाँ से जुड़ी ज्यादा जानकारी चाहते हैं तो दरगाह अजमेर डॉट कॉम या राजस्थान पर्यटन विभाग से संपर्क कर सकते हैं।