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  4. these 10 things written in shrimad bhagwat purana are coming true in kalyug
Written By WD Feature Desk
Last Updated : बुधवार, 4 जून 2025 (15:17 IST)

श्रीमद्भागवत पुराण में लिखी ये 10 बातें कलयुग में हो रही हैं सच

Prediction of Kalyug
Shrimad Bhagwat Puran: श्रीमद्भागवत पुराण की कथाओं का अधिक प्रचलन है। अधिकतर कथावाचन इसी की कथाओं को सुनाते हैं, लेकिन उसमें भविवष्य की बातें भी लिखी हुई है। श्रीमद्भागवत पुराण को महर्षि वेदव्यास के पुत्र शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया था। इसे महापुराण कहा जाता है। इस पुराण के 12 स्कंध में 335 अध्याय है जिसमें 18 हजार श्लोक हैं। भागवत पुराण में कलयुग का वर्णन मिलता है। इसमें बताया गया है कि कलयुग कैसा होगा, इस काल के लोग कैसे होंगे और यह युग कब समाप्त होगा। इसमें कलयुग के वर्ण के साथ ही इस पुराण में हमें कई भविष्यवाणियां भी पढ़ने को मिलती है। जैसे...
 
1.
दाम्पत्येऽभिरुचिर्हेतुः मायैव व्यावहारिके ।
स्त्रीत्वे पुंस्त्वे च हि रतिः विप्रत्वे सूत्रमेव हि ॥ श्लोक-3
अर्थ- इस युग में पुरुष-स्त्री बिना विवाह के ही केवल एक-दूसरे में रूचि के अनुसार साथ रहेंगे। व्यापार की सफलता छल पर निर्भर करेगी। कलयुग में ब्राह्मण सिर्फ एक धागा पहनकर ब्राह्मण होने का दावा करेंगे। (लिव इन रिलेशनशिप)....इसी तरह की कई अन्य भविष्यवाणियां और कलयुग के राजवंशों का वर्णन मिलेगा।
 
2.
अनाढ्यतैव असाधुत्वे साधुत्वे दंभ एव तु ।
स्वीकार एव चोद्वाहे स्नानमेव प्रसाधनम् ॥ श्लोक-8
अर्थ- इस युग में जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होगा वो अधर्मी, अपवित्र और बेकार माना जाएगा। विवाह दो लोगों के बीच बस एक समझौता होगा और लोग बस स्नान करके समझेंगे की वो अंतरात्मा से शुद्ध हो गए हैं।
 
वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदयः ।
धर्मन्याय व्यवस्थायां 
कारणं बलमेव हि ॥
अर्थाता कलयुग में वही व्यक्ति गुणी माना जायेगा जिसके पास ज्यादा धन है। न्याय और कानून सिर्फ एक शक्ति के आधार पे होगा।
 
3. 
ततश्चानुदिनं धर्मः 
सत्यं शौचं क्षमा दया ।
कालेन बलिना राजन् 
नङ्‌क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः ॥
अर्थात: कलयुग में धर्म, स्वच्छता, सत्यवादिता, स्मृति, शारीरक शक्ति, दया भाव और जीवन की अवधि दिन-ब-दिन घटती जाएगी।
  
4.
लिङ्‌गं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् ।
अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं 
पाण्डित्ये चापलं वचः॥  
अर्थात: घूस देने वाले व्यक्ति ही न्याय पा सकेंगे और जो धन नहीं खर्च पायेगा उसे न्याय के लिए दर-दर की ठोकरे खानी होंगी. स्वार्थी और चालाक लोगों को कलयुग में विद्वान माना जाएगा।
  
5.
क्षुत्तृड्भ्यां व्याधिभिश्चैव 
संतप्स्यन्ते च चिन्तया ।
त्रिंशद्विंशति वर्षाणि परमायुः 
कलौ नृणाम. 
अर्थात: कलयुग में लोग कई तरह की चिंताओं में घिरे रहेंगे. लोगों को कई तरह की चिंताए सताएंगी और बाद में मनुष्य की उम्र घटकर सिर्फ 20-30 साल की रह जाएगी।
 
6. 
दूरे वार्ययनं तीर्थं 
लावण्यं केशधारणम् ।
उदरंभरता स्वार्थः सत्यत्वे 
धार्ष्ट्यमेव हि॥
अर्थात: लोग दूर के नदी-तालाबों और पहाड़ों को तीर्थ स्थान की तरह जायेंगे लेकिन अपनी ही माता पिता का अनादर करेंगे. सर पे बड़े बाल रखना खूबसूरती मानी जाएगी और लोग पेट भरने के लिए हर तरह के बुरे काम करेंगे।
  
7. 
अनावृष्ट्या विनङ्‌क्ष्यन्ति दुर्भिक्षकरपीडिताः। 
शीतवातातपप्रावृड् हिमैरन्योन्यतः प्रजाः॥  
अर्थात: कलयुग में बारिश नहीं पड़ेगी और हर जगह सूखा होगा। मौसम बहुत विचित्र अंदाज ले लेगा। कभी तो भीषण सर्दी होगी तो कभी असहनीय गर्मी। कभी आंधी तो कभी बाढ़ आएगी और इन्ही परिस्तिथियों से लोग परेशान रहेंगे।
  
8. 
पुत्रः पितृवधं कृत्वा पिता पुत्रवधं तथा।
निरुद्वेगो वृहद्वादी न निन्दामुपलप्स्यते।।
म्लेच्छीभूतं जगत सर्व भविष्यति न संशयः।
हस्तो हस्तं परिमुषेद् युगान्ते समुपस्थिते।।- महाभारत
अर्थात: पुत्र, पिता का और पिता पुत्र का वध करके भी उद्विग्न नहीं होंगे। अपनी प्रशंसा के लिए लोग बड़ी-बड़ी बातें बनायेंगे किन्तु समाज में उनकी निन्दा नहीं होगी। उस समय सारा जगत् म्लेच्छ हो जाएगा- इसमें संशयम नहीं। एक हाथ दूसरे हाथ को लूटेगा। कलियुग में लोग शास्त्रों से विमुख हो जाएंगे। अनैतिक साहित्य ही लोगों की पसंद हो जाएगा। बुरी बातें और बुरे शब्दों का ही व्यवहार किया जाएगा। स्त्री और पुरुष, दोनों ही अधर्मी हो जाएंगी। स्त्रियां पतिव्रत धर्म का पालन करना बंद कर देगी और पुरुष भी ऐसा ही करेंगे। स्त्री और पुरुषों से संबंधित सभी वैदिक नियम विलुप्त हो जाएंगे।
 
9.
दाक्ष्यं कुटुंबभरणं 
यशोऽर्थे धर्मसेवनम् ।
एवं प्रजाभिर्दुष्टाभिः 
आकीर्णे क्षितिमण्डले ॥  
अर्थात: लोग सिर्फ दूसरो के सामने अच्छा दिखने के लिए धर्म-कर्म के काम करेंगे. कलयुग में दिखावा बहुत होगा और पृथ्वी पे भृष्ट लोग भारी मात्रा में होंगे। लोग सत्ता या शक्ति हासिल करने के लिए किसी को मारने से भी पीछे नहीं हटेंगे।
 
10.
आच्छिन्नदारद्रविणा 
यास्यन्ति गिरिकाननम् ।
शाकमूलामिषक्षौद्र फलपुष्पाष्टिभोजनाः॥  
अर्थात: पृथ्वी के लोग अत्यधिक कर और सूखे के वजह से घर छोड़ पहाड़ों पे रहने के लिए मजबूर हो जाएंगे। कलयुग में ऐसा वक़्त आएगा जब लोग पत्ते, मांस, फूल और जंगली शहद जैसी चीज़ें खाने को मजबूर होंगे। 
     
यदा देवेषु वेदेषु गोषु विप्रेषु साधुषु।
धर्मो मयि च विद्वेषः स वा आशु विनश्यित।।- 7/4/27
 
अर्थात- जो व्यक्ति देवता, वेद, गौ, ब्राह्मण, साधु और धर्म के कामों के बारे में बुरा सोचता है, उसका जल्दी ही नाश हो जाता है। यहां स्पष्ट करना जरूरी है कि ब्राह्मण उसे कहते हैं, जो कि वैदिक नियमों का पालन करते हुए 'ब्रह्म ही सत्य है' ऐसा मानता और जानता हो। जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता है।