New year celebration 2025: वर्तमान में दुनियाभर में अंग्रेजी कैलेंडर को मान्यता प्राप्त है। इसी के आधार पर व्रत, त्योहार, छुट्टियां आदि तय होने लगे हैं। परंतु कुछ वर्षों से हिंदू और मुस्लिम संगठनों के लोग इस कैलेंडर के अनुसार जश्न मनाने और नए वर्ष का स्वागत करने का विरोध करने लगे हैं। हाल ही में बरेलवी मसलक के चश्म ए दारुल इफ्ता ने नए साल का जश्न मनाने और मुबारकबाद देने को गैर इस्लामी करार देते हुए एक फतवा जारी करके मुसलमानों को इससे दूर रहने की हिदायत दी है। फतवे में कहा गया है कि जनवरी से शुरू होने वाला नया साल ईसाइयों का नया साल है और यह विशुद्ध रूप से ईसाइयों का धार्मिक कार्यक्रम है, इसलिए मुसलमानों का नए साल का जश्न मनाना जायज नहीं है। इसी तरह की बात कई कुछ हिंदू संगठन भी करते हैं।ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य स्वामिश्री अविमुक्तेश्वरानंद ने मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी द्वारा नए साल 2025 के जश्न पर जारी फतवे को स्वागत योग्य कदम बताया और हिंदुओं से कहा कि विक्रम संवत आपका कैलेंडर है उनसे ज्यादा वैज्ञानिक है उसके अनुसार पर्व तिथि और नया साल मनाएं। आओ जानते हैं कि यह कितना सही है कि यह एक ईसाई कैलेंडर है?
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वर्ष का प्रथम माह जनवरी के बनने की कहानी और कैलेंडर का इतिहास:
ईसा मसीह का जन्म 4 ईसा पूर्व हुआ था। ईसा मसीह के जन्म से पहले, हिब्रू कैलेंडर और जूलियन कैलेंडर प्रचलन में था। जब इटली के रोम शासन का दुनियाभर में फैलाव हुआ तो रोमन कैलेंडर प्रचलन में आया। प्राचीन रोमन कैलेण्डर में मात्र 10 माह होते थे और वर्ष का शुभारम्भ 1 मार्च से होता था। बहुत समय बाद इसमें जनवरी तथा फरवरी माह जोड़े गए। सर्वप्रथम 153 ईस्वी पूर्व में 1 जनवरी को वर्ष का शुभारम्भ माना गया एवं 45 ईस्वी पूर्व में जब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर द्वारा जूलियन कैलेण्डर का शुभारम्भ हुआ, तो यह सिलसिला बरकरार रखा गया। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला साल, यानि, ईसा पूर्व 46 ई. को 445 दिनों का करना पड़ा था। इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि इस कैलेंडर का संबंध ईसाई धर्म से नहीं है।
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1 जनवरी को नववर्ष मनाने का चलन 1582 ईस्वी के ग्रेगोरियन कैलेंडर के आरम्भ के बाद हुआ। दुनियाभर में प्रचलित ग्रेगोरियन कैलेंडर को पोप ग्रेगरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था। ग्रेगरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान भी किया था। ईसाईयों का एक अन्य पंथ ईस्टर्न आर्थोडॉक्स चर्च रोमन कैलेंडर को मानता है। इस कैलेंडर के अनुसार नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। यही वजह है कि ऑर्थोडॉक्स चर्च को मानने वाले देशों रूस, जॉर्जिया, यरुशलम और सर्बिया में नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है।
रोम का सबसे पुराना कैलेंडर वहां के राजा न्यूमा पोंपिलियस के समय का माना जाता है। यह राजा ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में था। आज विश्व भर में जो कैलेंडर प्रयोग में लाया जाता है उसका आधार रोमन सम्राट जूलियस सीजर का ईसा पूर्व पहली शताब्दी में बनाया कैलेंडर ही है। जूलियस सीजर ने कैलेंडर को सही बनाने में यूनानी ज्योतिषी सोसिजिनीस की सहायता ली थी। इस नए कैलेंडर की शुरुआत जनवरी से मानी गई है। इसे ईसा के जन्म से छियालीस वर्ष पूर्व लागू किया गया था। उन्होंने वर्षों की गिनती ईसा के जन्म से की। जन्म के पूर्व के वर्ष बी.सी. (बिफोर क्राइस्ट) कहलाए और (बाद के) ए.डी. (आफ्टर डेथ) जन्म पूर्व के वर्षों की गिनती पीछे को आती है, जन्म के बाद के वर्षों की गिनती आगे को बढ़ती है। सौ वर्षों की एक शताब्दी होती है।
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कुछ लोगों अनुसार सबसे पहले रोमन सम्राट रोम्युलस ने जो कैलेंडर बनवाया था वह 10 माह का था। बाद में सम्राट पोम्पीलस ने इस कैलेंडर में जनवरी और फरवरी माह को जोड़ा। इस कैलेंडर में बारहवां महीना फरवरी था। कहते हैं कि जब बाद में जूलियस सीजर सिंहासन पर बैठा तो उसने जनवरी माह को ही वर्ष का पहला महीना घोषित कर दिया। इस कैलेंडर में पांचवें महीने का नाम 'क्विटिलस' था। इसी महीने में जूलियस सीजर का जन्म हुआ था। अत: 'क्विटिलस' का नाम बदल कर जुला रख दिया गया। यह जुला ही आगे चलकर जुलाई हो गया। जूलियस सीजर के बाद 37 ईस्वी पूर्व आक्टेबियन रोम साम्राज्य का सम्राट बना। उसके महान कार्यों को देखते हुए उसे 'इंपेरेटर' तथा 'ऑगस्टस' की उपाधि प्रदान की गई। उस काल में भारत में विक्रमादित्य की उपाधि प्रदान की जाती थी।...
आक्टेबियन के समय तक वर्ष के आठवें महीना का नाम 'सैबिस्टालिस' था। सम्राट के आदेश पर इसे बदलकर सम्राट 'ऑगस्टस आक्टेवियन' के नाम पर ऑगस्टस रख दिया गया। यही ऑगस्टस बाद में बिगड़कर अगस्त हो गया। उस काल में सातवें माह में 31 और आठवें माह में 30 दिन होते हैं। चूंकि सातवां माह जुलियस सीजर के नाम पर जुलाई था और उसके माह के दिन ऑगस्टस माह के दिन से ज्यादा थे तो यह बात ऑगस्टस राजा को पसंद नहीं आई। अत: उस समय के फरवरी के 29 दिनों में से एक दिन काटकर अगस्त में जोड़ दिया गया।
बाद के काल में इस कैलेंडर में कई बार सुधार किए। इसमें सुधार पोप ग्रेगरी तेरहवें के काल में 2 मार्च, 1582 में उनके आदेश पर हुआ। चूंकि यह पोप ग्रेगरी ने सुधार कराया था इसलिए इसका नाम ग्रेगोरियन कैलेंडर रखा गया। फिर सन 1752 में इसे पुन: संशोधित किया गया तब सितंबर 1752 में 2 तारीख के बाद सीधे 14 तारीख का प्रावधान कर संतुलित किया गया। अर्थात सितंबर 1752 में मात्र 19 दिन ही थे। तब से ही इसके सुधरे रूप को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली।
ब्रिटिश अंग्रेजों के कारण प्रचलन में आया वर्तमान अंग्रेजी कैलेंडर:
अंत में यह कैलेंडर पहले रोमन और बाद में अंग्रेजों के द्वारा अपनाए जाने के कारण यह दुनियाभर में अंग्रेजी शासन के अंतर्गत प्रचलन में आ गया। पहले इसका स्वरूप रोमन, लैटिन और हिब्रू भाषा में होता है परंतु बाद में यह अंग्रेजी भाषा में हो गया। इस कैलेण्डर को शुरुआत में पुर्तगाल, जर्मनी, स्पेन तथा इटली में अपनाया गया। सन 1700 में स्वीडन और डेनमार्क में लागू किया गया। 1752 में इंग्लैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1873 में जापान और 1911 में इसे चीन ने अपनाया। इसी बीच इंग्लैंड के सभी उपनिवेशों (गुलाम देशों) और अमेरिकी देशों में यही कैलेंडर अपनाया गया। भारत में इसका प्रचलन अंग्रेजी शासन के दौरान हुआ।
ईसाई धर्म के लोगों ने किया थर्टी फस्ट और न्यू ईयर का ईसाईकरण
चूंकि यह कैलेंडर रोमनों द्वारा इजाद किया गया, अंग्रेजों द्वारा इसे प्रचारित प्रसारित किया गया और ईसाई देशों और उनके उपनिवेशों में अपनाया गया इसलिए इसे ईसाई कैलेंडर माना जाने लगा। इसी के साथ ही इस कैलेंडर में ईसा पूर्व और ईसा बाद जैसे संकेत जोड़े गए जिसके चलते भी यह स्पष्ट होने लगा कि यह एक ईसाई कैलेंडर है। बाद में ईसाई धर्म के लोगों ने 25 दिसंबर के साथ ही थर्टी फस्ट और न्यू ईयर का ईसाई तरीके से सेलिब्रेट किया जाने लगा जिसके चलते भी यह एक ईसाई कैलेंडर के रूप में मान्य हो गया। दरअसल जब 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है तो सभी बाजारों को ईसाई थीम के अनुसार ही सजाया जाता है जो कि 1 जनवरी तक भी यही थीम बनी रहती है। इसके कारण भी यह ईसाई नववर्ष के रूप में स्थापित हो चला है।
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हालांकि दुनिया में ऐसे कई ईसाई देश हैं जो 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म नहीं मनाते हैं। उनकी मान्यता के अनुसार 7 जनवरी को उनका जन्म हुआ था। दरअसल, ग्रेगोरियन और जूलियन कैलेंडर में 13 दिनों का अंतर होता है। साल 1582 में पोप ग्रेगोरी ने ग्रेगोरियन कैलेंडर और जूलियस सीजर ने 46 BC में जूलियन कैलेंडर शुरू किया था। 1752 में इंग्लैंड ने जूलियन कैलेंडर की जगह ग्रेगोरियन कैलेंडर फॉलो करना शुरू कर दिया गया और अब दोनों ही कैलेंडर प्रचलन में है।
गैर ईसाइयों को नया साल मनाना चाहिए या नहीं?
1. उपरोक्त इतिहास के अनुसार यह सिद्ध होता है कि यह कैलेंडर ईसाई धर्म पर आधारित कैलेंडर नहीं है और न ही इसे ईसाई धर्म को ध्यान में रखकर बनाया गया था। इस कैलेंडर के सभी नाम रोमन देवताओं पर आधारित है।
2. ईसाइयों का एक अन्य पंथ ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च इस कैलेंडर को नहीं मानते। वे रोमन कैलेंडर का अनुसरण करते हैं। रोमन कैलेंडर के अनुसार नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। ब्रिटेन में भी ग्रेगोरियन कैलेंडर प्रचलित है लेकिन पारंपरिक तौर पर यहां की पेमब्रोकशायर काउंटी स्थित ग्वाउन वैली के लोग 13 जनवरी को नया साल मनाते हैं। यह जूलियन कैलेंडर का पहला दिन है। रूस और जॉर्जिया सहित करीब 15 ऐसे देश हैं जहां के करोड़ों लोग जूलियन कैलेंडर के हिसाब से नया साल मनाते हैं। यहां के लोग 13 जनवरी को नया साल मनाते हैं।
उपरोक्त विश्लेषण से यह सिद्ध होता है कि वर्तमान में प्रचलित ग्रेगोरियन और जूलियन कैलेंडर पूर्व में कभी ईसाई कैलेंडर नहीं रहे लेकिन इन्हें ईसाइयों द्वारा अपनाया जाने के कारण इसे ईसाई कैलेंडर मान लिया गया। जबकि संपूर्ण ईसाई जगत 1 जनवरी को नया वर्ष नहीं मानते हैं। दोनों कैलेंडर के अनुसार नया वर्ष अलग अलग मनाया जाता है। जहां तक गैर ईसाइयों द्वारा इस कैलेंडर के अनुसार नया वर्ष मनाने की बात है कि इसमें कोई बुराई नहीं है क्योंकि इससे किसी भी तरह से किसी की धार्मिक मान्यता पर चोट नहीं पहुंचती है।
इसलिए माना गया है कि...
1. हिंदू विक्रम संवत गुड़ी पड़वा से प्रारंभ होता है
2. बौद्ध शक संवत 22 मार्च से प्रारंभ होता है।
3. मुस्लिम हिजरी संवत मोहर्रम की पहली तारीख से प्रारंभ होता है।
4. पारसियों का नवरोज मार्च की किसी तारीख से प्रारंभ होता है।
5. जैन नववर्ष दीपावली के दिन से प्रारंभ होता है।
6. ईसाई संवत 1 जनवरी से प्रारंभ होता है।
7. सिख संवत या नानकशाही कैलेंडर की 14 मार्च या लोहड़ी से प्रारंभ होता है।