तांडव शब्द भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। ताण्डव का अर्थ होता है उग्र तथा औद्धत्यपूर्ण क्रिया कलाप या स्वच्छंद क्रिया कलाप। ताण्डव (अथवा ताण्डव नृत्य) शंकर भगवान द्वारा किया जाने वाला अलौकिक नृत्य है। रावण ने अपने आराध्य शिव की स्तुति में 'शिव तांडव स्तोत्र' ( Shiv Tandav Nritya Stotra ) की रचना की थी। आओ जानते हैं इसके चमत्कारिक लाभ।
1. तांडव के प्रवर्तक : शास्त्रों के अनुसार शिवजी को ही तांडव नृत्य का प्रवर्तक माना जाता है। परंतु अन्य आगम तथा काव्य ग्रंथों में दुर्गा, गणेश, भैरव, श्रीराम आदि के तांडव का भी उल्लेख मिलता है।
2. तांडव स्त्रोत : रावण ने अपने आराध्य शिव की स्तुति में 'शिव तांडव स्तोत्र' की रचना की थी। इसके अलावा आदि शंकराचार्य रचित दुर्गा तांडव (महिषासुर मर्दिनी संकटा स्तोत्र), गणेश तांडव, भैरव तांडव एवं श्रीभागवतानंद गुरु रचित श्रीराघवेंद्रचरितम् में राम तांडव स्तोत्र भी प्राप्त होता है।
3. तांडव नृत्य : मान्यता है कि रावण के भवन में पूजन के समाप्त होने पर शिवजी ने, महिषासुर को मारने के बाद दुर्गा माता ने, गजमुख की पराजय के बाद गणेशजी ने, ब्रह्मा के पंचम मस्तक के छेदद के बाद आदिभैरव ने तथा रावण के वध के समय प्रभु श्रीराम जी ने तांडव नृत्य किया।
4. तांडव का लाभ :
- शिव तांडव स्त्रोत का पाठ करने से व्यक्ति के भीतर आत्मबल बढ़कर उच्च व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है।
- नित्य शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से वाणी की सिद्धि हो जाती है।
- शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने से कभी भी धन-सम्पति की कमी नहीं होती है।
- शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
- शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने से चेहरे की कांति बढ़ जाती है।
- शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने से शनि, राहु और केतु दोष से मुक्ति मिलती है।
- इसका नित्य पाठ करने से कुण्डली में सर्प योग, कालसर्प योग या पितृ दोष से भी मुक्ति मिल जाती है।
- शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से नृत्यकला, चित्रकला, लेखन, योग, ध्यान, समाधी आदि कार्यों में लाभ मिलता है।
5. शिवतांडव स्तोत्र की विधि :
- इसका पाठ प्रातः काल या प्रदोष काल में करना चाहिए।
- सबसे पहले स्नानादि करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद ही इसका पाठ करें।
- शिवजी की चित्र, तस्वीर या मूर्ति के समक्ष प्रणाम करने के बाद उनकी पूजा करने के बाद पाठ करें।
- यह पाठ उच्च स्वर में भी कर सकते हैं।
- पाठ पूर्ण होने के बाद शिवजी का ध्यान करें और फिर उनकी आरती करें।
6. तांडव ताल : भारतीय संगीत शास्त्र में चौदह प्रमुख तालभेद में वीर तथा बीभत्स रस के सम्मिश्रण से बना तांडवीय ताल का उल्लेख मिलता है।
7. तांडव वनस्पति : वनस्पति शास्त्र के अनुसार एक प्रकार की घास को भी तांडव कहा गया है।
8. शिव का तांडव नृत्य : कहते हैं कि भगवान शिव दो स्थिति में तांडव नृत्य करते हैं। पहला जब वो क्रोधित होते हैं तब वे बिना डमरू के तांडव नृत्य करते हैं। ऐसा में जब शिवजी को क्रोध आता है तो वे तांडव नृत्य करते हैं और जब क्रोध वे ते अपना तीसरा नेत्र खोल देते हैं तो जो भी सामने होता है वह भस्म हो जाता है। परंतु दूसरा जब वे डमरू बजाते हुए तांडव करते हैं तो इसका अर्थ यह है कि वे आनंदित हैं, प्रकृति में आनंद की बारिश हो रही है। ऐसे समय में शिव परम आनंद से पूर्ण रहते हैं। नटराज, भगवान शिव का ही रूप है, जब शिव तांडव करते हैं तो उनका यह रूप नटराज कहलता है।
9. सृष्टि को भस्म करने के लिए तांडव : कुछ का मानना है कि शिव ने तांडव नृत्य कर सृष्टि को भस्म कर दिया था तब सृष्टि की जगह बहुत काल तक यही (महाशिवरात्रि) महारात्रि छाई रही। देवी पार्वती ने इसी रात्रि को शिव की पूजा कर उनसे पुन: सृष्टि रचना की प्रार्थना की इसीलिए इसे शिव की पूजा की रात्रि कहा जाता है। फिर इसी रात्रि को भगवान शंकर ने सृष्टि उत्पत्ति की इच्छा से स्वयं को ज्योतिर्लिंग में परिवर्तित किया।
10. ज्ञान प्राप्ति पर तांडव : यह भी कहा जाता है कि भगवन शिव को जब हिमालय पर ज्ञान प्राप्त हुआ था उस ज्ञान के आनंद में उन्होंने झूमकर नृत्य किया था, जिस नृत्य को बाद में तांडव कहा गया। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे। सर्व प्रथम इन्होंने ही शिवजी का तांडव नृत्य उस वक्त देखा था जब उन्हें (शिवजी को) ज्ञान प्राप्त हुआ था।
11. काली तांडव : शिवजी के साथ माता काली ही उनके जैसा तांडव करने की क्षमता रखती हैं। माता पार्वती ने यही नृत्य बाणासुर की पुत्री को सिखाया था।
12. शास्त्रीय नृत्य : कहते हैं कि भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र का पहला अध्याय लिखने के बाद अपने शिष्यों को तांडव नृत्य का प्रशिक्षण दिया था। वर्तमान में शास्त्रीय नृत्य से संबंधित जिनती भी कला या विद्याएं या नृत्य प्रचलित हैं वह सभी तांडव नृत्य की ही देन हैं। तांडव नृत्य की एक तीव्र शैली है, वहीं इसी लास्य सौम्य शैली भी है। लास्य शैली में वर्तमान में भरतनाट्यम, कुचिपुडी, ओडिसी और कत्थक नृत्य किए जाते हैं जबकि कथकली तांडव नृत्य से प्रेरित है।