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Written By WD

क्या है चौरासी कोस परिक्रमा, जानिए

अयोध्या
हिंदुओं के प्रत्येक तीर्थ स्थल के आस-पास चौरासी और पंच कोस की परिक्रमा का आयोजन किए जाने का प्रचलन है। प्रत्येक तीर्थ क्षेत्र में इस आयोजन का अलग-अलग महत्व और परंपरा है।

कब होती है यात्रा : ज्यादातर यात्राएं चैत्र, बैसाख मास में ही होती है चतुर्मास या पुरुषोत्तम मास में नहीं। कुछ विद्वान मानते हैं कि परिक्रमा यात्रा साल में एक बार चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक ही निकाली जाती है। कुछ लोग आश्विन माह में विजया दशमी के पश्चात शरद् काल में परिक्रमा आरम्भ करते हैं। शैव और वैष्णवों में परिक्रमा के अलग-अलग समय है। संतों में इस यात्रा को लेकर मतभेद हैं।

क्यों करते हैं यात्रा : माना जाता है कि 84 कोस की यात्रा 84 लाख योनियों से छुटकारा पाने के लिए है। हमारा शरीर भी चौरासी अंगुल की माप का है। 84 कोस की यात्रा के धार्मिक महत्व के अलावा इसका सामाजिक महत्व भी है।

कहां-कहां होती परिक्रमा : चौरासी कोसी परिक्रमा पूरी तरह से संतों और भक्तों द्वारा संचालित धार्मिक व परम्परागत है। इस परिक्रमा को किसी विशेष समय और स्थान पर लोग करते हैं जैसे- ब्रज क्षेत्र में गोवर्धन, अयोध्या में सरयू, चित्रकूट में कामदगिरि व दक्षिण भारत में तिरुवन्मलई की परिक्रमा यात्रा है। उज्जैन में चौरासी महादेव की यात्रा का आयोजन किया जाता है।

अयोध्या में चौरासी कोसी यात्रा क्यों?...अगले पन्ने पर


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मान्यताओं के मुताबिक अयोध्या के राजा राम का साम्राज्य 84 कोस (252‍ किलोमीटर) में फैला था। राज्य का नाम कौशलपुर था जिसकी राजधानी अयोध्या थी। इसी वजह से दशकों से 84 कोसी परिक्रमा की परंपरा है।

यात्रा के मार्ग में उत्तर प्रदेश के छह जिले आते हैं- बाराबंकी, फैजाबाद, गोंडा, बहराइच, अंबेडकरनगर और बस्ती जिला। उक्त जिलों में यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव होते हैं जहां रुककर यात्री आराम करते हैं।

कैसे करते हैं परिक्रमा : परिक्रमा करने वाले 84 कोस की दूरी पैदल, बस, ट्रैक्टर-ट्रॉली तथा अन्य साधनों से तय करते हैं। इनमें अधिकांश परिक्रमार्थी संपूर्ण परिक्रमा पैदल चलकर पूर्ण करते हैं।

परिक्रमा करते समय जरूरी हिदायत...


यात्रा के अपने नियम हैं इसमें शामिल होने वालों के प्रतिदिन 36 नियमों का कड़ाई से पालन करना होता है, इनमें प्रमुख हैं- धरती पर सोना, नित्य स्नान, ब्रह्मचर्य पालन, जूते-चप्पल का त्याग, नित्य देव पूजा, कथासंकीर्तन, फलाहार, क्रोध, मिथ्या, लोभ, मोह व अन्य दुर्गुणों का त्याग प्रमुख है।

इसके अलावा सत्य बोलना, दूसरों के अपराधों का क्षमा करना, तीर्थों में स्नान करना, आचमन करना, भगवत निवेदित प्रसाद का सेवन, तुलसीमालापर हरिनामर कीर्तन या वैष्णवों के साथ हरिनाम संकीर्तन करना चाहिए।

परिक्रमा के समय मार्ग में स्थित ब्राह्मण, श्रीमूर्ति, तीर्थ और भगवद्लीला स्थलियों का विधिपूर्वक सम्मान एवं पूजा करते हुए परिक्रमा करें। परिक्रमा पथ में वृक्ष, लता, गुल्म, गो आदि को नहीं छेड़ना, साधु-संतों आदि का अनादर नहीं करना, साबुन, तेल और क्षौर कार्य का वर्जन करना, चींटी इत्यादि जीव-हिंसा से बचना, परनिन्दा, पर चर्चा और कलेस से सदा बचना चाहिए।