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वेद की वाणी किस तरह परंपरा से श्रीकृष्‍ण को प्राप्त हुई और वेदव्यास ने लिखे वेद

Ved | वेद की वाणी किस तरह परंपरा से श्रीकृष्‍ण को प्राप्त हुई और वेदव्यास ने लिखे वेद
वेद की वाणी को ईश्वर की वाणी कहा जाता है। वेद संसार के सबसे प्राचीन धर्मग्रंथ है। वेद को 'श्रुति' भी कहा जाता है। 'श्रु' धातु से 'श्रुति' शब्द बना है। 'श्रु' यानी सुनना। कहते हैं कि इसके मन्त्रों को ईश्वर (ब्रह्म) ने प्राचीन तपस्वियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था जब वे गहरी तपस्या में लीन थे।
 
सर्वप्रथम ईश्वर ने चार ऋषियों को वेद ज्ञान दिया:- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य। वेद तो एक ही है लेकिन उसके चार भाग है- ऋग, यजु, साम और अथर्व। वेद के सार और निचोड़ को वेदांत और उसके भी सार को 'ब्रह्मसूत्र' कहते हैं। वेदांत को उपनिषद भी कहते हैं। वेदों का केंद्र है- ब्रह्म और आत्मा ब्रह्म को ही ईश्वर, परमेश्वर और परमात्मा कहा जाता है।
प्रथम ईशदूत :- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य।
मध्य में :- स्वायम्भु, स्वरोचिष, औत्तमी, तामस मनु, रैवत, चाक्षुष।
वर्तमान ईशदूत :- वैवस्वत मनु।
 
ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं जिनमें से लगभग 30 नाम महिला ऋषियों के हैं। इस तरह वेद सुनने और वेद संभालने वाले ऋषि और मनु की लंबी परंपरा से आगे चलकर वैवस्वत मनु से उनके पुत्रों ने यह ज्ञान प्राप्त किया।
 
वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पुत्र थे। इन्हीं पुत्रों और उनकी पुत्रियों से धरती पर मानव का वंश बड़ा। जल प्रलय के समय वैवस्वत मनु के साथ सप्त ऋषि भी बच गए थे और अन्य जीव, जंतु तथा प्राणियों को भी बचा लिया गया था। जल प्रलय के बाद उन्होंने ही वेद की वाणी को बचाकर उसको पुन: स्थापित किया था। 
 
श्रीकृष्‍ण : गीता में श्रीकृष्ण के माध्यम से ईश्वर कथन:- मैंने इस अविनाशी ज्ञान को सूर्य (आदित्य) से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा। इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग ज्ञान को राजर्षियों ने जाना, किन्तु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्तप्राय हो गया। अब यही ज्ञान तुझे (अर्जुन को) संक्षेप में सुना रहा हूं।
 
ऋषि वेद व्यास : ऋषि वेद व्यास ने इन्हीं वेदों को की वाणी को फिर से स्थापित किया। वेद के विभाग चार है: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग-स्थिति, यजु-रूपांतरण, साम-गति‍शील और अथर्व-जड़। ऋक को धर्म, यजुः को मोक्ष, साम को काम, अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है। इन्ही के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई।
कृष्ण के समय द्वापरयुग की समाप्ति के बाद महर्षि वेद व्यास ने वेद को चार प्रभागों संपादित करके व्यवस्थित किया। इन चारों प्रभागों की शिक्षा चार शिष्यों पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु को दी। उस क्रम में ऋग्वेद- पैल को, यजुर्वेद- वैशम्पायन को, सामवेद- जैमिनि को तथा अथर्ववेद- सुमन्तु को सौंपा गया। सभी के हजारों शिष्य थे जिन्होंने अपने शिष्यों को वेद कंठस्थ कराया। वेदों के कंठस्थ करने की परंपरा के चलते ही वेद अब तक बच रहे हैं। 
 
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