गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
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प्राचीन भारत के पुरातात्विक अवशेषों पर एक नजर

प्राचीन भारत के पुरातात्विक अवशेषों पर एक नजर | Ancient Indian Civilization
पहले ऐसा था कि किताबों में लिखे हुए इतिहास को सत्य माना जाता था परंतु फिर ऐसा दौर आया कि लिखे हुए इतिहास का पुरातात्विक अवशेष है तो उसे ही प्रामाणिक इतिहास माना जाएगा। यही कारण था कि अंग्रेजों के भारतीय इतिहास, पुराण आदि किताबों को जानबूझकर मिथक या आप्रामाणिक ग्रंथ मानकर उसकी सत्यता की कभी जांच नहीं की। अंग्रेजों के ही अनुसारण भारत के कुछ इतिहासकारों ने किया।
 
भारत के मंदिर और गुफाएं : अखंड भारत (पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित) में कई प्राचीन रहस्यमी मंदिर, स्तंभ, महल और गुफाएं हैं। बामियान, बाघ, अजंता-एलोरा, एलीफेंटा और भीमबेटका की गुफाएं, 12 ज्योतिर्लिंग, 51 शक्तिपीठों के अलावा कई पुरातात्विक महत्व के स्थल, स्मारक, नगर, महल आदि को संवरक्षित कर इनके इतिहास को लिखे जाने की आवश्यकता है। उदाहरणार्थ मिस्र के पिरामिड और स्मारकों पर लगातार शोध होता रहता है और उनके संवर‍क्षण की प्रक्रिया भी चलती रहती है। इस सब पर कई शोध किताबें लिखे जाने का सिलसिला भी चलता रहता है।
नदि सभ्यता : भारत में सिंधु नदी, गंगा नदी, सरस्वती नदी, नर्मदा नदी, गोदावरी नदी, ब्रह्मपुत्र नदी, झेलम नदी, कुंभा नदी, कृष्ण नदी, कावेरी नदी और महानदी के तटों पर प्राचीन भारतीय सभ्यताओं का विकास हुआ है। इसमें से सिंधु, सरस्वती, नर्मदा, ब्रह्मपुत्र को सबसे पुरानी नदी माना जाता है और इन नदी घाटी में लाखों वर्ष पुराने प्राचीन अवशेष भी पाए गए हैं।
नगर सभ्यता : सिंधुघाटी की सभ्यता की बात करें तो मेहरगढ़, हड़प्पा, मोहनजोदेड़ो, चनहुदड़ो, लुथल, कालीबंगा, सुरकोटदा, रंगपुर और रोपड़ से भी कहीं ज्यादा प्राचीन स्थानों की वर्तमान में खोज हुई है। बुर्जहोम, गुफकराल, चिरांद पिकलीहल और कोल्डिहवा, लोथल, कोल्डिहवा, महगड़ा, रायचूर, अवंतिका, नासिक, दाइमाबाद, भिर्राना, बागपद, सिलौनी, राखीगढ़ी, बागोर, आदमगढ़, भीमबैठका आदि ऐसे सैकड़ों स्थान है जहां पर हुई खुदाई से भारतीय इतिहास, धर्म और संस्कृति के नए राज खुले हैं। इन स्थानों से प्राप्त पुरा अवशेषों से पता चलता है कि 10000 ईसा पूर्व भारतीय संस्कृति और सभ्यता अपने चरम पर थी।
 
बागपत और सिलौनी से हाल ही में महाभारत काल का एक रथ और उसके पहिये पाए गया है। इनकी जांच करने के बाद पता चला है कि यह ईसा से लगभग 3500 वर्ष पूर्व के हैं। तांबे के पहिये आज भी वैसे के वैसे ही रखे हुए हैं।
दरअसल, भारत को अपने पुराअवशेष और स्मारकों को अच्छे से संवरक्षित रखने की जरूरत है। उक्त सभी की जानकारी का एक डेटाबेस भी तैयार कर भारतीय इतिहास पर फिर से शोध कार्य किया जाने की जरूरत है। हालांकि शोध कार्य तो सतत जारी ही रहना चाहिए लेकिन जरूरत हमें इस बात कि है कि वर्तमान तकनीक और खोज पर आधारित इतिहास को फिर से क्रमबद्ध लिखा जाए और उसे स्कूली और कॉलेज की किताबों में भी अपडेट किया जाए। यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो निश्चित ही हम अपने देश के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं। पहले लिखे गए इतिहस से भारत और भारततीय समाज का विभाजन ही ज्यादा हुआ है।
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