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Written By एन. पांडेय
Last Updated : सोमवार, 24 अप्रैल 2023 (16:51 IST)

बद्रीनाथ धाम की सुखद यात्रा की कामना के लिए तिमुंडिया मेले का आयोजन हुआ संपन्न

बद्रीनाथ धाम की सुखद यात्रा की कामना के लिए तिमुंडिया मेले का आयोजन हुआ संपन्न - Timundia fair was organized
  • जोशीमठ में तिमुंडिया मेले का आयोजन हुआ
  • तिमुंडिया राक्षस से मुक्ति का पर्व
  • मां दुर्गा ने दिलाया था छुटकारा
Timundia Fair। बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) की यात्रा से पूर्व के सप्ताह में पड़ने वाले शनिवार को तिमुंडिया मेले का आयोजन करने की परंपरा है। इस मेले के आयोजन को बद्रीनाथ धाम की सुखद यात्रा की कामना के लिए किया जाता है। मान्‍यता है कि तिमुंडिया मेले (Timundia Fair) का आयोजन करने से बद्रीनाथ धाम की यात्रा निर्विघ्न संपन्न होती है।
 
शनिवार दोपहर बाद नरसिंह मंदिर प्रांगण जोशीमठ में ढोल दमाऊ की ताल से गुंजायमान माहौल में तिमुंडिया वीर देवता ने अपने पाश्वे (अवतारी पुरुष) के रूप में अवतरित हो क्विंटल भर चावल गुड़ व 5 घड़े पानी और एक पूरे बकरे के मांस का भोग स्वीकार कर लिया। क्षेत्र की महिलाएं इस मौके पर पारंपरिक झुमेलो और चाचरी नृत्य करती रहीं।
 
दंतकथाओं के अनुसार तिमुंडिया चमोली जिले के गांव हियूणा में राक्षस स्वरूप में रहता था और वह नित्य एक न एक मनुष्य की बलि लेकर गांव में भय फैलाता था। माना जाता है कि तिमुंडिया 3 सिर वाला वीर था और एक सिर से दिशा का अवलोकन, एक सिर से मांस खाता और एक सिर से वेदों का अध्ययन करता था। ह्यूना के जंगलों में इस राक्षस ने बड़ा आतंक मचा रखा था और हर दिन मनुष्य को खाता था।
 
मान्यता है कि एक दिन जोशीमठ क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी मां दुर्गा अपने क्षेत्र भ्रमण पर निकलीं तो लोगों से उनकी भेंट हुई। मां दुर्गा की देवयात्रा पर जब एक बार गांव वाले मां के स्वागत के लिए नहीं आए तो पूछने पर पता चला कि लोग तिमुंडिया राक्षस के डर से घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं और वह हर दिन एक मनुष्य को खाता है। हर दिन एक मनुष्य नरबलि के लिए जाता है।
 
मां दुर्गा और तिमुंडिया में हुआ भयंकर युद्ध : ग्रामीणों ने मां दुर्गा से अपनी दारुण कथा कही और इस राक्षस से छुटकारा दिलाने की विनती की। मां दुर्गा द्वारा उसके संहार का उपाय सुझाने पर गांव वाले की सेवा के लिए एक दिन किसी को नहीं भेजने पर क्रोधित तिमुंडिया गर्जना करते हुए गांव में पहुंचता है तब मां दुर्गा और तिमुंडिया का भयंकर युद्ध होता है। मां दुर्गा उसके 3 में से 2 सिर काट देती हैं।
 
मां के शरणागत हुआ राक्षस : एक सिर कटकर सेलंग के आसपास गिरता है और उसे पटपटवा वीर और एक उर्गम के पास जिसे हिस्वा राक्षस कहते हैं। और ज्यों ही नवदुर्गा मां तीसरा सिर काटने लगती हैं तो तिमुंडिया राक्षस मां के शरणागत हो जाता है और मां उसकी वीरता से बहुत प्रसन्न होती हैं और उसे अपना वीर बना देती हैं और आदेश देती हैं कि आज से वो मनुष्य का भक्षण नहीं करेगा। साल में एक बार उसे एक पशु बकरी की बलि और अन्य खाना दिया जाएगा, तब से ये परंपरा चली आ रही है।
 
मां दुर्गा ने प्रदान की देवयोनि : उसके बाद मां दुर्गा ने इस राक्षस को राक्षसी योनि से मुक्त कर देवयोनि प्रदान की और अपने साथ अपने क्षेत्र जोशीमठ में इस आश्वासन पर ले आईं कि मां दुर्गा इस राक्षस को प्रतिवर्ष एक बकरे की बलि देगी और उसके बदले में यह राक्षस मां और मां के क्षेत्र की रक्षा करेगा। उस पौराणिक समय से तिमुंडिया को वीर देवता के नाम से पूजा जाने लगा और उसी परंपरा के निर्वाह के अंतर्गत साल में एक बकरे की बलि आज भी दी जाती है।
 
नरसिंह मंदिर में जब जब इस देव मेले का आयोजन होता है तब अवतारी पुरुष पर तिमुंडिया वीर का आवेश आने पर मात्र मां दुर्गा का पश्वा ही उसे काबू करने में सक्षम है। जब तिमुंडिया वीर के अवतारी पुरुष पर वीर का अवतरण होता है, उससे कुछ मिनट पहले अवतारी पुरुष पर मां दुर्गा भी अवतरित होती हैं और इस वीर के बाल पकड़कर इसे काबू करती हैं। धर्माधिकारी बद्रीनाथ धाम और देव पूजा समिति अध्यक्ष भुवन चंद्र उनियाल का कहना है कि तिमुंडिया 3 सिर वाला वीर था और यह मनुष्य को खाता था।
 
Edited by: Ravindra Gupta
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