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Last Updated : सोमवार, 4 फ़रवरी 2019 (23:26 IST)

शारदा और रोजवैली समूह के भ्रष्टाचार की कहानी, पोंजी घोटालों में अरबों डूबे निवेशकों के

शारदा और रोजवैली समूह के भ्रष्टाचार की कहानी, पोंजी घोटालों में अरबों डूबे निवेशकों के - The story of corruption of Sharadha and the osewelli Group
कोलकाता। कोलकाता पुलिस प्रमुख से पूछताछ की सीबीआई की नाकाम कोशिश के बाद जो राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिल रहा है, उसका संबंध 2 कथित पोंजी घोटालों से है। इसकी कहानी शारदा समूह और रोज वैली समूह से जुड़ा हुआ है। इसका पता 2013 में चला था।
 
दरअसल, इन दोनों कंपनियों ने लाखों निवेशकों से दशकों तक हजारों करोड़ रुपए वसूले और बदले में उन्हें बड़ी रकम की वापसी का वादा किया गया लेकिन जब धन लौटाने की बारी आई तो भुगतान में खामियां होने लगीं जिसका असर राजनीतिक गलियारे तक देखने को मिला।
 
धन जमा करने वाली योजनाएं कथित तौर पर बिना किसी नियामक से मंजूरी के 2,000 से पश्चिम बंगाल और अन्य पड़ोसी राज्यों में चल रही थीं। लोगों के बीच यह योजना 'चिटफंड' के नाम से मशहूर थी। इस योजना के जरिए लाखों निवेशकों से हजारों करोड़ रुपए जमा किए गए। इन दोनों समूहों ने इस धन का निवेश यात्रा एवं पर्यटन, रियल्टी, हाउसिंग, रिजॉर्ट और होटल, मनोरंजन और मीडिया क्षेत्र में व्यापक तौर पर किया था।
 
शारदा समूह 239 निजी कंपनियों का एक संघ था और ऐसा कहा जा रहा है कि अप्रैल 2013 में डूबने से पहले इसने 17 लाख जमाकर्ताओं से 4,000 करोड़ रुपए जमा किए थे, वहीं रोज वैली के बारे में कहा जाता है कि इसने 15,000 करोड़ रुपए जमा किए थे।
 
शारदा समूह से जुड़े सुदीप्तो सेन और रोज वैली से जुड़े गौतम कुंडु पर आरोप है कि वे पहले पश्चिम बंगाल की वाम मोर्चा सरकार के करीब थे लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जैसे-जैसे राज्य में तृणमूल कांग्रेस की जमीन मजबूत हो गई, ये दोनों समूह इस पार्टी के नजदीक आ गए। हालांकि इन दोनों समूहों की संपत्ति 2012 के अंत में चरमरानी शुरू हो गई और भुगतान में खामियों की शिकायतें भी मिलने लगीं।
 
शारदा समूह अप्रैल 2013 में डूब गया और सुदीप्तो सेन अपने विश्वसनीय सहयोगी देबजानी मुखर्जी के साथ पश्चिम बंगाल छोड़कर फरार हो गए। इसके बाद शारदा समूह के हजारों कलेक्शन एजेंट तृणमूल कांग्रेस के कार्यालय के बाहर जमा हुए और सेन के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
 
शारदा समूह के खिलाफ पहले मामला विधान नगर पुलिस आयुक्तालय में दायर किया गया जिसका नेतृत्व राजीव कुमार कर रहे थे। कुमार 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर तब सेन को 18 अप्रैल 2013 को देबजानी के साथ कश्मीर से गिरफ्तार किया।

इसके बाद राज्य सरकार ने कुमार के नेतृत्व में एक एसआईटी गठित की। एसआईटी ने तृणमूल कांग्रेस से राज्यसभा के तत्कालीन सांसद और पत्रकार कुणाल घोष को शारदा चिटफंड घोटाले में कथित तौर पर शामिल होने के मामले में गिरफ्तार किया।
 
कांग्रेस नेता अब्दुल मनान द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर एक याचिका के बाद न्यायालय ने मई 2014 में इस मामले में सीबीआई जांच का आदेश दे दिया। तृणमूल कांग्रेस के कई शीर्ष नेताओं और श्रीनजॉय बोस जैसे सांसदों को सीबीआई ने गिरफ्तार किया।

सीबीआई ने रजत मजूमदार और तत्कालीन परिवहन मंत्री मदन मित्रा को भी गिरफ्तार किया। भाजपा के वरिष्ठ नेता मुकुल रॉय, जो कि तब तृणमूल कांग्रेस के महासचिव थे, से भी सीबीआई ने 2015 में इस भ्रष्टाचार के मामले में पूछताछ की।
 
इसके बाद 2015 के मध्य में रोज वैली समूह के कुंडु को भी प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार कर लिया। इसके अलावा दिसंबर 2016 और जनवरी 2017 में तृणमूल कांग्रेस के सांसद तापस पाल और सुदीप बंधोपाध्याय को भी रोज वैली मामले में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

पिछले कुछ महीनों में सीबीआई ने कुछ पेंटिग जब्त किए हैं जिसके बारे में बताया जा रहा है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा बनाए गए हैं और चिटफंड मालिकों ने इन सभी को बड़ी कीमत देकर खरीदा था।
 
इस साल जनवरी में सीबीआई ने फिल्म प्रोड्यूसर श्रीकांत मोहता को भी रोज वैली चिटफंड मामले में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया। इसके बाद 2 फरवरी को सीबीआई ने दावा किया कि कुमार फरार चल रहे हैं और शारदा और रोज वैली पोंजी भ्रष्टाचार मामले में उनसे पूछताछ के लिए उनकी तलाश की जा रही है।
 
दरअसल, सीबीआई के 40 अधिकारियों की एक टीम कोलकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से चिटफंड घोटाले के सिलसिले में पूछताछ करने के लिए रविवार को उनके आवास पर गई थी लेकिन टीम को उनसे मिलने की अनुमति नहीं दी गई और उन्हें जीप में भरकर थाने ले जाया गया।

टीम को थोड़े समय के लिए हिरासत में भी रखा गया। घटना के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी रविवार की रात 8.30 बजे से धरने पर बैठी हुई हैं। इसे वे 'संविधान बचाओ' विरोध प्रदर्शन कह रही हैं।