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Written By Author डॉ. रमेश रावत
Last Updated : गुरुवार, 4 जून 2020 (15:46 IST)

Success Story : एक मुलाकात ने बदली जिंदगी, रिक्शा खींचने वाले हाथ बने रत्न-पारखी

Success Story : एक मुलाकात ने बदली जिंदगी, रिक्शा खींचने वाले हाथ बने रत्न-पारखी - Success story : Ashok Khandelwal Jaipur :
तराशने के बाद ही कोई रत्न असली चमक हासिल कर पाता है, उसी तरह एक व्यक्ति भी संघर्ष के बाद और निखर जाता है। रामरतन उर्फ अशोक खंडेलवाल (अशोक इसराइली) की कहानी भी कुछ इसी तरह की है। गुलाबी नगरी जयपुर में कभी साइकिल रिक्शा खींचने वाले अशोक अब रत्नों के बड़े पारखी हैं। भारत ही नहीं 100 अधिक देशों में उनके ग्राहक हैं। 
 
जयपुर जिले के चौमूं में जन्मे रामरतन रावत (अब अशोक खंडेलवाल) ने छोटी-सी उम्र में रेडियो सुधारने का काम सीखा फिर पैसा कमाने के लिए ढाबे पर बर्तन भी धोए। राजधानी जयपुर की सड़कों पर रिक्शा भी चलाया। वक्त ने करवट बदली और अशोक रत्नों के व्यापारी बन गए। आज अशोका जेम्स के नाम से जयपुर में रत्नों की एक फर्म है तथा अमेरिका, स्कॉटलैंड, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, अफ्रीका सहित 100 से अधिक देशों के कस्टमर आपसे माल खरीदते हैं। 
 
एक मुलाकात ने बदली जिंदगी की दिशा : रिक्शा चलाने के दौरान अशोक ने कपड़े का कारोबार शुरू करने की योजना बनाई थी, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। इसी दौरान आपकी मुलाकात वियेना (ऑस्ट्रिया) के पर्यटक जेमोलॉजिस्ट थॉमस फिनाइसल से हुई। उन्होंने सलाह दी कि तुम्हें जेम्स, स्टोन और ज्वेलरी का व्यापार करना चाहिए।
 
जब अशोक ने कहा कि मुझे तो इसकी कोई जानकारी नहीं है, इस पर थॉमस ने कहा कि मैं तुम्हें जेमोलॉजी के गुर सिखाऊंगा। इस तरह इस व्यवसाय में थॉमस उनके गुरु बने। थॉमस प्रतिदिन कुछ रुपए देकर अशोक से स्वयं के लिए रत्न मंगवाते। इसी के साथ शुरू हो गया रत्नों को देखने और परखने का सिलसिला।
 
थॉमस कहते हैं कि अशोक से मैं 1984 में मिला था। उस समय मैं एक खरीददार के रूप में ऑस्ट्रियन इम्पोर्ट कंपनी के लिए काम करता था। अशोक हठी था। गुलाबी नगर में उसने अपनी किस्मत को आजमाने का प्रयास किया। इसी बीच, मैंने करीब एक साल बाद स्टोन व्यापार में कदम रखा। शायद मेरी प्रेरणा से ही अशोक ने इस व्यापार में कदम रखा। अशोक भले ही मुझे गुरु मानता है, लेकिन उसने अपनी मेहनत, ईमानदारी एवं अपने टेलेंट से ही सब कुछ हासिल किया है। मैं दिल से उसे इस चुनौतीपूर्ण व्यवसाय में सफल होने के लिए बधाई देता हूं। 

स्पेन की दानी से मिला सहयोग : स्पेन की दानी ने अशोक के रत्न व्यापार में शुरुआती दौर में काफी सहयोग किया। दानी ने शुरुआती दौर में अशोक से रत्न खरीदे एवं स्पेन में उन्हें ऊंची कीमत पर बेचा और मुनाफे में अशोक को भी हिस्सा दिया। दानी कहती हैं कि अशोक से मुलाकात 1987 में हुई थी। जयपुर से मैं कपड़े एवं ज्वेलरी खरीदकर स्पेन में बेचती हूं। अशोक ने मेरे काम में काफी मदद की है। इस 30 साल की दोस्ती में अशोक का परिवार मेरे परिवार जैसा है। मुझे इस दोस्ती पर नाज है। 
गोपी बना बदलाव का वाहक : अशोक जिस समय एक ढाबे पर काम करते थे, उसी दौरान गोपी नामक एक रिक्शा चालक भी वहां खाना खाने आया करता था। गोपी से मुलाकात दोस्ती में बदली और उसने रिक्शा चलाने की सलाह दी। गोपी ने कहा कि इसमें कमाई तो ज्यादा होगी ही और दूसरा कोई बॉस भी नहीं रहेगा। अर्थात खुद के बॉस खुद। बस, फिर क्या था अशोक ने गोपी के सहयोग से रिक्शा चलाने की शुरुआत की। रिक्शा चलाने के दौरान उनकी मुलाकात कई विदे‍शी पर्यटकों से हुई। थॉमस और दानी भी इन्हीं में से थे। 
 
विदेशी कस्टमरों की चाह में सीखी अंग्रेजी : विदेशी पर्यटकों को अपने रिक्शे पर घुमाने और ज्यादा पैसे कमाने की चाह रखने वाले 9वीं पास अशोक ने जैसे-तैसे अंग्रेजी सीखी। फिर विदेशी पर्यटकों को अपने रिक्शे में घुमाने लगे। इसी दौरान उनकी मुलाकात इंग्लैंड के प्रोफेसर आर. जेनबर्डन एवं उनकी रोजा से हुई। 
 
ऐसे ही फ्रांस के ऐलेन एवं क्लाउडी, इसराइल की ग्रुप लीडर नामा से भी उनकी मुलाकात हुई। उन्होंने नामा की ग्रुप ऑर्गनाइज करवाने में मदद की। इससे वह इतनी प्रभावित हुईं कि भविष्य में कोई भी पर्यटक इसराइल से आता तो वह अशोक से ही संपर्क करता था। इससे उनकी आय में काफी बढ़ोतरी हुई। आज कई विदेशी पर्यटकों से उनकी अच्छी दोस्ती है, वे जब भी जयपुर आते हैं तो अशोक से जरूर मुलाकात करते हैं। 
 
कांउटर से छोटे शोरूम तक का सफर : अशोक ने अपने व्यावसायिक सफर में झटके भी खाए, लेकिन यात्रा निरंतर जारी रही। उनका काम छोटे से काउंटर से शुरू हुआ, मगर आज उनका जयपुर में शोरूम है। जेम्स एक्सपोर्ट का काम भी करते हैं। वक्त के थपेड़े सहकर शिखर तक पहुंचे अशोक ने अपने बुरे वक्त को नहीं भुलाया और दूसरे लोगों को भी कारोबार शुरू करने में मदद की। अपने परिजन अनिल, दीपक, मुकेश, रवि समेत परिवार से बाहर के लोग इकबाल, शेखर सहित कई विदेशी लोगों को भी काम सिखाया। यह काम भी आज भी कर रहे हैं। कोई भी रत्न व्यवसाय के गुर सीखने उनके पास आता है तो वह निराश होकर नहीं लौटता। 
 
‍‍विदेश यात्राएं : काम एवं एक्जीविशन के सिलसिले में अशोक खंडेलवाल स्कॉटलैंड, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, स्पेन, ऑस्ट्रिया, स्वीडन सहित अनेक देशों की यात्रा कर चुके हैं। धार्मिक प्रवृत्ति के अशोक अपने पिता स्व. नाथूलाल रावत के गौशाला स्थापित करने, गायों को चारे का इंतजाम करने आदि कामों को भी आगे बढ़ा रहे हैं। 
 
क्या कहते हैं विदेशी पर्यटक : फ्रांस की 60 वर्षीय क्लॉडिया ने कहा कि मैं जब पहली बार अशोक के घर गई तो उनकी कॉलोनी में मुझे देखने के लिए भीड़ लग गई। अभी भारत आना चाहती थी, लेकिन कोविड-19 के कारण कार्यक्रम रद्द कर दिया। अशोक का परिवार मेरे परिवार जैसा ही है। मेरे बेटे ने भी जयपुर आकर अशोक के पास जेम्स का काम सीखा है। 
 
ट्रेवल एजेंसी में काम करने वाली इसराइल की नामा का कहना है कि अशोक से मेरी मुलाकात 1986 में हुई थी। मुझे अपने ग्रुप के लिए ट्रांसपोर्ट की आवश्यकता थी। इसमें अशोक का काफी सहयोग मिला। इसके बाद भारत में उसका अशोक इसराइली के नाम से भी फेमस हो गया।
इंग्लैंड के आर. जेनबर्डन ने बताया कि मेरी अशोक से पहली मुलाकात तब हुई थी जब मैं पत्नी रोजा के साथ भारत घूमने आया था। उस समय हमने जयपुर में दो दिन बिताए थे। उस दिन बारिश आ रही थी। हमने एक रिक्शा लेने का निश्चय किया। उस समय हमें एक 14 साल का लड़का रिक्शे के साथ दिखाई दिया। वह अशोक था। अशोक हमें म्यूजियम दिखाने ले गया। इस दौरान हमने उसके साथ बहुत-सी फोटो भी लीं। अपने देश लौटने के बाद अशोक के हिन्दी में लिखे पते पर हमने फोटो भी भेजी। यह फोटो उसके पास आज भी हैं। अगली बार 2004 जब जयपुर आया तो अशोक का शोरूम देखकर बहुत खुशी हुई। 
 
स्वीडन निवासी बैंग्ट, इसराइल के अयलेत, अर्जेंटीना की स्टेला, बेल्जियम की टोनी, पामेला लंदन, बर्लिन के फ्रेंक, कोलंबिया की स्टेबेन और ऐसे ही कई और भी नाम हैं, जो चाहे रिक्शा चलाने का समय हो या जेम्स कारोबार का, अशोक से मिलने के बाद उनके करीबी मित्र बन गए। सभी खुले दिल से अशोक की तारीफ करते हैं और उनके लगातार संपर्क हैं। कई तो उनके व्यवसाय से भी जुड़े हैं। 
दरअसल, रामरतन उर्फ अशोक खंडेलवाल की जीवन यात्रा देखकर ऐसा लगता है कि व्यक्ति ठान ले तो वह कुछ भी हासिल कर सकता है। दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां संभवत: ऐसे ही व्यक्तियों के लिए हैं- कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो...