जब कैद से आजाद हुए थे रामलला
फैज़ाबाद। 1986 ये वो दिन है जब अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि का ताला अदालत के आदेश पर खुला था और भक्तों को दर्शन की अनुमति मिली थी। कैद के 36 वर्षो बाद 1 फरवरी 1986 का दिन अयोध्या के इतिहास में अतिमहत्वपूर्ण था। इसी दिन फैज़ाबाद जनपद के तत्कालीन न्यायाधीश कृष्ण मोहन पांडेय ने उमेशचंद्र व हरिशंकर दुबे की याचिका की सुनवाई करते हुए तत्काल प्रभाव से विवादित स्थल राम जन्मभूमि स्थल के मुख्य द्वार पर लगे ताले खुलवाने का आदेश दिया था।
इसके उपरांत फैजाबाद के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट इंद्रा कुमार पांडेय व नगर मजिस्ट्रेट सभाजीत शुक्ला की उपस्थिति में सायंकाल 5:30 बजे शहर कोतवाल ब्रजपालसिंह ने मुख्य द्वार पर लगे ताले को तुड़वाया। अदालत के इस ऐतिहासिक फैसले से पूरी अयोध्या में दिवाली जैसा पर्व मनाया गया। साधु-संतों ने अबीर गुलाल उड़ाए। पूरी अयोध्या श्रीराम के जयकारों से गूंजने लगी थी।
इसी वर्ष 1986 में ही बाबरी एक्शन कमेटी का गठन हुआ जिसके मुद्दई हासिम अंसारी बनाए गए थे, जिनका स्वर्गवास हो चुका है। इस कमेटी ने इसका विरोध किया व इसे मानने से इंकार कर दिया और आगे अपील कर दी, जो न्यायालय में अभी विचाराधीन है। अयोध्यावासी व साधु-संत इस दिन को न्याय दिवस के रूप में मनाते हैं और इसी दिन वर्ष 1986 से अब तक यहां लगातार भगवन का भोग, दर्शन व पूजा-अर्चना चल रही है।
यहीं से भगवान राम व रामजन्म भूमि निर्माण को लेकर राजनीति भी गरमा उठी, जिसका बीड़ा उठाया भाजपा ने जिसे रामजन्म भूमि निर्माण आंदोलन के रूप में हिंदुस्तान में जन-जन तक पहुचने का प्रयास किया, जिसका फायदा भी उसे मिला देश की राजनीति में पहली बार केंद्र की सत्ता में आने के साथ साथ कई प्रदेश में भी सत्ता मिली। इसके बाद तो राम मंदिर मुद्दा पूरी तरह से राजनीतिक मुद्दा बनाया, जिसकी चुनाव के समय ही याद आती है।
अब फिर चुनाव आ गया है। राजनीतिज्ञों व भाजपा व उसके सहयोगियों को को राम व राम मंदिर निर्माण का मुद्दा का सपना दिखाई देने लगा है साथ श्रीराम से जुड़े आयोजनों की भी याद आने लगी, किन्तु अयोध्या व उसके विकास पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा।