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Last Modified: शनिवार, 14 जनवरी 2023 (17:57 IST)

बिहार के इन 18 जिलों के पानी में कैंसर का खतरा, अलर्ट पर प्रशासन

बिहार के इन 18 जिलों के पानी में कैंसर का खतरा, अलर्ट पर प्रशासन - Risk of cancer in the water of these 18 districts of Bihar, administration on alert
पटना। बिहार के 18 जिलों के भूजल में आर्सेनिक की उच्च सांद्रता का संबंध इन जिलों में पित्ताशय के कैंसर की घटनाओं के साथ होना राज्य के विशेषज्ञों के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष अशोक कुमार घोष ने शुक्रवार को बताया, विशेषज्ञों द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि 38 जिलों में से 18 जिलों ने भूजल में आर्सेनिक की उच्च मात्रा पाए जाने की सूचना दी है। इन जिलों के लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन की 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर की स्वीकार्य सीमा से अधिक आर्सेनिक सांद्रता वाला पानी पी रहे हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित जिले बक्सर, भोजपुर और भागलपुर हैं।

उन्होंने कहा कि भूजल में सबसे अधिक आर्सेनिक दूषितकरण (1906 माइक्रोग्राम प्रति लीटर) बक्सर जिले में है।घोष ने आगे कहा, अब अध्ययन में पित्ताशय की थैली के कैंसर के संभावित जोखिम कारक के रूप में आर्सेनिक की उच्च सांद्रता सामने आई है।

यह अनिवार्य है कि बिहार और असम के स्थानिक क्षेत्रों में भी पीने के पानी से आर्सेनिक को हटाने के रूप में सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप समय की मांग है। आर्सेनिक प्रदूषण से निपटने से कई स्वास्थ्य समस्याओं के बोझ को कम करने में मदद मिल सकती है।

उन्होंने कहा कि विशेषज्ञों ने निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले 18 जिलों के विभिन्न क्षेत्रों से एकत्र किए गए 46000 भूजल नमूनों का विश्लेषण किया। आर्सेनिक दूषितकरण से गंभीर रूप से प्रभावित बिहार के जिलों में बक्सर, भोजपुर, भागलपुर, सारण, वैशाली, पटना, समस्तीपुर, खगड़िया, बेगूसराय, मुंगेर आदि शामिल हैं जो कि गंगा नदी के तट के करीब स्थित हैं।

पीने के पानी में आर्सेनिक और पित्ताशय की थैली के कैंसर के बीच संबंध पर अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च के कैंसर एपिडेमियोलॉजी, बायोमार्कर्स एंड प्रिवेंशन जर्नल में नवीनतम अध्ययन पत्र भी प्रकाशित हुआ है।

घोष ने कहा, इस अध्ययन ने भारत के दो आर्सेनिक प्रभावित राज्यों बिहार और असम में 15-70 साल की वास अवधि के प्रतिभागियों के बीच पीने के पानी में आर्सेनिक के संपर्क में पित्ताशय की थैली के कैंसर के जोखिम की जांच की।

अध्ययन दल के सदस्य घोष ने कहा, यह अध्ययन भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल हेल्थ, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, सेंटर फॉर क्रॉनिक डिजीज कंट्रोल, कैंसर संस्थान के डॉ. भुवनेश्वर बरुआ, महावीर कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (खड़गपुर) लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के सहयोग से उन क्षेत्रों में जहां पित्ताशय की थैली का कैंसर और पीने के पानी में आर्सेनिक की उच्च मात्रा पाई जाती है में किया गया।

उन्होंने कहा, पीने के पानी के संभावित स्रोतों के बारे में जानकारी के साथ लोगों के बचपन से दीर्घकालिक आवासीय इतिहास इस अध्ययन के महत्वपूर्ण स्रोत हैं। अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. कृतिगा श्रीधर ने कहा कि इस अध्ययन से प्रारंभिक अंतर्दृष्टि समान देश के संदर्भों के लिए भी उपयोगी हो सकती है जो पीने के पानी में पित्ताशय की थैली के कैंसर और पीने के पानी में आर्सेनिक की उच्च मात्रा के बोझ का अनुभव करते हैं।

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की डॉ. पूर्णिमा प्रभाकरन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे यह अध्ययन जल जीवन मिशन 2024 और समान स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल के सतत विकास लक्ष्यों के साथ संरेखित है। Edited By : Chetan Gour (भाषा) 
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