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Last Updated : मंगलवार, 23 मार्च 2021 (22:39 IST)

उत्तराखंड चुनाव 2022 और हरिद्वार कुंभ पर वेबिनार का आयोजन

उत्तराखंड चुनाव 2022 और हरिद्वार कुंभ पर वेबिनार का आयोजन - Parul University Webinar on Haridwar Kumbh Mela
वड़ोदरा। पारूल विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ जर्नलिज्म एंड मॉस कम्यूनिकेशन की ओर से 'द असेम्बली इलेक्शन 2022 इन उत्तराखंड' विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया। वेबिनार के मुख्य अतिथि एडवोकेट, पत्रकार एवं लेखक श्रीगोपाल नारसन ने उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति से अवगत कराते हुए उत्तराखंड में व्याप्त समस्याओं के बारे में भी जानकारी दी।
 
उन्होंने उत्तराखंड में भाजपा एवं कांग्रेस के विभिन्न मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में हुए विभिन्न विकास कार्यों, घोषणा पत्रों में वर्णित विभिन्न घोषणाओं को विश्लेषणात्मक तरीके से बताया। उन्होंने पर्यावरण से सबंधित विभिन्न आंदोलनों की जानकारी भी दी तो वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड में एक बार भाजपा एवं एक बार कांग्रेस की सरकार बनने के पीछे दोनों ही पार्टियों की ओर से सरकार बनाए जाने के बावजूद जनता की आशाओं पर खरा नहीं उतरने का कारण भी बताया।
 
उन्होंने बताया कि जल, जंगल एवं जमीन भी हर चुनाव में मुख्य मुद्दा रहा, वहीं विकास के नाम पर हर पर्यावरण से छेडछाड़ भी यहां लोगों को रास नहीं आया। सरकारों को बदलने में इस मुद्दे ने भी अहम भूमिका निभाई, इससे नकारा नहीं जा सकता। नारसन ने कहा कि जब भी कोई भी सरकार आम जनता की आशाओं पर खरा नहीं उतरती है तो जनता सरकार को ही बदल देती है।
 
कुंभ के पहले शाही स्नान पर शिवमय हुआ हरिद्वार : डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी की ओर से 'कुंभ दर्शन एंड इट्स सोशल एंड साइकोलॉजिकल इम्पेक्ट' विषय पर बोलते हुए विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ के मानद उपकुलसचिव, साहित्यकार एवं राजनीतिक विश्लेषक श्रीगोपाल नारसन ने बताया कि कुंभ के पहले शाही स्नान पर पूरा हरिद्वार शिवमय हो गया।
 
कोरोना की गाइडलाइन का पालन करते हुए करीब 22 लाख लोगों ने गंगा में पवित्र डुबकी लगाई। इसके साथ ही जिन लोगों ने कोरोना नियमों का पालन नहीं किया उनमें से करीब 2500 गाड़ियों में आए लोगों को बिना स्नान किए ही बैरंग लौटना पड़ा। नारसन ने कुंभ के करीब 850 साल के प्रमाणित दस्तावेजों के आधार पर इसका इतिहास बताया तो वहीं दूसरी ओर पहला कुंभ का मेला आदि शंकराचार्य की ओर से आंरभ करने की बात भी कही।
 
इसके साथ ही उन्होंने समुद्र मंथन के जरिए उत्पन्न हुए अमृत कलश को लेकर देवताओं एवं राक्षसों में हुए झगड़े को लेकर कलश की कुछ बूंदों के नासिक, हरिद्वार, उज्जैन एवं प्रयागराज में गिरने के बाद से अब तक पारंपरिक रूप से कुंभ मेले के भरने की परंपरा को भी स्वीकार किया।
 
उन्होंने बताया कि 12 साल में एक बार कुंभ का आयोजन हरिद्वार में किया जाता है, लेकिन इस बार कुछ खगोलीय घटनाओं के चलते ऐसा पहली बार हुआ है कि 11 साल में ही कुंभ का मेला हरिद्वार में आयोजित हो रहा है। इस अवसर पर फेल्टी ऑफ आर्ट्‍स के डीन प्रो. डॉ. रमेश कुमार रावत ने स्वागत उद्‍बोधन दिया तथा अंत में आभार प्रदर्शन किया।