जम्मू। कश्मीर में उभरे एक नए आतंकी गुट ने प्रवासी नागरिकों से कश्मीर को तत्काल खाली करने के लिए कहा है। तकरीबन अढ़ाई से तीन लाख प्रवासी नागरिकों में इस चेतावनी के बाद भगदड़ मची हुई है। कश्मीर के जिला कुलगाम में गत रविवार को हुई दो मजदूरों की हत्या की जिम्मेदारी यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट (यूएलएफ) ने ली है। इसी के साथ इस गुट ने कश्मीर में डेरा डाले बाहरी लोगों को यह चेतावनी भी दी है कि वे जल्द से जल्द कश्मीर से चले जाएं अन्यथा उनके साथ भी ऐसा ही किया जाएगा।
हालांकि आतंकवादियों की इस चेतावनी से पहले ही प्रवासी लोगों ने घाटी से पलायन शुरू कर दिया है। इस गुट के प्रति पुलिस पता लगाने की कोशिश में जुटी है। यही कारण था कि कल रात के बाद आज सुबह भी कश्मीर के टैक्सी स्टेंड व बस स्टेंड पर जम्मू आने वाले प्रवासी लोगों की काफी भीड़ देखने को मिली। राजस्थान के एक प्रवासी परिवार ने कहा कि वे कश्मीर में सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं।
2 अक्टूबर के बाद से आतंकवादियों ने घाटी में 12 लोगों की हत्या की है। वे अपने बीवी-बच्चों के साथ यहां रह रहे थे। उनकी जान पर भी खतरा बना हुआ है। वे इसके लिए तैयार नहीं हैं, इसीलिए उन्होंने कश्मीर छोड़ने का फैसला किया है। आतंकवादी जब चाहें किसी भी किसी की भी हत्या कर रहे हैं। ऐसे में उनके पास कश्मीर छोड़ने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं रह जाता है।
कश्मीर में अक्टूबर में 5 प्रवासियों की हत्या हो चुकी है। बिहार के 4 मजदूरों-रेहड़ी वालों का मर्डर हो चुका है। यूपी के एक मुस्लिम कारपेंटर को भी आतंकियों ने मार दिया है। इससे पहले लोकल सिख और हिन्दू टीचर की हत्या कर दी गई थी। मशहूर दवा कारोबारी कश्मीरी पंडित मक्खनलाल बिंद्रू को भी आतंकियों ने मार दिया था। अक्टूबर में 2 लोकल मुस्लिमों का भी आतंकियों ने मर्डर किया।
हालांकि कश्मीर से पलायन कर रहे श्रमिकों का कहना है कि वे ये पलायन हमेशा के लिए नहीं कर रहे हैं। हालात बेहतर होने पर वे फिर वापस लौटेंगे। उन्होंने कहा कि स्थानीय लोग भी उनके जाने से दुखी हैं, उनके जाने से कामकाज पर भी असर पड़ता है। खेतों, मकान निर्माण, मजदूरी, रेहड़ी का अधिकतर काम हम बाहरी लोग ही करते हैं। ऐसे में सभी के कश्मीर से चले जाने से आम लोगों के कामकाज पर असर पड़ना स्वाभाविक है। परंतु मौजूदा हालत को देखते हुए वे भी कुछ कर पाने में असमर्थ हैं।
एडवायजरी को बताया फर्जी : हालांकि कश्मीर के आईजी विजय कुमार ने उस एडवाइजरी को फर्जी बताया जिसमें कश्मीर में खौफ के नाम पर दूसरे राज्यों के लोगों के पुलिस और सेना कैंप में जाने की सलाह दी गई थी। आईजी ने एक ट्वीट जारी करके स्थिति स्पष्ट की थी पर सच्चाई यह थी कि इस एडवाइजरी पर पुलिस की जम कर किरकिरी होने के बाद इसे नकार दिया था। लेकिन इसे नकारने से पहले ही कई कस्बों में पुलिस ने श्रमिकों को कई स्कूलों में एकत्र कर लिया था। और जब पुलिस ने एडवाइजरी से पल्ला झाड़ लिया तो इन श्रमिकों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया। नतीजतन कहीं से शरण और सुरक्षा न मिलने के कारण प्रवासी नागरिक घरों को लौटने लगे हैं।
रविवार शाम को वनपोह में बिहार के दो श्रमिकों की हत्या के बाद घाटी छोड़ने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या तेजी से बढ़ी है और सोमवार को जब कश्मीर से गाड़ियों का जम्मू पहुंचने का सिलसिला शुरू हुआ तो उनमें प्रवासी श्रमिक ही सबसे ज्यादा था।
श्रीनगर से जम्मू पहुंचने वाले छत्तीसगढ़ निवासी अजीत साहू ने बताया कि वह वहां ईंट-भट्टे पर काम करता था। उसके साथ उसकी पत्नी व दो छोटे बच्चे भी वहां पर ही रह रहे थे। जैसे ही हमें रात को दो बिहारी युवकों के मारे जाने की सूचना मिली तो हम ने उसी समय कश्मीर छोड़ने की तैयारी शुरू कर दी। हालांकि भट्ठा मालिक ने उन्हें वहां सुरक्षित रखने का आश्वासन दिया लेकिन परिवार की सुरक्षा को देखते हुए उसने घाटी को छोड़ना ही बेहतर समझा।
कश्मीर में इस समय करीब तीन लाख से अधिक श्रमिक ऐसे हैं जो कि अन्य प्रदेशों से आकर रह रहे हैं। बढ़ई, निर्माण कायों, कृषि, बागवानी से लेकर मजदूरी तक का यह लोग काम करते हैं। एक हजार के करीब लोग तो सिर्फ श्रीनगर में रेहड़ियां लगाते हैं। कश्मीर के लोग कई कामों के लिए इन्हीं पर निर्भर हैं। कुछ दिनों से आतंकियों ने इन लोगों को चुन-चुनकर निशाना बनाना शुरू किया है।
बारामुल्ला से वापस अपने घर जा रहे अन्य राज्यों के नागरिकों का कहना है कि रविवार को हुए आतंकी हमले से पहले हमें लग रहा था कि शायद हालात सुधरेंगे, लेकिन इस घटना के बाद अब डर सताने लगा है। अगर जिंदा रहेंगे तो कहीं जाकर भी पैसा कमा लेंगे। हालातों को देखते हुए हम लोगों ने घर वापस लौटने का फैसला किया है। जम्मू जाकर ट्रेन पकड़ेंगे और अपने घर चले जाएंगे।
एक अन्य प्रवासी नागरिक ने कहा कि कुलगाम में जिस तरह धान कटाई के लिए मजदूर खोजने के बहाने दो लोगों की हत्या कर दी गई है, उससे डर और भी बढ़ गया है। क्या पता कल कोई मदद करने के बहाने आए और हमें गोलियों से भून दे। खतरा तो पहले भी था पर अब मौत सिर पर मंडरा रही है। घाटी में शांति और विकास के चलते बौखलाए आतंकी किसी भी हद तक जा सकते हैं।