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जिम्मी मगिलिगन सेंटर में प्रकृति से रूबरू हुए जूनियर विद्यार्थी

जिम्मी मगिलिगन सेंटर में प्रकृति से रूबरू हुए जूनियर विद्यार्थी - Junior Students At Jimmy McGilligan Centre
1 फरवरी शुक्रवार को ज्ञानकृति स्कूल के ग्रेड 1 और 2 के विद्यार्थ‍ियों के साथ ही स्कूल के संस्थापक और निदेशक अक्षय गुप्ता जिमी मगिलिगन सेंटर पहुंचे और वहां पर्यावरण एवं सोलर ऊर्जा के बारे में बहुत कुछ सीखा।
 
जब ये सभी जिमी मगिलिगन सेंटर पहुंचे, तो वहां की निदेशिका जनक पलटा मगिलिगन ने मौसमी फसलों, सब्जियों और दुर्लभ फलों से हरे-भरे खेत की मनोरंजक सैर के साथ मुस्कुराकर उनका स्वागत किया।जब स्कूल के बच्चे और निदेशक यहां पहुंचे तो उनके लिए पहला रोमांच था हरे और सफेद चनों की लहराती हुई हर फसल, जहां से उन्होंने जनक पलटा की मदद से चने के पौधे भी उखाड़े और चने के दो प्रकार, काले एवं काबुली चनों के बारे में जाना।  
 
इन हरे चनों को छीलकर खाने का अलग ही आनंद होता है, जिसका इन बच्चों ने भरपूर फायदा उठाया। सिर्फ इतना ही नहीं, पर्यावरण के प्रति अपना प्रेम जाहिर करते हुए इसके छिलकों को फेंकने की बजाए, जनक दीदी के निर्देशन में उन्होंने गाय और बछड़ों को खिलाया और इनकी बर्बादी की बचत का सबक सीखा।
उन्होंने यहां यह भी सीखा कि किस प्रकार से सूखे चने के बीजों को सहेजकर इनका उत्पादन 50 से 60 गुना किया जाता है। चनों को कैसे पकाया, भूना और अंकुरित किया जाता है और पत्थर की चक्की में इसे डालकर कैसे इससे दाल बनाई जाती है। इतना ही नहीं दाल से बेसन और बेसन से मिठाई एवं अन्य व्यंजन बनाने के बारे में भी जनक दीदी द्वारा सभी को जानकारी दी गई। 
 
काबुली चने के बारे में बच्चों को बताया कि चने की यह प्रजाति अफ़गानिस्तान के काबुल से है। इसके बाद उन्हें  तुअर क्षेत्र दिखाने के साथ ही लाल तुअर की तैयार फसल और मटर और मक्का के बारे में भी बताया, जिन्हें बच्चे पॉपकॉर्न के लिए जानते हैं। 
 
जनक दीदी ने बच्चों को पवन चक्की दिखाई और सोलर कुकर पर चाय बनाने, सोलर प्रेशर कुकर में सीटी बजाना और सोलर डिश से तुरंत आग पकड़ने वाले कागज भी दिखाया जो बच्चों के लिए अविश्वसनीय सा था। 
यहां पर बच्चों ने अपनी ही ऊंचाई पर लगे रामफल और अमरूद जैसे फलों को भी छुआ जो उनके लिए विशेष अनुभव देने वाला था। ताजी हवा और प्राकृतिक वातावरण में पशु-पक्षियों के साथ बच्चों का अनुभव कितना आनंदपूर्ण था, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें घर जाने की बिल्कुल भी जल्दी नहीं थी।
 
यह केवल पर्यावरण के बारे में शैक्षिक नहीं है, बल्कि एक अनुभव भी है जो सुखद है,उन्हें प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनाता है, जानें कि विज्ञान कैसे काम करता है, प्रेम करने के लिए प्रेरित करता है, प्रकृति को संरक्षित और विकसित करता है और भावनाओं एवं संवेदनाओं के विकसित होने में भी मददगार साबित होता है।