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कश्मीर में उपद्रवियों को 'खुली छूट' पर उठने लगे सवाल

कश्मीर में उपद्रवियों को 'खुली छूट' पर उठने लगे सवाल - Jammu and Kashmir violence, Jammu and Kashmir government
श्रीनगर। पिछले 25 दिनों से कश्मीर में जो दृश्य देखने को मिल रहे हैं उनमें आजादी के मार्च, आजादी की रैलियां और इन रैलियों को संबोधित करते हुए आतंकी हैं। यह सब कुछ कर्फ्यू और कर्फ्यू की सख्त पाबंदियों के बावजूद हो रहा है। कश्मीर के इन दृश्यों को देखकर यह अंदाजा कोई भी लगा सकता है कि यह सब मिलीभगत और सरकार की मंजूरी के साथ हो रहा है। 
कश्मीर के हालात का एक पहलू यह है कि सिर्फ दिखावे को अब मुख्य सड़कों और चौराहों पर सुरक्षाकर्मी तैनात हैं और भीतरी तथा ग्रामीण इलाकों से उनकी तैनाती उठा ली गई है। जो सुरक्षाकर्मी तैनात हैं उनको सख्त निर्देश हैं कि बहुत ही खराब हालात में प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए और जो उनके सामने हो रहा हो उन्हें करने से न रोका जाए अर्थात आजादी के तराने, आजादी के समर्थन में नारेबाजी, दीवारों, दुकानों के शटरों और सड़कों पर 'गो इंडिया गो बैक' की लिखाई को आंखों से देखते हुए भी चुप रहने के निर्देश।
 
इसे चाहे आधिकारिक तौर पर नहीं माना जा रहा हो बल्कि दबे स्वर में जरूर माना जा रहा है कि राज्य की पीडीपी सरकार पूरी तरह से अब उन प्रदर्शनकारियों के साथ हो चली है जो आजादी की मुहिम को 1990 के दशक में फिर पहुंचा चुके हैं। यह कड़वा सच है कि कश्मीर के हालात ठीक 1990 के दशक की तरह हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि इसमें आधुनिकता आ चुकी है और साथ ही अब कश्मीर की चौथी और पांचवीं पीढ़ी भी इसमें शामिल हो चुकी है।
 
कश्मीर में अराजकता का माहौल है इससे कोई इंकार नहीं करता। हालत यह है कि सरकार में आसीन दूसरी पार्टी भाजपा के लगभग सारे विधायक कश्मीर को छोड़ जम्मू में रुके हुए हैं। राज्य की मुख्यमंत्री को भी मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट देने आए छात्रों के परिजनों के गुस्से का सामना करना पड़ा था। यही नहीं दक्षिण कश्मीर के करीब 10 पुलिस पोस्ट और स्टेशनों को सुरक्षाकर्मियों से खाली करा लिया गया है। इन स्टेशनों पर प्रदर्शनकारियों के हमले की आशंका थी।
 
सबसे ज्यादा मुश्किलें जम्मू कश्मीर पुलिस को हो रही है। उनके घर हिंसक प्रदर्शनकारियों के निशाने पर लिए जा रहे हैं। पुलिस वालों के घरों पर हमले हो रहे हैं और उनके परिवार वालों को भी नहीं बख्शा जा रहा है। त्राल समेत तीन बड़े पुलिस स्टेशन बंद किए जा चुके हैं। इन थानों पर तैनात पुलिसकर्मियों ने सीआरपीएफ शेल्टर और सेना के कैंपों में पनाह ले रखी है। एक सूत्र ने बताया कि पुलिस अधिकारियों ने अपने पहचान पत्र तक छुपा दिए हैं।
 
और अगर सूत्रों पर विश्वास करें तो मुख्यमंत्री ने सुरक्षाकर्मियों को सड़कों से गायब रहने के निर्देश दिए हुए हैं। सूत्रों ने बताया कि ऐसा प्रदर्शनकारियों के गुस्से को ठंडा करने के लिए किया गया है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर यहां तक दावा कर दिया है कि मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने पुलिस को कश्मीरी युवाओं से हिजबुल मुजाहिद्दीन कमांडर बुरहान वानी को मारने के लिए माफी मांगने को भी कहा है। 
 
फिलहाल इस पर सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। उन्होंने आगे कहा कि मुख्यमंत्री की तुष्टिकरण की राजनीति के कारण पूरी घाटी जल रही है। यहां कोई कानून व्यवस्था नहीं है और हर किसी में डर और खौफ है। और यह खौफ कब तक रहेगा, कोई नहीं जानता, क्योंकि राजनीतिक लाभ की खातिर पीडीपी कश्मीर को और कितना आग में धकेलेगी वह ही जानती है।
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