नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज हिन्दी फिल्म ‘इंदु सरकार’ के कल रिलीज होने का रास्ता साफ कर दिया। शीर्ष अदालत ने फिल्म की रिलीज को मंजूरी देते हुए उस महिला की याचिका को खारिज कर दिया, जो खुद को दिवंगत संजय गांधी की जैविक बेटी बताती है। महिला ने इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने की मांग की थी।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने कहा कि मधुर भंडारकर के निर्देशन में बनी फिल्म 1975-77 के आपातकाल के दौर पर आधारित है। यह फिल्म कानून के दायरे में एक ‘‘कलात्मक अभिव्यक्ति’’ है और इसकी कल की रिलीज को रोकने का कोई औचित्य नहीं है।
उधर, दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1975-1977 के आपातकाल पर आधारित इस फिल्म को सेंसर बोर्ड से मिली मंजूरी पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि यह बात किसी को फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग करने का अधिकार नहीं देती कि वह गांधी परिवार में काफी विश्वास रखते हैं।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने यह भी कहा कि बंबई उच्च न्यायालय भी ऐसी ही एक याचिका को खारिज कर चुका है इसलिए अदालत के फैसले से असहमति जताने की कोई वजह नहीं है।
अदालत ने कहा, ‘याचिका खारिज की जाती है।’ अदालतों द्वारा फिल्म की रिलीज को हरी झंडी दिखाए जाने के बाद, फिल्म निर्देशक भंडारकर ने खुशी जताई और पीटीआई से कहा, ‘मैं पिछले कुछ दिन से कठिनाइयों से गुजरा लेकिन अब मैं खुश हूं और राहत महसूस कर रहा हूं। यह बहुत अच्छा फैसला है, मैं बहुत खुश हूं कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने फिल्मकार के कलात्मक अधिकार को सराहा।’
उन्होंने कहा, ‘मैंने अपने वकील से बात की है, मैंने पूरा फैसला नहीं देखा लेकिन मुझे जो कुछ भी पता चला है, मुझे लगता है कि यह सर्वश्रेष्ठ फैसलों में से एक है। इसने भविष्य में हर फिल्मकार के लिए एक अलग मानदंड तय किया है।’
भंडारकर के वकील ने उच्चतम न्यायालय की पीठ को बताया कि उन्होंने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की ओर से बताए गए अंशों को पहले ही काट दिया है और हमारा दावा है कि फिल्म पूरी तरह साफ है। इसकी किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति के साथ कोई समानता नहीं है।
पीठ ने कहा, ‘जहां तक फिल्म के प्रदर्शन की बात है, हमारा मानना है कि यह कानून के दायरे में रहते हुए की गई कलात्मक अभिव्यक्ति है और इसे रोकने का कोई औचित्य नहीं है।’ शीर्ष न्यायालय ने कहा कि बंबई उच्च न्यायालय के 24 जुलाई के फैसले को चुनौती देते हुए महिला की ओर से दायर याचिका में दम नहीं है।
खुद को दिवंगत संजय गांधी की जैविक पुत्री बताने वाली प्रिया सिंह पॉल ने बंबई उच्च न्यायालय में अपनी याचिका खारिज होने के बाद उच्चतम न्यायालय का रूख किया था। उच्च न्यायालय में उन्होंने मांग की थी कि फिल्म को सीबीएफसी की ओर से दिया गया प्रमाण-पत्र निरस्त कर दिया जाए। गुरुवार को सुनवाई के दौरान प्रिया के वकील ने आरोप लगाया कि फिल्म में ‘मनगढ़ंत तथ्य’ हैं और इसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय की छवि को धूमिल किया गया है।
वहीं दिल्ली उच्च न्यायालय में वकील उज्ज्वल आनंद शर्मा द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया कि भंडारकर के निर्देशन वाली इस फिल्म में दिवंगत इंदिरा और उनके दिवंगत बेटे संजय की छवि को खराब दिखाया गया है और यह एक ‘प्रोपेगैंडा फिल्म’ है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को सुने जाने का कोई मतलब नहीं है और वह इस मुद्दे पर तभी विचार करेगी जब मृतकों के परिजन फिल्म के खिलाफ नाराजगी जताएंगे। (भाषा)