दिल्ली हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी, बिना सुनवाई के कारावास में रखना संविधान का उल्लंघन
दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल में कहा कि बिना सुनवाई के अंतहीन कारावास संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है और इसके साथ ही उसने धोखाधड़ी के एक मामले में 2022 में गिरफ्तार किए गए एक व्यक्ति को जमानत दे दी। न्यायमूर्ति अमित महाजन ने कहा कि यदि किसी आरोपी को मामले में समय पर सुनवाई के बिना लंबे समय तक कारावास में रहना पड़ता है, तो अदालतें आमतौर पर उसे जमानत पर रिहा करने के लिए बाध्य होंगी। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है।
न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में आरोप अभी तय नहीं किए गए हैं और अभियोजन पक्ष ने पूरक आरोप पत्र दाखिल करने के लिए बार-बार स्थगन का अनुरोध किया है और आरोपी की अंतिम जमानत याचिका खारिज हुए एक साल हो गया है। अदालत ने 24 दिसंबर को कहा, याचिकाकर्ता ने दो साल से अधिक समय हिरासत में बिताया है।
अदालत ने कहा, निकट भविष्य में सुनवाई पूरी होने की कोई संभावना नहीं है। ऐसी परिस्थितियों में, गवाहों की गवाही दर्ज नहीं किए जाने के कारण आवेदक को अंतहीन अवधि के लिए कारावास में रखना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
अदालत ने उस व्यक्ति को 50 लाख रुपए के निजी मुचलके और दो जमानत राशि पर रिहा कर दिया। अदालत ने कहा कि कानून जेल की तुलना में जमानत को प्राथमिकता देता है, जिसका उद्देश्य आपराधिक न्याय प्रणाली की आवश्यकताओं के साथ अभियुक्त के अधिकारों को संतुलित करना है।
दिल्ली पुलिस ने चावल के कंटेनर के लिए थोक ऑर्डर देने के बाद फर्जी भुगतान रसीदें जारी करके एक कंपनी से सात करोड़ रुपए की धोखाधड़ी करने के आरोप में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था। पुलिस ने बताया था कि पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने शिकायत दर्ज कराई कि संदीप तिलवानी ने कंपनी के साथ चावल के 640 कंटेनर की 74 बुकिंग की, जिनकी कीमत 11.2 करोड़ रुपए थी।
तिलवानी की ओर से अधिवक्ता उत्कर्ष सिंह ने दलील दी कि उन्हें मामले में फंसाया गया है और शिकायतकर्ता ने वित्तीय घाटे के कारण प्राथमिकी दर्ज कराई है। आरोपी ने कहा कि वह आयातकों और माल ढुलाई सेवाएं प्रदान करने वाली कंपनियों के बीच केवल एक बिचौलिया था और उसकी एकमात्र भूमिका पक्षों को एक-दूसरे से मिलवाना था। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour