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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2020 (21:51 IST)

जम्मू-कश्मीर में कोरोना काल में खुले 'दरबार' अब बंद, परंपरा रहेगी जारी

जम्मू-कश्मीर में कोरोना काल में खुले 'दरबार' अब बंद, परंपरा रहेगी जारी - 'Darbar' closed in Corona period in Jammu and Kashmir, tradition will continue
जम्मू। कोरोना काल में दोनों राजधानी शहरों में मजबूरीवश खोले गए दरबार अर्थात नागरिक सचिवालय की प्रथा अब नहीं होगी। पर 6-6 माह के लिए जम्मू तथा श्रीनगर में नागरिक सचिवालय को खोलने की प्रथा जिसे आम भाषा में ‘दरबार मूव’ कहते हैं, जारी रहेगी। इस बार 30 अक्तूबर को श्रीनगर में दरबार बंद होगा और 9 नवम्बर को जम्मू में खुलेगा।
संविधान की धारा 370 को हटा दिए जाने के बाद देश से दो संविधान और दो निशान तो चले गए पर डेढ़ सौ साल से चल रही दो राजधानियों की परंपरा अर्थात ‘दरबार मूव’ की परंपरा उनको सालती रहेगी जो धारा 370 का विरोध करते रहे हैं क्योंकि केंद्र शासित प्रदेश बन जाने क बाद भी यह परंपरा जारी है।
 
इस बार भी ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में दरबार (नागरिक सचिवालय) 30 अक्तूबर को सर्दियों के लिए बंद हो जाएगा और नौ नवंबर को शरदकालीन राजधानी जम्मू में बहाल होगा। इसके बाद अगले छह माह तक जम्मू कश्मीर प्रदेश की राजधानी और शीर्ष प्रशासन जम्मू में ही रहेगा।

अलबत्ता, आम लोगों के लिए ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में सर्दियों के दौरान मिनी सचिवालय क्रियाशील रहेगा। दरबार मूव में शामिल सभी अधिकारियों के लिए रैपिड एंटीजन टेस्ट भी अनिवार्य है। कोरोना के कारण इस बार मई में दरबार को मजबूरीवश दोनों राजधानी शहरों में खोलना पड़ा था। अब प्रशासन ने उसे बंद करने का फैसला किया है।
धारा 370 को हटाए जाने के बाद से ही ‘दरबार मूव’ को लेकर भिन्न प्रकार की अफवाहें उड़ने लगी थीं। जम्मू वाले इस बात को लेकर खुश थे कि अब ‘दरबार मूव’ से मुक्ति मिल जाएगी। दरअसल कहा यह जा रहा था कि जम्मू व श्रीनगर में दो नागरिक सचिवालय बना दिए जाएंगे। पर बड़ी रोचक बात यह है कि केंद्र शासित प्रदेश में राजधानी का कोई प्रावधान नहीं होने के कारण ‘दरबार मूव’ अर्थात राजधानी स्थानांतरण के प्रावधान को कैसे लिया जाए।
 
आतंकवाद का सामना कर रहे जम्मू-कश्मीर में दरबार मूव की प्रक्रिया को कामयाब बनाना भी एक बहुत बड़ी चुनौती है। इस दौरान कड़ी व्यवस्था के बीच सचिवालय के अपने 35 विभागों, सचिवालय के बाहर के करीब इतने ही मूव कार्यालयों के करीब 15 हजार कर्मचारी जम्मू व श्रीनगर रवाना होते रहते हैं। उनके साथ खासी संख्या में पुलिसकर्मी भी मूव करते हैं।
 
तंगहाली के दौर से गुजर रहे जम्मू कश्मीर में दरबार मूव पर सालाना खर्च होने वाला 300 करोड़ रुपए वित्तीय मुश्किलों को बढ़ाता है। सुरक्षा खर्च मिलाकर यह 700-800 करोड़ से अधिक हो जाता है। दरबार मूव के लिए दोनों राजधानियों में स्थायी व्यवस्था करने पर भी अब तक अरबों रुपए खर्च हो चुके हैं।
 
जम्मू कश्मीर में दरबार मूव की शुरुआत महाराजा रणवीर सिंह ने 1872 में बेहतर शासन के लिए की थी। कश्मीर जम्मू से करीब 300 किमी दूरी पर है, ऐसे में डोगरा शासक ने यह व्यवस्था बनाई कि दरबार गर्मियों में कश्मीर व सर्दियों में जम्मू में रहेगा। 19वीं शताब्दी में दरबार को 300 किमी दूर ले जाना एक जटिल प्रक्रिया थी व यातायात के कम साधन होने के कारण इसमें काफी समय लगता था।
 
अप्रैल महीने में जम्मू में गर्मी शुरू होते ही महाराजा का काफिला श्रीनगर के लिए निकल पड़ता था। महाराजा का दरबार अक्टूबर महीने तक कश्मीर में ही रहता था। जम्मू से कश्मीर की दूरी को देखते हुए डोगरा शासकों ने शासन को ही कश्मीर तक ले जाने की व्यवस्था को वर्ष 1947 तक बदस्तूर जारी रखा।
 
जब 26 अक्टूबर 1947 को राज्य का देश के साथ विलय हुआ तो राज्य सरकार ने कई पुरानी व्यवस्थाएं बदल दीं, लेकिन दरबार मूव जारी रखा। राज्य में 146 साल पुरानी यह व्यवस्था आज भी जारी है। दरबार को अपने आधार क्षेत्र में ले जाना कश्मीर केंद्रित सरकारों को सूट करता था, इसलिए इस व्यवस्था में कोई बदलाव नही लाया गया है।