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भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान किए थे ये 5 अद्भुत कार्य

ram katha | भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान किए थे ये 5 अद्भुत कार्य
भगवान राम को 'मर्यादा पुरुषोत्तम' कहा गया है अर्थात पुरुषों में सबसे श्रेष्ठ उत्तम पुरुष। मंथरा के द्वारा कैकयी के कान भरने के बाद कौशल्या पुत्र भगवान श्रीराम को उनके पिता दशरथ ने 14 वर्ष का वनवास सुनाया। वनवास में उनके साथ उनके भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता भी गई थीं। नए शोधानुसार रामायण काल को लगभग 7323 ईसा पूर्व का बताया गया है, जबकि भगवान श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व चैत्र मास की नवमी को हुआ था। वैसे तो प्रभु श्रीराम ने 14 वर्ष के अपने वनवास काल में बहुत कुछ किया था लेकिन यहां आप पढ़िए मात्र 5 अद्भुत कार्य।
 
 
1.जीवन को बनाया गीता:-
भारत में यह प्रचलित है कि प्रभु श्रीराम ने जैसा जीवन जिया, वैसा जिएं और भगवान श्रीकृष्ण ने जो कहा, उसे मानें अर्थात कोई भी व्यक्ति श्रीकृष्ण के जैसा जीवन नहीं जी सकता, लेकिन प्रभु श्रीराम के जैसा जीवन जी सकता है। प्रभु श्रीराम ने गीता नहीं कही, बल्कि उन्होंने खुद के जीवन को ही गीता के उपदेशों की तरह बनाकर लोगों को दिखाया। प्रभु श्रीराम ने वन में बहुत ही सादगीभरा तपस्वी का जीवन जिया। वे जहां भी जाते थे तो 3 लोगों के रहने के लिए एक झोपड़ी बनाते थे। वहीं भूमि पर सोते, रोज कंद-मूल लाकर खाते और प्रतिदिन साधना करते थे। उनके तन पर खुद के ही बनाए हुए वस्त्र होते थे। धनुष और बाण से वे जंगलों में राक्षसों और हिंसक पशुओं से सभी की रक्षा करते थे। कोई सोच सकता है कि उस काल में कितने भयानक जंगल हुआ करते थे और साथ ही उन जंगलों में भयानक हिंसक पशुओं के साथ ही हिंसक जंगली मानव भी हुआ करते थे।
 
 
2.संतों की सेवा और रक्षा:-
उन्होंने देश के सभी संतों के आश्रमों को बर्बर लोगों के आतंक से बचाया। इसका उदाहरण सिर्फ 'रामायण' में ही नहीं, देशभर में बिखरे पड़े साक्ष्यों में आसानी से मिल जाएगा। विश्वामित्र, वाल्मीकि, अत्रि या ऋषि मतंग ही नहीं, सैकड़ों ऋषियों के आश्रम को उन्होंने वेद ज्ञान और ध्यान के लिए एक सुरक्षित स्थान बनाया था।
 
 
उन्होंने चित्रकूट में रहकर धर्म और कर्म की शिक्षा-दीक्षा ली। यहीं पर वाल्मीकि और मांडव्य आश्रम था। यहीं पर से राम के भाई भरत उनकी चरण पादुका ले गए थे। चित्रकूट के पास ही सतना में अत्रि ऋषि का आश्रम था। अत्रि को राक्षसों से मुक्ति दिलाने के बाद प्रभु श्रीराम दंडकारण्य क्षेत्र में चले गए, जहां आदिवासियों की बहुलता थी। यहां के आदिवासियों को बाणासुर के अत्याचार से मुक्त कराने के बाद प्रभु श्रीराम 10 वर्षों तक आदिवासियों के बीच ही रहे।
 
 
वर्तमान में करीब 92,300 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले इस दंडकारण्य इलाके के पश्चिम में अबूझमाड़ पहाड़ियां तथा पूर्व में इसकी सीमा पर पूर्वी घाट शामिल हैं। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के हिस्से शामिल हैं। इसका विस्तार उत्तर से दक्षिण तक करीब 320 किमी तथा पूर्व से पश्चिम तक लगभग 480 किलोमीटर है।
 
 
3.वनवासी और आदिवासियों के पूज्जनीय :-
अपने वनवास के दौरान उन्होंने देश के सभी आदिवासियों और दलितों को संगठित करने का कार्य किया और उनको जीवन जीने की शिक्षा दी। 14 वर्ष के वनवास में से अंतिम 2 वर्ष को छोड़कर राम ने 12 वर्षों तक भारत के आदिवासियों और दलितों को भारत की मुख्य धारा से जोड़कर उन्हें श्रेष्ठ बनाया। यदि आप निषाद, वानर, मतंग और रीछ समाज की बात करेंगे तो ये उस काल के दलित या आदिवासी समाज के लोग ही हुआ करते थे। ऐसे कई उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं जिससे पता चलेगा कि राम ने आदिवासियों और दलितों के लिए क्या-क्या किया। आज उनमें से कई ऐसे समाज हैं, जो श्रेष्ठता के क्रम में ऊपर जाकर क्षत्रिय या ब्राह्मण हो गए हैं। प्रभु श्रीराम संपूर्ण भारत के वनवासी और आदिवासी समाज के बीच एक लोकप्रिय देव रहे हैं।
 
 
वर्तमान में आदिवासियों, वनवासियों और दलितों के बीच जो धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा, रीति और रिवाज हैं, वे सभी प्रभु श्रीराम की ही देन हैं। भगवान राम भी वनवासी ही थे। उन्होंने वन में रहकर संपूर्ण वनवासी समाज को एक-दूसरे से जोड़ा और उनको सभ्य एवं धार्मिक तरीके से रहना सिखाया। बदले में प्रभु श्रीराम को जो प्यार मिला, वह सर्वविदित है।
 
 
वन में रहकर उन्होंने वनवासी और आदिवासियों को धनुष एवं बाण बनाना सिखाया, तन पर कपड़े पहनना सिखाया, गुफाओं का उपयोग रहने के लिए कैसे करें, ये बताया और धर्म के मार्ग पर चलकर अपने री‍ति-रिवाज कैसे संपन्न करें, यह भी बताया। उन्होंने आदिवासियों के बीच परिवार की धारणा का भी विकास किया और एक-दूसरे का सम्मान करना भी सिखाया। उन्हीं के कारण हमारे देश में आदिवासियों के कबीले नहीं, समुदाय होते हैं। उन्हीं के कारण ही देशभर के आदिवासियों के रीति-रिवाजों में समानता पाई जाती है।
 
 
4.अखंड भारत के निर्माता:-
भगवान श्रीराम ने ही सर्वप्रथम भारत की सभी जातियों और संप्रदायों को एक सूत्र में बांधने का कार्य अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान किया था। एक भारत का निर्माण कर उन्होंने सभी भारतीयों के साथ मिलकर अखंड भारत की स्थापना की थी। भारतीय राज्य तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, केरल, कर्नाटक सहित नेपाल, लाओस, कंपूचिया, मलेशिया, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, बाली, जावा, सुमात्रा और थाईलैंड आदि देशों की लोक-संस्कृति व ग्रंथों में आज भी राम इसीलिए जिंदा हैं। श्रीराम ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने धार्मिक आधार पर संपूर्ण भारत को एकजुट कर दिया था। इस संपूर्ण क्षेत्र के आदिवासियों में राम और हनुमान को सबसे ज्यादा पूज्यनीय इसीलिए माना जाता है। लेकिन अंग्रेज काल में ईसाइयों ने भारत के इसी हिस्से में धर्मांतरण का कुचक्र चलाया और राम को दलितों से काटने के लिए सभी तरह की साजिश की, जो आज भी जारी है।
 
 
वैसे तो राम के काल में कोई ऊंचा या नीचा नहीं होता था। भगवान किसी जाति-वर्ग के नहीं होते और न ही वे मनुष्य जाति में भेद करते हैं। रामायण काल में जातिगत जो भिन्नता थी वह मनुष्यों के रंग, रूप और आकार को लेकर थी, जैसे वानर, ऋक्ष, रक्ष और किरात जातियां मनुष्य से भिन्न थीं। केवट, शबरी, जटायु, सुग्रीव और संपाति आदि से राम के संबंध दर्शाते हैं कि उस काल में ऐसी कोई जातिगत भावना नहीं थी, जो आज हमें देखने को मिलती है। हनुमानजी के गुरु मतंग ऋषि आज की जातिगत व्यवस्था अनुसार तो दलित ही कहलाएंगे?
 
 
5.सेना का गठन और शिवलिंग की स्थापना:-
14 वर्ष के वनवास में से अंतिम 2 वर्ष प्रभु श्रीराम दंडकारण्य के वन से निकलकर सीता माता की खोज में देश के अन्य जंगलों में भ्रमण करने लगे और वहां उनका सामना देश की अन्य कई जातियों और वनवासियों से हुआ। उन्होंने कई जातियों को इकट्ठा करके एक सेना का गठन किया और अंत में लंका पर चढ़ाई कर दी। इस दौरान उन्होंने नल और नील के माध्यम से विश्व का पहला सेतु बनवाया था और वह भी समुद्र के ऊपर।
 
 
हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने वानर सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े। तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्‍तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्‍क स्‍ट्रेट से घिरा हुआ है। यहां श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला और श्रीराम ने अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित कर विचार-विमर्श किया। लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया।
 
 
रामेश्‍वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है। रामेश्‍वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है। महाकाव्‍य 'रामायण' के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।
 
 
वाल्मीकि के अनुसार 3 दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। इस स्थान को धनुषकोडी कहते हैं। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का सेतु निर्माण करवाया। सेतु पर से वानर सेना ने लंका में प्रवेश किया और अंतत: भयानक युद्ध प्रारंभ हुआ जिसमें श्रीराम की जीत हुई।

संदर्भ : । इति राम कथा। वाल्मिकी रामायण ।
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