गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. सनातन धर्म
  3. रामायण
  4. श्री राम के जीवन से जुड़ी 10 अनसुनी बातें, आप भी जानकर चौंक जाएंगे
Written By WD Feature Desk

श्री राम के जीवन से जुड़ी 10 अनसुनी बातें, आप भी जानकर चौंक जाएंगे

Interesting facts of Ram life
Interesting facts of Ram life:  भगवान् राम भगवान् विष्णु के सातवें अवतार हैं। प्रभु श्रीराम के जीवन से जुड़े कई अनसुने और रोचक तथ्य हैं जो आप नहीं जानते होंगे। वाल्मीकि रामायण में जो लिखा उसे इतर भी कई रामायण प्रचलित हैं जिनमें प्रभु श्रीराम के जीवन के अन्य पहलुओं को नए तरीके से उजागर किया गया है और कुछ ऐसी बातें भी बताई गई है जोकि आपको वाल्मीकि रामायण में पढ़ने को नहीं मिलेगी।
 
14 कलाएं : श्रीराम को 16 में से 14 कलाएं ज्ञात थीं। यह चेतना का सर्वोच्च स्तर होता है। इसीलिए प्रभु श्रीराम को पुरुषों में उत्तम कहा गया है।
 
16 गुणों से युक्त : श्रीराम सोलह गुणों से युक्त थे। 1. गुणवान (योग्य और कुशल), 2. किसी की निंदा न करने वाला (प्रशंसक, सकारात्मक), 3. धर्मज्ञ (धर्म का ज्ञान रखने वाला), 4. कृतज्ञ (आभारी या आभार जताने वाला विनम्रता), 5. सत्य (सत्य बोलने वाला और सच्चा), 6. दृढ़प्रतिज्ञ (प्रतिज्ञा पर अटल रहने वाला, दृढ़ निश्‍चयी ), 7. सदाचारी (धर्मात्मा, पुण्यात्मा और अच्छे आचरण वाला, आदर्श चरित्र), 8. सभी प्राणियों का रक्षक (सहयोगी), 9. विद्वान (बुद्धिमान और विवेक शील), 10. सामर्थशाली (सभी का विश्वास और समर्थन पाने वाला समर्थवान), 11. प्रियदर्शन (सुंदर मुख वाला), 12. मन पर अधिकार रखने वाला (जितेंद्रीय),13. क्रोध जीतने वाला (शांत और सहज), 14. कांतिमान (चमकदार शरीर वाला और अच्छा व्यक्तित्व), 15. वीर्यवान (स्वस्थ्य, संयमी और हष्ट-पुष्ट) और 16. युद्ध में जिसके क्रोधित होने पर देवता भी डरें (वीर, साहसी, धनुर्धारि, असत्य का विरोधी)।
 
श्रीराम ने किस आयु में किया कौन सा काम : श्रीराम ने किस आयु में किया कौन सा काम : कहते हैं कि सीता और राम के विवाह के वक्त रामजी की आयु सिर्फ 15 साल थी, जबकि सीताजी की मात्र 6 साल की थीं। शादी के बाद दोनों 12 वर्षों तक अयोध्या में रहे। इसके बाद करीब 27 की उम्र में श्रीराम को वनवास हो गया था। वह में 14 वर्ष रहने के बाद जब श्रीराम और सीता लौटे तब सीताजी की आयु 32 और रामजी की उम्र 41 हो गई थी।
 
श्रीराम का असली नाम : श्रीराम का जन्म नाम दशरथ राघव रखा गया था परंतु बाद में नामकरण संस्कार के समय उनका राम नाम रघु राजवंश के गुरु महर्षि वशिष्ठ ने रखा था।
 
गिलहरी की कहानी : रामसेतु बनाते वक्त गिलहरी भी छोटे छोटे कंकर पत्‍थर उठाकर बड़े पत्थरों के बीच में फेंक रही थीं। यह देखकर वानर सेना ने उनका मजाक उड़ाया और उन्हें अपने रास्ते से हट जाने के लिए कहा। एक वानर ने तो एक गिलहरी की पूंछ पकड़कर उसे हवा में उछाल किया जो सीधे श्रीराम की हाथों की हथेलियों में जा गिरी। श्रीराम ने उसे नीचे गिरने से बचा लिया था। फिर उन्होंने वानरों को समझाया कि तुम जो बड़े पत्थर समुद्र में जमा रहे हो वे सभी पत्‍थर तभी मजबूत रहेंगे जबकि इन गिलहरियों के द्वारा फेंके जा रहे छोटे कंकर पत्‍थर उसके बीच जमें रहेंगे। इसलिए किसी के भी काम को छोटा न समझो। इसके बाद श्रीराम बडे प्रेम से गिलहरी पर अपनी अंगुलियां फेरकर उसे आशीर्वाद देते हैं। गिलहरी पर जो तीन धारियां हैं वह श्रीराम के आर्शीवाद के कारण हैं, क्योंकि उसने रामसेतु निर्माण में सहयोग‍ किया था।
 
भगवान श्रीराम के जीजाजी : भगवान श्रीराम के जीजाजी का नाम ऋषि श्रृंगी था, जो शांता के पति थे। यानी श्रीराम की बहन का नाम शांता था। ऋषि श्रृंगी को ऋष्यशृंग भी कहा जाता था। वे बड़े विद्वान और यज्ञकर्ता थे। गुरु वशिष्ठ के कहने पर राजा दशरथ से उनसे पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया था जिसके कारण ही दशरथ जी को 4 पुत्रों की प्राप्ति हुई थी।
 
पहला कोदंड : बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि भगवान राम के धनुष का नाम कोदंड था इसीलिए प्रभु श्रीराम को कोदंड ( Kodanda ) कहा जाता था। 'कोदंड' का अर्थ होता है बांस से निर्मित। कोदंड एक चमत्कारिक धनुष था जिसे हर कोई धारण नहीं कर सकता था। कोदंड एक ऐसा धनुष था जिसका छोड़ा गया बाण लक्ष्य को भेदकर ही वापस आता था।
ram mandir ayodhya
एक बार की बात है कि देवराज इन्द्र के पुत्र जयंत ने श्रीराम की शक्ति को चुनौती देने के उद्देश्य से अहंकारवश कौवे का रूप धारण किया और सीताजी को पैर में चोंच मारकर लहू बहाकर भागने लगा। तुलसीदासजी लिखते हैं कि जैसे मंदबुद्धि चींटी समुद्र की थाह पाना चाहती हो उसी प्रकार से उसका अहंकार बढ़ गया था और इस अहंकार के कारण वह मूढ़ मंदबुद्धि जयंत कौवे के रूप में सीताजी के चरणों में चोंच मारकर भाग गया। जब रक्त बह चला तो रघुनाथजी ने जाना और धनुष पर तीर चढ़ाकर संधान किया। अब तो जयंत जान बचाने के लिए भागने लगा।
 
वह अपना असली रूप धरकर पिता इन्द्र के पास गया, पर इन्द्र ने भी उसे श्रीराम का विरोधी जानकर अपने पास नहीं रखा। तब उसके हृदय में निराशा से भय उत्पन्न हो गया और वह भयभीत होकर भागता फिरा, लेकिन किसी ने भी उसको शरण नहीं दी, क्योंकि रामजी के द्रोही को कौन हाथ लगाए? जब नारदजी ने जयंत को भयभीत और व्याकुल देखा तो उन्होंने कहा कि अब तो तुम्हें प्रभु श्रीराम ही बचा सकते हैं। उन्हीं की शरण में जाओ। तब जयंत ने पुकारकर कहा- 'हे शरणागत के हितकारी, मेरी रक्षा कीजिए प्रभु श्रीराम।'...और कोदंड का बाण वहीं रुक गया।
 
विष्णु सहस्त्रनाम : विष्णु के 1000 नामों में राम नाम 394 नम्बर पर है। अंत में बताया गया है कि सिर्फ राम नाम जपने से ही विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ पूर्ण होता है। विष्णु सहस्रनाम का पाठ पढ़ने से समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। घर में धन-धान्य, सुख-संपदा बनी रहती है। यदि आप विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र यानी श्रीहरि के 1000 नामों और उनकी महीमा को पढ़ने में असमर्थ हैं तो मात्र एक श्लोक से ही इस पाठ का पुण्‍य प्राप्त किया जा सकता है।
 
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। 
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥
अर्थ : शिवजी माता पार्वतीजी से कहते हैं कि श्रीराम नाम के मुख में विराजमान होने से राम राम राम इसी द्वादश अक्षर नाम का जप करो। हे पार्वति! मैं भी इन्हीं मनोरम राम में रमता हूं। यह राम नाम विष्णु जी के सहस्रनाम के तुल्य है। भगवान राम के 'राम' नाम को विष्णु सहस्रनाम के तुल्य कहा गया है। इस मंत्र को श्री राम तारक मंत्र भी कहा जाता है। और इसका जाप, सम्पूर्ण विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु के 1000 नामों के जाप के समतुल्य है। यह मंत्र श्री राम रक्षा स्तोत्रम् के नाम से भी जाना जाता है।
 
सूर्यवंशी राम : भगवान राम ने सूर्य पुत्र राजा इक्ष्वाकु वंश में जन्म लिया था. इसलिए भगवान राम को सूर्यवंशी भी कहा जाता है। उनके पूर्वज जैन धर्म के तीर्थंकर ऋषभनाथ, निमिनाथ आदि थे। इसी वंश में राजा दिलीप, भागिरथ, राजा पृथु, राजा रघु आदि हुए। रघु से सभी रघुवंशी भी कहलाए। राम के बाद कुश के वंश में ही आगे चलकर गौतम बुद्ध हुए, ऐसी मान्यता है।
 
इंद्र का रथ : मायावी रावण को हराने के लिए भगवान राम को देवराज इंद्र ने एक रथ दिया था. इसी रथ पर बैठकर भगवान राम ने रावण का वध किया था।
ये भी पढ़ें
भगवान श्री राम अयोध्या आगमन के पहले कहां रुके थे?