गुरुवार, 21 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. »
  3. चुनाव 2013
  4. »
  5. राजस्थान
Written By भाषा

राजस्थान में लौटा वसुंधरा का राज

राजस्थान में लौटा वसुंधरा का राज -
FILE
जयपुर। पांच साल पहले भाजपा में भितरघात के कारण भारी निराशा झेलने वाली वसुंधरा राजे ने इस बार अपनी पार्टी को राजस्थान में शानदार वापसी दिलवाई और उनकी इस भारी सफलता से न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बहुत बढ़ गया है बल्कि पार्टी संगठन में उनका कद भी बढ़ जाएगा।

ग्वालियर के सिंधिया राजवंश से संबंध रखने वाली 60 वर्षीय वसुंधरा का विवाह राजस्थान में हुआ है। भितरघात के चलते उन्होंने पूर्व में एक बार पार्टी से इस्तीफा देने तक की घोषणा कर दी थी, लेकिन बाद में पार्टी आलाकमान ने उनके नेतृत्व को पूरी तरह समर्थन देते हुए अशोक गहलोत सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए राज्य में उन्हें अपना मुख्य चेहरा बनाया।

राजस्थान में इस बार वसुंधरा को जीत दिलवाने लिए नरेन्द्र मोदी ने भी राज्य के कई बार दौरे किए और कई चुनावी रैलियों को संबोधित किया।

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से उठकर राजस्थान की सबसे शक्तिशाली नेता बनने के पीछे उनके करिश्माई व्यक्तित्व और दृढ़ इच्छाशक्ति की भी बड़ी भूमिका मानी जाती है। इसके चलते ही उन्होंने अपने 30 वर्ष के लंबे राजनीतिक जीवन में पार्टी के भीतर और बाहर अपने विरोधियों से जमकर संघर्ष किया।

राजस्थान में जब 2008 के विधानसभा चुनाव और बाद के लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन आशाजनक नहीं रहा था तो उनके विरोधियों ने इसके लिए वसुंधरा के नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराने का प्रयास किया था। लेकिन ऐसी विफलताएं वसुंधरा के हौसलों को पस्त नहीं कर पाई।

मराठी राजवंश से संबंध रखने वाली वसंधुरा का जाट परिवार में विवाह हुआ है। वसुंधरा की मां विजयाराजे सिंधिया भाजपा की पुरानी पीढ़ी की अग्रणी नेताओं में शामिल थीं जबकि उनके भाई दिवंगत माधवराव सिंधिया कांग्रेस नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके थे। वसुंधरा 5 बार लोकसभा चुनाव और 3 बार विधानसभा चुनाव जीत चुकी हैं।

वसुंधरा को 1984 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सदस्य बनाया गया था। उसके 1 वर्ष बाद वह राजस्थान में युवा मोर्चा की उपाध्यक्ष चुनी गईं और उसी साल वे राज्य विधानसभा में निर्वाचित हुईं। वे 2003 में राज्य की पहली मुख्यमंत्री बनीं। शुरू में उनके विरोधियों ने उन्हें अंग्रेजी बोलने वाली महारानी का तमगा देकर उनका उपहास किया।

वसुंधरा के नेतृत्व में भगवा पार्टी ने 2003 में 200 में से 120 सीटें जीती थीं। इससे पहले राज्य में भाजपा को इतनी बड़ी सफलता पूर्व मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत के काल में भी नहीं मिल पाई थी।

नौकरशाही पर मजबूत पकड़ रखने के कारण जहां वसुंधरा को एक योग्य प्रशासक माना जाता है वहीं कुछ लोग उन पर तानाशाही रवैया चलाने का आरोप लगाते हैं। उनके इसी व्यवहार के कारण राज्य के गुर्जर एवं मीणा जैसे शक्तिशाली जातीय गुट रूठ गए थे जिसका खामियाजा भाजपा को 2008 के चुनाव में भुगतना पड़ा था।

वसुंधरा 2008 में विपक्ष की नेता बन गई थीं लेकिन फरवरी 2010 में पार्टी के निर्देशन पर उन्हें इस पद से हटना पड़ा। उन्हें लोकसभा चुनाव में राजस्थान की 25 में से कुल 4 सीटें पाटी की झोली में आने के कारण इस फजीहत का सामना करना पड़ा।

उस समय आरएसएस के हस्तक्षेप के कारण उन्हें इस पद से हटना पड़ा था। वैसे माना जाता है कि वसुंधरा के संघ से बहुत मधुर संबंध नहीं रहते हैं। उन्होंने संघ के करीबी समझे जाने वाले गुलाबचंद कटारिया की पिछले साल 28 दिन की राज्यव्यापी यात्रा रद्द करवाकर अपनी मजबूती का संकेत दिया।

राजस्थान में अधिकतर विधायक जानते हैं कि वसुंधरा का व्यक्तितत्व कटारिया से अधिक करिश्माई है। यही कारण है कि अधिकतर विधायक अपने को वसुंधरा खेमे में रखना पसंद करते हैं। उन्हें बाद में पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया और उन्होंने अप्रैल में सुराज संकल्प यात्रा निकाली जिसे राज्य में अच्छी प्रतिक्रिया मिली। बाद में उन्हें पार्टी का मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया गया।

वसुंधरा मुंबई विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र की स्नातक थीं और उन्होंने राजनीति विज्ञान की डिग्री ली। व्यक्तिगत तौर पर एक आधुनिक नेता होने के बावजूद ग्रामीण इलाकों में जाने और उनके पारंपरिक परिधान पहनने और उनके साथ आसानी से घुलने-मिलने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती। (भाषा)