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शुक्रवार, 29 नवंबर 2013 (11:08 IST)
चुरु में भाजपा के राठौड़ की हालत खराब
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चुरु। राजस्थान में धोरों की धरती के शहर चुरु की मौसमी ठंड ने विधानसभा चुनावों में चुनावी मुद्दों को अपनी चपेट में ले लिया है। चुरु विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के पूर्व मंत्री राजेन्द्र राठौड़ का कांग्रेस के मकबूल मंडेलिया से सीधा मुकाबला माना जा रहा है।
चुरु सीट पर विधानसभा चुनावों में जातीय समीकरण ही प्रत्याशी की हार-जीत का फैसला करते हैं। प्रचार के लिए बड़े नेताओं की सभा में जुटने वाली भीड़ से नेता प्रफुल्लित हो जाते हैं। बड़े नेता तो मुद्दों के आधार पर सभा में वोट मांगते हैं लेकिन सभा समाप्त होते ही मुद्दे हवा हो जाते हैं और श्रोता भाषण भूल जाते हैं।
चुरु में जाट, मुसलमान तथा दलित समाज के वोट जीत का आधार माने जाते हैं। दारिया कांड के दंश से नाराज जाटों को वापस जोड़ने के लिए राठौड़ को एड़ी से चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है।
हर चुनाव में राठौड़ का प्रचार कर उन्हें वोट दिलवाने वाले चुरु संसदीय क्षेत्र से सांसद रामसिंह कस्वा ने दारिया प्रकरण के कारण इस बार राठौड़ से दूरी बना रखी है। इसके अलावा राठौड़ के साथ कोई अन्य मौजीज जाट नेता भी दिखाई नहीं दे रहा है।
अपनी चुनावी तैयारियों के सिलसिले में राठौर शहरों और गांवों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए वे घर-घर दस्तक दे रहे हैं। दूसरी तरफ मौजूदा विधायक मंडेलिया की छवि साफ है। उनके 5 साल के कार्यकाल में उन पर कोई आरोप नहीं लगा।
मुसलमान और दलितों को कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता है लेकिन इस बार बहुजन समाज पार्टी प्रत्याशी धनपत के हरिजनों में सेंधमारी करने से कांग्रेस प्रत्याशी का समीकरण बिगड़ने की संभावना है। जाट समाज की नाराजगी और बसपा प्रत्याशी के मजबूती के साथ खड़े होने से भाजपा की प्रदेशाध्यक्ष वसुंधरा राजे के करीबी राठौड़ को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है।
जातीय समीकरणों के अलावा इस बार एक समीकरण और है वह है यहां से खड़े हुए एक प्रत्याशी के निधन के कारण चुनाव आयोग ने चुरु सीट पर मतदान आगामी 13 दिसंबर को कराने का निर्णय लिया है, जबकि राजस्थान विधानसभा की शेष 199 सीटों के परिणाम 8 दिसम्बर को ही आ जाएंगे। परिणामस्वरूप जिस पार्टी का बहुमत दिखाई देगा अथवा बहुमत से एक-दो का ही अंतर रहा तो दोनों ही पार्टियां पूरी ताकत झोंक देगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव परिणाम आने के बाद चुरु में मतदान होने के कारण जिस पार्टी के पक्ष में लहर का असर दिखाई देगा। उसी पार्टी के प्रत्याशी को फायदा मिलेगा और मुकाबला त्रिकोणीय होने के बजाय सीधे होने के आसार बन जाएंगे। इसके साथ ही जाट वोटों की खामोशी टूटेगी, क्योंकि फिलहाल यहां जाट मतदाता खामोश दिखाई दे रहा है। (वार्ता)