हां, यह सब हुआ कुंभ के मेले में
प्रयागराज कुंभ पर बेहतरीन कविता
सनातनी आस्थाओं का धर्मध्वज फहरा,
कुंभ के मेले में।
श्रद्धाजनित दैवी शक्तियों ने दिया पहरा,
कुंभ के मेले में ।।1।।
कितने कलुषित विश्वास/विचार, मित्रों!
बह गए गंगा की धारा में।
अनगिन मनों में बस आस्थाओं के निखार,
रह गए गंगा की धारा में।।2।।
भारतीय संस्कृति के त्याग, तप, साधना, भक्ति के रंग,
उजागर हुए कुंभ के मेले में।
विश्व के टिप्पणीकार भी देख अति मानवीय कर्तबों की उमंग,
सिहर गए कुंभ के मेले में ।।3।।
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