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Last Updated :प्रयागराज , गुरुवार, 2 जनवरी 2025 (23:44 IST)

Maha Kumbh 2025 : भस्म लपेटे नागा साधुओं का महाकुंभ में प्रवेश, श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की पेशवाई देख दंग रह गए लोग

Maha Kumbh 2025  : भस्म लपेटे नागा साधुओं का महाकुंभ में प्रवेश, श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की पेशवाई देख दंग रह गए लोग - mahanirvani akhada sadhus and saints entered prayagraj mahakumbh 2025
कुंभ मेला कुछ दिन में शुरू हो जाएगा और उसमें 13 अखाड़ों के लाखों साधु-संन्यासी शामिल होंगे। प्रयागराज महाकुंभ 13 जनवरी 2025 से शुरू होकर 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि को होगा। 45 दिन तक चलने वाले इस महाकुंभ की विराटता और भव्यता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यहां दूरदराज से लाखों करोड़ों लोग स्नान करके पाप से मुक्ति की कामना करते हैं। प्रयागराज महाकुंभ पर विदेशी पर्यटक/ भक्त भी आते हैं जो लंबे समय तक गंगा, युमना और सरस्वती त्रिवेणी संगम का इंतजार करते हैं। 
 
प्रयागराज महाकुंभ में पेशवाई प्रवेश चल रहा है, आज देश में दूसरा नम्बर रखने वाले श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़े छावनी प्रवेश किया है। जूना अखाड़े के बाद में श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़े में सबसे ज्यादा साधु-संन्यासियों की संख्या होती है। यह अखाड़ा धार्मिक गतिविधियों के साथ समाज में सकारात्मक सोच और आवश्यकता पड़ने पर शस्त्र भी उठाने के लिए जाना जाता है। श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े के अनुयायियों का कहना है कि वे बच्चों की तरह नग्नावस्था में रहते हैं, शास्त्र और शस्त्र उनके वस्त्र है।
 
 गुरुवार को श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की पेशवाई बाघंबरी गद्दी के सामने बने महानिर्वाणी अखाड़े से प्रारंभ होकर संगम रेलवे लाइन से बक्शी बांध, बक्शी बांध पुलिस चौकी, निराला मार्ग होकर ओल्ड जीटी दारागंज मार्ग, दारागंज थाने, गंगामूर्ति तिराहा, रिवर फ्रंट (किलाघाट) मार्ग, शास्त्री ब्रिज से त्रिवेणी मार्ग होते हुए अखाड़ा शिविर में पहुंची। पेशवाई के दौरान अखाड़े के श्री महंत, महामंडलेश्वर और नागा साधु शामिल रहे।

पेशवाई प्रवेश में महंत और महामंडलेश्वर ऊंट और रथ पर विराजमान हुए। बैंड-बाजे के साथ झूमते गाते अनुयायियों को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु सड़क पर स्वागत करते दिखाई दिए, वहीं नागा साधुओं ने अपने शक्ति का परिचय देते हुए रण कौशल का जलवा भी प्रदर्शित किया। इसी के साथ पांचवां अखाड़ा महाकुंभ क्षेत्र में छावनी प्रवेश पा गया है।
 
महाकुंभ में शैव और वैष्णव मत के मानने वाले भारत देश के सभी 13 अखाड़े प्रवेश पाते हैं। अखाड़ों के अनुयायी महाकुंभ के 45 दिनों तक श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं। श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा भारत के दूसरे नम्बर पर आता है। सनातनी धर्माचार्यों का मत है कि महानिर्वाणी अखाड़ा आदि गुरु शंकराचार्य के बाद बना हैं। मठों के साधुओं ने धर्म की रक्षा के लिए इन अखाड़ों की स्थापना हुई हैं। सनातन मंदिरों को बचाने, बहन-बेटियों पर अत्याचार रोकने के लिए, धर्म पताका लहराने और धर्म के विरोधियों के खिलाफ एकजुट होकर खड़े होना इस अखाड़े की पहचान है। इसलिए धर्म योद्धाओं के नाम से नागा संन्यासी सदा ही अपनी गौरवपूर्ण पहचान बनाए हुए हैं। 1664 में सनातन धर्म की रक्षा के लिए इन संन्यासियों ने औरंगजेब की सेना को भी सबक सिखाया था। इतिहास में नागा संन्यासियों और उनके अखाड़ों के विषय में बहुत कम जानकारी मिलती है। 
 
मिली जानकारी के मुताबिक (प्रयागराज) पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा की स्थापना विक्रम संवत् 805 में हुई थी। अटल अखाड़े से जुड़े 8 संतों ने मिलकर इस अखाड़े की नीव रखी थी। इस अखाड़े के इष्ट देव कपिल भगवान को माना जाता हैं और यह अखाड़ा बिहार के हजरीबाग गडकुंडा के सिद्धेश्वर महादेव मंदिर में बनाया गया था। इस अखाड़े के प्रयागराज आने के बाद श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा नाम से पहचान मिली है, वर्तमान में अखाड़े के अंदर बड़ी संख्या में अटल अखाड़े के महंत साधु शामिल हो चुके हैं। 
1200 साल पुराना इस अखाड़े में दो भाले हैं जो सूर्य प्रकाश और भैरव प्रकाश के नाम से जाने जाते हैं। इन दोनों भालों को शक्ति के स्वरूप में देखा जाता है जिसके चलते अखाड़े के मंदिर में इनको इष्टदेव के समीप रखकर पूजा जाता है। महाकुंभ के लिए जब संत शाही स्नान के लिए जाते हैं तो दो संत सबसे आगे सूर्य प्रकाश और भैरव प्रकाश नाम के भालों को लेकर शक्ति का आभास कराते हुए आगे चलता है, शाही स्नान में पहले भालों को स्नान करवाया जाता है। इसके बाद इस अखाड़े के महामंडलेश्वर, मंहत और अनुयायी स्नान करते हैं। 
इस अखाड़े की सदस्यता पाने के लिए जांच प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। जांच-पड़ताल के बाद अखाड़े में शामिल किया जाता है। यह अखाड़ा आज भी सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन कर रहा है। सात्विक भोजन तैयार करने के लिए गाय के ईंधन यानी उपलों का प्रयोग किया जाता है। अखाड़े की खुद एक गौशाला है जिसमें साधु-संत सेवक की भूमिका निभाते हैं।