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Written By WD Sports Desk
Last Updated : शुक्रवार, 9 अगस्त 2024 (16:37 IST)

श्रीजेश का उतार-चढ़ाव भरा सफर: बोर्ड में ग्रेस अंक पाने से लेकर 4 ओलंपिक खेलने वाले हॉकी प्लेयर

श्रीजेश ने ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम को मिले 13वें और लगातार दूसरे पदक के साथ अंतरराष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कहा

श्रीजेश का उतार-चढ़ाव भरा सफर: बोर्ड में ग्रेस अंक पाने से लेकर 4 ओलंपिक खेलने वाले हॉकी प्लेयर - PR Sreejesh,The Great Wall of Indian Hockey proved to be the troubleshooter of Indian hockey in every ordea
PR Sreejesh Hockey India : बोर्ड के इम्तिहान में ग्रेस अंक पाने के लिए खेलों में उतरने से लेकर ‘भारतीय हॉकी की दीवार’ बनने तक पराट्टू रवींद्रन श्रीजेश (PR Sreejesh) का सफर उपलब्धियों से भरपूर रहा और हर बड़ी चुनौती में संकटमोचक बनकर उभरे इस नायाब खिलाड़ी को पेरिस ओलंपिक (Paris Olympics) में कांस्य पदक जीतने के बाद अपने कंधे पर बिठाकर भारतीय कप्तान हरमनप्रीत सिंह (Harmanpreet Singh) की टीम ने आज विदाई दी।
 
36 वर्ष के श्रीजेश ने ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम को मिले 13वें और लगातार दूसरे पदक के साथ अंतरराष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कह दिया।
 
तोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) में जर्मनी के खिलाफ प्लेआफ मुकाबले में निर्णायक पेनल्टी बचाकर 41 साल बाद भारत को ओलंपिक पदक दिलाना हो या पेरिस में ओलंपिक खेलों में आस्ट्रेलिया पर 52 साल बाद मिली जीत हो या ब्रिटेन के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में पेनल्टी शूटआउट में भारत को मिली जीत हो, हर जुबां पर एक ही नाम था पी आर श्रीजेश।
 

Hockey

 
आठ मई 1988 को केरल के अर्नाकुलम जिले के किझाकम्बलम गांव में जन्मे श्रीजेश ने पहले ‘भाषा’ से बातचीत में बताया था कि वह बोर्ड की परीक्षा में ग्रेस अंक लेने के लिए एथलेटिक्स में उतरे थे और बाद में उनके स्कूल के कोच ने उन्हें हॉकी गोलकीपर बनने की सलाह दी हालांकि केरल में उस समय एथलेटिक्स और फुटबॉल की ही लोकप्रियता थी। लेकिन कोच की वह सलाह श्रीजेश और भारतीय हॉकी के लिए वरदान साबित हुई।
 
उन्होंने कहा था ,‘‘ मेरा सफर सपने जैसा रहा है। बोर्ड परीक्षा में ग्रेस अंक लेने के लिए खेलना शुरू किया तो कभी सोचा नहीं था कि भारत की जर्सी पहनूंगा और ओलंपिक खेलूंगा। चौथा ओलंपिक सपना ही लगता है। अब तक धनराज पिल्लै ने ही चार ओलंपिक, चार विश्व कप, चैम्पियंस ट्रॉफी और एशियाई खेलों में भाग लिया। चार ओलंपिक खेलने वाला मैं पहला गोलकीपर हूं, विश्वास नहीं होता।’’


 
कोलंबो में 2006 में दक्षिण एशियाई खेलों के जरिए भारत की सीनियर टीम में डेब्यू करने वाले श्रीजेश 2011 तक एड्रियन डिसूजा और भरत छेत्री जैसे सीनियर गोलकीपरों के रहते टीम में स्थायी जगह नहीं पा सके। वह 2011 से टीम के अभिन्न अंग बने और 2014 एशियाई खेल फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ दो पेनल्टी स्ट्रोक बचाकर स्टार बने।
 
इसके बाद उन्होंने मुड़कर नहीं देखा और ओलंपिक, विश्व कप, चैम्पियंस ट्रॉफी, एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल, प्रो लीग सभी टूर्नामेंटों में उनका जलवा रहा। खेल रत्न, पद्मश्री, विश्व के सर्वश्रेष्ठ एथलीट, एफआईएच के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी, 336 अंतरराष्ट्रीय मैच उनकी उपलब्धियों की गवाही खुद ब खुद देते हैं।
यही वजह है कि धनराज पिल्लै उन्हें मेजर ध्यानचंद, बलबीर सिंह सीनियर, मोहम्मद शाहीद जैसे महानतम खिलाड़ियों की सूची में रखते हैं तो दिलीप तिर्की उन्हें भारतीय गोलकीपिंग का भगवान कहते हैं। मनप्रीत सिंह जैसे अनुभवी मिडफील्डर अपनी परेशानियां उनसे साझा करते हैं तो राजकुमार पाल या अभिषेक जैसे युवा खिलाड़ियों को वे दबाव झेलने का हौसला देते हैं। कप्तान हरमनप्रीत सिंह उनकी उपस्थिति में अपना बोझ हलका महसूस करते हैं तो करोड़ों भारतीय हॉकी प्रेमियों को आखिरी पल तक उम्मीद रहती है कि श्रीजेश है तो गोल नहीं होने देगा।

shreejesh

 
रजनीकांत के फैन श्रीजेश भारतीय हॉकी खिलाड़ियों के ऐसे ‘थाला’ (बड़े भाई) रहे जिन्होंने गलती होने पर डांटा और अच्छा खेलने पर पीठ भी थपथपाई। मैदान पर गोल के सामने अकेले खड़े होने पर भी वह अकेले नहीं रहते और लगातार बोलते हुए खिलाड़ियों का मनोबल बढाते रहते हैं। मलयालम भाषी श्रीजेश कभी पंजाबी में भी बोलते सुनाई दे जाते हैं तो कभी मैच जीतने पर गोलपोस्ट पर बैठे नजर आते हैं।
पिछले दो दशक से अधिक समय से हॉकी खेल रहे श्रीजेश के लिए जिंदगी हॉकी के मैदान तक सिमटी रही है। यही वजह है कि पेरिस ओलंपिक कांस्य पदक के मैच से पहले उन्होंने X पर लिखा, ‘‘ अब जबकि मैं आखिरी बार पोस्ट के बीच खड़ा होने जा रहा हूं तब मेरा दिल कृतज्ञता और गर्व से फूलकर कुप्पा हो रहा है। सपनों में खोए रहने वाले एक युवा लड़के से भारत के सम्मान की रक्षा करने वाले व्यक्ति तक की यह यात्रा असाधारण से कम नहीं है।’’
 
उन्होंने कहा,‘‘आज मैं भारत के लिए अपना आखिरी मैच खेल रहा हूं। मेरा हर बचाव, प्रत्येक डाइव, दर्शकों का शोर हमेशा मेरे दिल में गूंजते रहेंगे। आभार भारत, मुझ पर विश्वास करने के लिए, मेरे साथ खड़े होने के लिए। यह अंत नहीं है, यह संजोई गई यादों की शुरुआत है।
 
वाकई भारतीय हॉकी टीम जब भी मैदान पर उतरेगी तो उनका जोश, उनकी मुस्कुराहट, उनकी गोलकीपिंग और उनका ‘स्वैग’ जरूर याद आएगा। भविष्य में शायद एक कोच के रूप में या किसी और भूमिका में वह भारतीय हॉकी से फिर जुडें। इंतजार रहेगा। ( भाषा)
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