वामन द्वादशी व्रत : कब है, कैसे मनाएं पर्व
चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वादशी को वामन द्वादशी व्रत किया जात है। वामन द्वादशी 5 अप्रैल 2020 को है। इस दिन भगावन वामन की पूजा और आराधना के साथ ही व्रत करने और कथा सुनने का महत्व है। वैसे भाद्र शुक्ल द्वादशी में वामन जयंती आती है। भगवान वामन विष्णु के 10 अवतारों के क्रम में वामन अवतार 5वें थे। और 24 अवतारों के क्रम में 15वें अवतार थे।
वामन कथा : श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार सतयुग में चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वादशी को श्रवण नक्षत्र में अभिजित मुहूर्त में ऋषि कश्यप और देवी अदिति के यहां भगवान वामन का अवतार हुआ था। ऋषि कश्यप उनका उपनयन संस्कार करके उन्हें बटुक ब्रह्मण बनाते हैं। महर्षि पुलह वामन को यज्ञोपवीत, अगस्त्य मृगचर्म, मरीची पलाश दंण, अंगिरस वस्त्र, सूर्य छत्र, भृगु खडाऊं, बृहस्पति कमंडल, अदिति कोपीन, सरस्वती रुद्राक्ष और कुबेर भिक्षा पात्र भेंट करते हैं।
वामन अवतार पिता से आज्ञा लेकर राजा बलि के पास दान मांगने के लिए जाते हैं। वहां राजा बलि से तीन पग धरती मांग लेते हैं। ब्राह्मण समझकर राजा बलि दान दे देते हैं। शुक्राचार्य इसके लिए बलि को सतर्क भी करते हैं लेकिन तब बलि इस पर ध्यान नहीं देता। फिर वामन भगवान विराट रूप धारण कर दो पग में त्रिलोक्य नाप देते हैं। तब पूछते हैं राजन अब मैं अपन तीसरे पैर कहां रखूं? राजा बली कहते हैं कि भगवन अब तो मेरा सिर ही बचा है आप इस पर रख दीजिए। राजा की इस बात से वामन भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे चिरंजीवी रहने का वरदान देकर पाताललोक का स्वामी बना दिया और सभी देवताओं को उनका स्वर्ग लौटा दिया।
कैसे मनाएं पर्व :
1. सामान्य पूजा : इस दिन भगवान वामन की मूर्ति या चित्र की पूजा करें। मूर्ति है तो दक्षिणावर्ती शंख में गाय का दूध लेकर अभिषेक करें। चित्र है तो सामान्य पूजा करें। इस दिन भगवान वामन का पूजन करने के बाद कथा सुनें और बाद में आरती करें। अंत में चावल, दही और मिश्री का दान कर किसी गरीब या ब्राह्मण को भोजन कराएं।
2. पंडित से कराई गई पूजा : यदि किसी पंडित से पूजा करा रहे हैं तो वह तो विधि विधान से ही पूजा करेगा। ऐसे में इस दिन व्रत रखा जाता है। मूर्ति के समीप 52 पेड़े और 52 दक्षिणा रखकर पूजा करते हैं। भगवान् वामन का भोग लगाकर सकोरों में चीनी, दही, चावल, शर्बत तथा दक्षिणा पंडित को दान करने के बाद वामन द्वादशी का व्रत पूरा करते हैं। व्रत उद्यापन में पंडित को 1 माला, 2 गौ मुखी मंडल, छाता, आसन, गीता, लाठी, फल, खड़ाऊं तथा दक्षिणा देनी चाहिए।