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सप्त ऋषियों के पूजन का दिन है ऋषि पंचमी

सप्त ऋषियों के पूजन का दिन है ऋषि पंचमी - Rishi Panchami
ऋषि पंचमी का व्रत सभी महिलाएं व कन्याएं पूरी श्रद्धा व भक्ति के साथ रखेंगी। इस दिन सप्त ऋषियों का पूर्ण विधि-विधान से पूजन कर कथा श्रवण करने का महत्व है। यह व्रत महिलाओं व युवतियों के लिए आवश्यक माना गया है। यह व्रत पापों का नाश करने वाला व श्रेष्ठ फलदायी है।


 
शास्त्रों के अनुसार ऋषि पंचमी पर हल से जोते अनाज आदि का सेवन निषिद्घ है। इस अवसर पर महिलाएं व कुंआरी युवतियां सप्त ऋषि को प्रसन्न करने के लिए इस पूर्ण फलदायी व्रत को रखेंगी।
 
कहा जाता है कि पटिए पर 7 ऋषि बनाकर दूध, दही, घी, शहद व जल से उनका अभिषेक किया जाता है, साथ ही रोली, चावल, धूप, दीप आदि से उनका पूजन करके तत्पश्चात कथा सुनने के बाद घी से होम किया जाता है। 
 
जो महिलाएं ऋषि पंचमी का व्रत रखेंगी, वे सुबह-शाम दो समय फलाहार करके व्रत को पूर्ण करेंगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत में हल से जुता हुआ कुछ भी नहीं खाते हैं। इस बात को ध्यान में रखकर ही यह व्रत किया जाता है। वे केवल फल, मेवा व समां की खीर, मोरधन से बने व्यंजनों को खाकर व्रत रखेंगी तथा घर-घर में भजन-कीर्तनों का आयोजन किया होता है। 
 
ऋषि पंचमी पर व्रत रखकर महिलाएं अपने ज्ञात-अज्ञात पापों के शमन के लिए हिमाद्रि स्नान करेंगी। उल्लेखनीय है कि इस दिन रामघाट, शिप्रा नदी, तालाब आदि में स्नान करने का महत्व है। 
 
अन्य कथा-
 
ऋषि पंचमी की एक अन्य कथा के अनुसार विदर्भ देश में एक उतंक नामक ब्राह्मण था जिसकी कन्या विवाह के एक माह पश्चात विधवा हो गई। वह ससुराल को छोड़कर अपने माता-पिता के पास आकर रहने लगी।
 
एक दिन वह एक शिला पर लेट गई तो उसके शरीर में कीड़े पड़ गए। उसकी माता ने कन्या की इस हालत को देखकर पति से पूछा तो उन्होंने बताया कि रजस्वला होने पर उसने घड़े व बर्तन आदि को छुआ है व व्रत का तिरस्कार किया है जिसके चलते शरीर में कीड़े पड़ गए हैं।
 
पापनाशक है ऋषि पंचमी व्रत- 
 
यह व्रत संपूर्ण पापों का नाश करने वाला है जिसे भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी के अगले दिन ऋषि पंचमी पर महिलाएं पति की लंबी आयु और ऋतु कार्य में लगने वाले दोष के निवारण के लिए कुशा अथवा वस्त्र पर सप्त ऋषि बनाकर उनकी पूजा-अर्चना करती हैं।
 
व्रत धारण करने से पूर्व अपामार्ग की 108 दातून के बाद स्नान करने के साथ व्रत की शुरुआत की जाती है। इस दिन महिलाएं केवल पसाई धान के चावल का ही सेवन करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन महिलाएं हल से जुता अन्न नहीं खाती हैं।