यहां वेबदुनिया के प्रिय पाठकों के लिए प्रस्तुत है अहोई अष्टमी व्रत की पौराणिक कथा...
कथा:
प्राचीन समय की बात है, एक नगर में एक साहूकार रहता था। साहूकार के सात बेटे थे और उनकी एक बहू थी। साहूकार का परिवार बहुत सुखी था, लेकिन उसकी बहू को संतान सुख प्राप्त नहीं हो पाया था, जिसका दुख उसे हमेशा रहता था।
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के कुछ दिन पहले, दिवाली से ठीक पहले, साहूकार की बहू जंगल में मिट्टी लेने के लिए गई। उसे अपने घर के लीपने और सजाने के लिए मिट्टी की जरूरत थी। जब वह जंगल में मिट्टी खोद रही थी, तो अनजाने में उसकी कुदाल एक साही (Sahi) के बच्चे को लग गई। साही का बच्चा उसी कुदाल के वार से मर गया।
बेटों की मृत्यु से साहूकार और उसकी बहू गहरे शोक में डूब गए। बहू को समझ आ गया था कि यह सब साही के बच्चे को मारने के पाप का फल है। जब साहूकार की बहू ने अपनी यह दुखभरी कहानी अपनी पड़ोस की स्त्रियों को बताई, तो उन्होंने उसे यह सलाह दी: 'हे बहू, तुम बहुत दुखी हो। यदि तुम अपने इस पाप से मुक्ति पाना चाहती हो और अपनी संतानों का सुख वापस पाना चाहती हो, तो तुम्हें अहोई माता का व्रत करना चाहिए। अहोई अष्टमी के दिन तुम साही और साही के सात बच्चों का चित्र बनाकर उनकी पूजा करो और सच्चे मन से अपनी भूल के लिए उनसे क्षमा मांगो। अहोई माता, जो कि मां पार्वती का ही रूप हैं, तुम्हें अवश्य क्षमा करेंगी और तुम्हारी संतान को लंबी आयु का आशीर्वाद देंगी।'
साहूकार की बहू ने श्रद्धापूर्वक उनकी बात मानी। कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर, उसने पूरे विधि-विधान से अहोई माता का व्रत किया। उसने दीवार पर साही और उसके बच्चों का चित्र बनाया, कलश स्थापित किया और रात को तारों को अर्घ्य देकर माता की पूजा की।
उसने अपने मृत बेटों के लिए पश्चाताप किया और सच्चे मन से अहोई माता से अपने पापों की क्षमा मांगी। साहूकार की बहू की सच्ची श्रद्धा और पश्चाताप से अहोई माता (मां पार्वती) बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने बहू को दर्शन दिए और उसे क्षमा करते हुए वरदान दिया कि उसके सभी पुत्रों को लंबी आयु प्राप्त होगी।
अहोई माता के आशीर्वाद से, साहूकार की बहू को वापस से संतान सुख मिला और उसके पुत्र दीर्घायु हुए। तभी से यह परंपरा बन गई कि संतान की लंबी उम्र, सुख और कल्याण के लिए माताएँ अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं।
व्रत का सार: यह कथा बताती है कि अज्ञानतावश या जानबूझकर किए गए पापों के लिए सच्चा पश्चाताप और क्षमा याचना ही मुक्ति का मार्ग है, और मां पार्वती सभी माताओं की संतानों की रक्षक हैं।
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
ALSO READ: Diwali 2025: दिवाली की रात छिपकली देखना शुभ या अशुभ