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Written By ओशो

अपना मुंह बंद करो- ओशो

Discourse of Osho | अपना मुंह बंद करो- ओशो
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प्रस्तुत है ओशो की चमत्कारिक ध्यान विधि....यदि आप इसे करते हैं तो शरीर और मन की बीमारियों से छुटकारा पा लेंगे और इस विधि के चमत्कारिक परिणाम देखने को मिलेंगे।

मुंह वास्तव में बहुत बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वहीं से पहली क्रिया शुरू हुई; तुम्हारे ओठों ने पहली क्रिया की। मुंह के आसपास की जगह से हर क्रिया की शुरुआत हुयी: तुमने स्वांस अन्दर ली, तुम रोए, तुमने मां का स्तन ढूंढना शुरु किया। और तुम्हारा मुंह हमेशा सतत क्रियाशील रहा।

जब भी तुम ध्यान के लिए बैठते हो, जब भी तुम मौन होना चाहते हो, पहली बात अपना मुंह पूरी तरह से बन्द करो। अगर तुम मुंह पूरी तरह से बन्द करते हो, तुम्हारी जीभ तुम्हारे मुंह की तालु को छुएगी; दोनों ओंठ पूरी तरह से बन्द होंगे और जीभ तालु को छुएगी। इसको पूरी तरह से बन्द करो, लेकिन यह तब ही हो सकेगा जब तुमसे जो भी मैंने कहा तुम उसका पालन करो, इससे पहले नहीं।

तुम इसे कर सकते हो। मुंह बन्द करना बहुत बड़ा काम नहीं है। तुम एक मूर्ति की तरह बैठ सकते हो, मुंह को पूरी तरह बन्द किए, लेकिन यह क्रियाशीलता नहीं रोकेगा। अन्दर गहरे में विचार चलते रहेंगे, और अगर विचार चल रहे हैं तो तुम ओठों पर सूक्ष्म कंपन अनुभव कर सकते हो। दूसरे इसे नहीं भी देख पाएं, क्योंकि वे बहुत सूक्ष्म हैं, लेकिन अगर तुम सोच रहे हो तो तुम्हारे ओंठ थोड़े कंपित होते हैं, एक बहुत सूक्ष्म कंपन।

जब तुम वास्तव में शिथिल होते हो, वे कंपन रुक जाते हैं। तुम बोल नहीं रहे हो, तुम अपने अन्दर कुछ क्रिया नहीं कर रहे हो और तब सोचो मत।

तुम करोगे क्या?- विचार आ-जा रहे हैं। उन्हें आने और जाने दो; वह कोई समस्या नहीं है। तुम इसमें शामिल मत होना; तुम अलग, दूर बने रहना। तुम बस उन्हें आते जाते देखना। तुम्हें उनसे कोई मतलब नहीं है। मुंह बन्द रखो और मौन रहो। धीरे-धीरे विचार स्वयं बन्द हो जाते हैं। उन्हें होने के लिए तुम्हारे सहयोग की आवश्यकता होती है। अगर तुम सहयोग करते हो, तो वे होंगे; अगर तुम लड़ते हो, तब भी वे वहां होंगे क्योंकि दोनों सहयोग हैं: एक समर्थन में, दूसरा विरोध में। दोनों एक तरह की क्रिया हैं। बस देखो।

लेकिन मुंह बन्द रखना बहुत सहायक है, तो पहले, जैसाकि मैं लोगों का निरीक्षण करता हूं, मैं तुम्हें सलाह दूंगा पहले जम्हाई लो।

अपना मुंह जितना बड़ा हो सके उतना खोलो, अपने मुंह को जितना ज्यादा तनाव दे सको दो और पूरी तरह से जम्हाई लो; यह दर्द तक करने लगता है। इसे दो या तीन बार करो। यह मुंह को देर तक बन्द रखने में मदद करेगा और फिर दो या तीन मिनट तक जिबरिश करो, अनर्गल, जोर से। जो भी मन में आए, इसे जोर से बोलो और इसका मजा लो। उसके बाद मुंह बन्द कर लो।

विपरीत छोर से चलना ज्यादा आसान है। अगर तुम अपना हाथ शिथिल करना चाहते हो, पहले इसे जितना हो सके उतना तनाव देना ज्यादा अच्छा है। मुठ्ठी भींचो और जितना हो सके इसे उतना तनाव दो। ठीक विपरीत करो और तब शिथिल करो- और तब तुम तंत्रिका तंत्र की गहरी शिथिलता अनुभव करोगे। मुद्राएं बनाओ, चेहरे बनाओ, विकृत आकृतियां बनाओ। जम्हाई लो, दो तीन मिनट अनर्गल प्रलाप करो और तब मुंह बन्द कर लो।

यह तनाव तुम्हें मुंह और ओठों को शिथिल करने में ज्यादा सहायक होगा। मुंह बंद करो और फिर साक्षी बनो। जल्दी ही तुम पर एक मौन अवतरित होगा।

निष्क्रिय हो जाओ…जैसे कि तुम एक नदी के पास बैठे हो और नदी बह रही है, और तुम बस देख रहे हो। कोई उत्सुकता नहीं है, कोई जल्दी नहीं, कोई आपात स्थिति नहीं है। कोई तुम्हें विवश नहीं कर रहा है। अगर तुम भूल भी जाते हो, तो कुछ नहीं खोता। तुम बस साक्षी हो जाओ, बस देखो। बल्कि देखो शब्द भी अच्छा नहीं है, क्योंकि यह देखो शब्द करने का अहसास देता है। बस देखो, कुछ भी करने को नहीं है। तुम बस नदी के किनारे बैठ जाओ, तुम देखो, और नदी बह रही है। या, तुम निष्क्रियता से आकाश को देखते हो और बादल तैरते हैं।

यह निष्क्रियता बहुत ही आवश्यक है; इसे समझना है, क्योंकि तुम्हारा सक्रियता का जुनून उत्सुकता बन सकता है, एक सक्रिय प्रतीक्षा बन सकता है। तब तुम सारी बात चूक जाते हो; तब सक्रियता पीछे के दरवाजे से दोबारा घुस चुकी है। एक निष्क्रिय साक्षी बनो।

यह निष्क्रियता स्वत: तुम्हारे मन को खाली कर देगी। सक्रियता की लहरें, मन-ऊर्जा की लहरें, धीरे-धीरे शांत हो जाएंगी, और तुम्हारी सारी चेतना की सतह, लहर विहीन हो जाएगी, बिना किसी तरंग के। यह एक शांत दर्पण बन जाएगी”

साभार- तंत्रा: दि सुप्रीम अंडरस्टैंडिंग
सौजन्य- ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन