गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. एनआरआई
  3. आपकी कलम
  4. Independence Day Poem

स्वतंत्रता दिवस पर कविता : एक दीवाना था

स्वतंत्रता दिवस पर कविता : एक दीवाना था - Independence Day Poem
एक दीवाना था
सनसनाती बिजलियों को मस्ती में छेड़ा था
तूफानों की बांहों को कस के मरोड़ा था
तमतमाते शोलों को हाथों में सजाया था
मंजिल की लौ छूने वो परवाने सा मचला था
 
आंधियों के बवंडर से अभिमन्यु सा भिड़ा था
खून से लथपथ था परंतु सीना रखा चौड़ा था
खौले समंदर में कश्ती को धकेला था
मंजिल की लौ छूने वो परवाने सा मचला था
 
जलजलों के उथल-पुथल में जजीरे सा खड़ा था
ज्वालामुखी की कगार पर पहाड़ सा डटा था
कोहरे की धुंध में दीप स्तंभ सा उजला था
मंजिल की लौ छूने वो परवाने सा मचला था
 
लक्ष्य को पाने की जिद पर अड़ा था
चांद बटोरने ज्वार सा उमड़ा था
अपनी ही धुन में वह दीवाना चला था
मंजिल की लौ छूने वो परवाने सा मचला था
मंजिल की लौ छूने वो परवाने सा मचला था। 

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

ये भी पढ़ें
गोरक्षपीठ के रोम-रोम में बसती है अयोध्या