मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. एनआरआई
  3. आपकी कलम
  4. picnic poem

मनोरंजक प्रवासी कविता : पिकनिक

मनोरंजक प्रवासी कविता : पिकनिक - picnic poem
picnic
 
एक सुबह सुहानी खिल आई इठलाती
नभ ललचाए आ बैठे सुबह की गोद में
धूप देख शरमा पड़ी, सूरज हो गया रुआंसा
गगन की मादकता से धरा को मिली राहत
 
पेड़, पौधे, फूल, पंछी करते हैं प्रतीक्षा
डाल-डाल फुदक-फुदक शोर मचाते
पंछी पुकारते तितलियों, खरगोश,
मृग, गिलहरियों को पिकनिक करने
 
पिकनिक का दिन आ गया सुहाना
आज की ऊर्जा में जोश अलग है
बच्चे सुबह से तैयार हैं, पापा थके
मां भर रही बास्केट में बॉल, रैकेट
 
आइसक्रीम, चॉकलेट, संतरा, कोक,
बर्फ का गोला और पापा की आंखें गोल
बच्चे खाएंगे जंक और बन जाएंगे रोबोट
पापा की शामत आएगी, मां सखियों संग
 
मिल गईं सखियां पार्क में खिलखिलाती
मस्ती में, मस्त हैं बच्चे, वृद्ध, जवान जोश में
आज सबका दिल बच्चा बना पिकनिक पर
न कोई चिंता, न भार, हल्का-हल्का अहसास
 
आया दौर नाश्ते का गुजरात से होकर चला
राजस्थान फिर घूम आया दक्षिण, आ रुका
मध्य प्रदेश में अपने देश में, पूछें सभी पोहा को
अगली बार का वादा है पोहा, जलेबी, सेंव का
 
इधर खेल का दौर शुरू हो गया नींबू संभालो
महंगा हो गया, सभी भाग रहे छोटा-सा नींबू
जीत गए तो घर ले जाना इसकी खटास चखो
चटकारी, जीवन में मस्त-महंगा चटखारा घोलती
 
अब समूह बंट गए कई, कुछ यादें, कुछ अनुभव,
मीठी-मीठी मिसरी-सी बातें कानों में रस घोलें
गप्पे भी लड़ा लेते हैं, पतंग के पेंच लड़ा लेते हैं
पिकनिक का यही मजा है जितना करो कम है
 
खाना-पीना, खेलना-कूदना, मिट्टी में लोटना
चीखना-चिल्लाना, सिटी मारना, बातचीत भी
जोर-जोर से आज असभ्यता के सारे पेंतरे खूब
आजमाना, जब मस्त हो पिकनिक में सभ्य हो
 
अंत शाम घिर आई है मुस्कराहटें दुगनी जवान
पेट भरे, मन भरे, समय का साथ यादों में लपेट
सभी ने अपनी-अपनी पोटली में रख लिया
कर वादा अगले पिकनिक पर मिलने का
 
साल में एक बार होती पिकनिक, दे जाती यादें
मीठी, तस्वीरें खिंच उन यादों को कितनी खुशी
साथ ले जाते हैं, रिश्ते-नाते-दोस्ती-जीवन
समझे इंसान है एक पिकनिक, खुशहाल बन
सृष्टि पल-पल महके, बोझ धरती पर रहे न कोई !

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)