प्रवासी कविता : बुढ़ापा अमेरिका में
- हरनारायण शुक्ला (मिनियापोलिस, USA)
अमेरिका ने यारों,
बूढ़ा कर दिया,
वरना हम भी,
जवान थे अच्छे-खासे।
आए तो थे चालीस के,
अब हो गया है अस्सी,
सेहत और उम्र की कशमकश,
जिंदगी खिंची-तनी इक रस्सी।
मैं पापड़ बहुत ही बेला,
धक्का भी खूब खाया,
सेवा-निवृत्त जब हो ही गया,
तब जाके मुझे रास आया।
जिंदाबाद 'सोशल सिक्योरिटी',
वहीं से आती, मेरी दाल-रोटी,
कुछ मिलता भी है मुझको पेंशन,
मस्ती में हूं, मैं लेता नहीं हूं टेंशन।
आराम की है जिंदगी,
मेरी यही पसंदगी,
करता नहीं मैं दिल्लगी,
प्रभु, मेरी तुझे है बंदगी।
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