गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. एनआरआई
  3. आपकी कलम
  4. Poem on Life

प्रवासी कविता : मन उदास हो उठता है

Poem
रह रह कर मन उदास हो उठता है
एक अंधेरे कोने में सिमटने लगता है
हजार दुख छिपाकर एक खुशी मनाएं कैसे
मां ठीक है लेकिन मामा चले गए
बहन ठीक है तो बहनोई विदा ले गए
अपनों के अपने कल तक लगते थे, हैं पराए
आज बिछड़े तब लगा वे भी अपने थे कितने
मानव का मानव से रिश्ता बन ही जाता है
दूर होते हुए भी करुणा से मन भर जाता है
 
हम दूर हैं दुनिया के दूसरे कोने समुद्रों पार
जीवन अपना जी रहे थे थाम उसकी रफ्तार
कितना वक्त बीत गया सामान्य का अर्थ बदला
समझौतों को ही सामान्य मान रफ्तार ली थी
 
कभी मन को भरमा लिया सुन सुर सत्संग के
घर के आंगन में उगा पौधे निहारते रहे फूल
पंछियों के गीतों में भी ढूंढने लगे जीवन दर्शन
प्रकृति के पास बैठ सहलाया अकेलेपन को
ऊंच-नीच वक्त की समझते रहे बिना बहस
सोचा यह भी गुजर जाएगा लेकिन यह नहीं सच
 
गुजर तो रहा है पीछे कई सवाल छोड़ रहा
रिश्तों की कई गांठें खुल गई, कुछ ढीली पड़ गई
कुछ परतों के उतरने से सच उघाड़ा हो उठा
आज कई समाचार शोर मचा रहे बंद कानों में
प्रतिध्वनि गूंजती है जिसकी अवचेतन मन में
 
अंत रुक-सी गई है उन समझौतों की रफ्तार भी
जिसे आज का सच मान जीवन ने पकड़ी रफ्तार थी
वक्त जन्म दे भूल रहा है कहीं किसी काल
क्यों उसे याद नहीं आ रही मानव की प्रकृति
मन, शरीर, मस्तिष्क और आत्मा का संगम है
सोचेगा भी, पूछेगा भी, वक्त से, किस्मत से, 
किस्मत बनाने वाले से भी कब थमेगा यह !


वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)