जुग बीते दजला1 से इक भटकी हुई लहर जब तेरे पवित्र चरणों को छूने आई तो तेरी ममता ने अपनी बाँहें फैला दीं और तेरे हरे किनारों पर तब अन्ननास और कटहल के झुंड में घिरे हुए खपरैलों वाले घरों के आँगन में किलकारियाँ गूँजी मेरे पुरखों की खेती शादाब हुई और शगुन के तेल के दीये की लौ को ऊँचा किया फिर देखते-देखते पीले फूलों और सुनहरी दीयों की जोत तेरे फूलों वाले पुल की कौस से होती हुई मेहरान की ओर पहुँच गई मैं उसी जोत की नन्हीं किरण फूलों की थाल लिए तेरे कदमों में फिर आ बैठी हूँ और तुझसे अब बस एक दया की तालिब हूँ, यूँ अंत समय तक तेरी जवानी हँसती रहे, पर यह शादाब हँसी कभी तेरे किनारों के लब से इतनी न झलक जाए कि मेरी बस्तियाँ डूबने लग जाएँ... गंगा प्यारी!