पटना। लोकसभा चुनाव के परिणाम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजनीतिक भविष्य के लिए निर्णायक साबित होंगे। इस बार वे यह चुनाव भाजपा से अलग होकर लड़ रहे हैं। आम चुनावों के किसी भी विपरीत नतीजे का जनता दल (यू) की सरकार पर सीधा असर डालेगा। लेकिन ये परिणाम भाजपा के लिए भी कम महत्वपूर्ण नहीं होंगे।
'डेली मेल ऑनलाइन डॉट कॉम' में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक इस बार भाजपा को उम्मीद है कि वह राज्य की 40 सीटों से से आधी से अधिक जीतने में सफल होगी। इससे मोदी की दिल्ली में सरकार बनाने में अहम योगदान मिलेगा।
अभी तक जो जनमत सर्वेक्षण और पोल्स आए हैं, उनमें भविष्यवाणी की गई है कि भाजपा को राज्य में भारी सफलता मिलेगी। इन भविष्यवाणियों से पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं के चेहरे खिले हुए हैं।
इस बात से कोई इंकार नहीं करता है कि भाजपा के लिए बिहार एक महत्वपूर्ण राज्य है और दिल्ली में मोदी की सरकार की मजबूती 2 प्रमुख राज्यों जैसे यूपी और बिहार में पार्टी के प्रदर्शन पर निर्भर करेगी। लेकिन बिहार में भाजपा का प्रदर्शन राज्य में पार्टी का नया भविष्य भी तय करेगा।
35 वर्ष पूर्व राज्य के गठन के बाद से ही भाजपा इस राज्य में एक नई राजनीतिक ताकत के तौर पर नहीं उभर सकी है। वाजपेयी के नेतृत्व के दौरान भी पार्टी की 1990 के दशक में लोकप्रियता राज्य में काफी थी लेकिन यह भाजपा को राज्य में सत्ता दिलाने में सफल नहीं हो सकी थी।
एक ऐसे राज्य में जहां जाति हमेशा ही एक महत्वपूर्ण कारक रही है, वहां कांग्रेस और राजद अध्यक्ष लालूप्रसाद यादव ने करीब 25 वर्षों तक भाजपा की महत्वाकांक्षाओं पर पानी फेरने में सफलता पाई।
बिहार में मोदी लहर से होगा राज्य में उलटफेर, अगले पन्ने पर..
इस दौरान पार्टी राज्य में नीतीश की सहयोगी बनकर ही खुश रही, क्योंकि उसका मानना था कि यह अपने बलबूते पर लालू जैसे लोगों को सत्ता से दूर रखने में सफल नहीं हो पाएगी। लेकिन पिछली वर्ष नीतीश ने भाजपा के साथ संबंध तोड़ने का फैसला किया और राज्य की स्थिति में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया।
पहली बार बिहार के भाजपा नेताओं को यह लगने लगा है कि वे नमो लहर पर सवार होकर राज्य में अपनी अगली सरकार बनाने में सफल हो सकेंगे। अब तक यह उनके लिए दूर का सपना था।
वास्तव में पार्टी ने नीतीश को गठबंधन की खातिर राजग का मुख्यमंत्री पद के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया था। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पार्टी मानती थी कि नीतीश जैसे साथी के बिना राज्य में लालू का मुकाबला करना संभव नहीं है।
पिछले वर्ष पार्टी के 11 मंत्रियों को राज्य सरकार से निकाल दिया था और पार्टी निराशा में आ गई थी लेकिन अब यह आत्मविश्वास से भरी हुई है।
इस बार जाति आधारित राजनीति को समझते हुए पार्टी ने अपने पत्ते भी अच्छी तरह खेले और रामविलास पासवान तथा उपेन्द्र कुशवाहा को लोकसभा चुनावों से पहला अपना सहयोगी बना लिया।
इतना ही नहीं, इसने मोदी को भी अत्यधिक पिछड़ी जाति का नेता बनाकर पेश किया और नीतीश के परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगा दी। हालांकि नीतीश, लालू और कांग्रेस भाजपा की भारी जीत को कोरी कल्पना मान रहे हैं लेकिन इतना तय है कि चुनाव का परिणाम राज्य की राजनीतिक स्थिति में भारी उलटफेर कर सकता है।
भाजपा के पक्ष में भारी जीत जहां पार्टी को आत्मविश्वास की एक नई खुराक देगी, वहीं राज्य में इसे सत्ता के एक कदम पास पहुंचा देगी। लेकिन निराशाजनक परिणाम से सभी कुछ पहले जैसा हो जाएगा और यह भाजपा के लिए राज्य में एक जोर का झटका सिद्ध होगा।