पटना। अगर शेक्सपीयर से पूछा जाता कि 'उपनाम में क्या रखा है' और अगर यह मामला आज की बिहार की राजनीति से जुड़ा हो तो उनका निश्चित तौर पर जवाब होता- 'बहुत कुछ।
इस राज्य में चुनावों में सफलता पाने का एक तरीका यह है कि आप अपनी जाति को उजागर करें ताकि आपको अपने जाति वालों के वोट मिल सकें। इसलिए उम्मीदवार अपने नामों के साथ उपनामों या जातियों के नामों को उजागर करने के उपाय कर रहे हैं।
बक्सर से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रत्याशी ददन यादव चुनाव लड़ रहे हैं। इस बार वे अपने नाम के साथ यादव उपनाम का इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि पिछले दो आम चुनावों में उन्होंने इसी चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ा था और तब उनका नाम हुआ करता था ददन सिंह।
इस बार वे यादव लिखकर यादव वोटों को हासिल करना चाहते हैं। वास्तव में उनका उपनाम सिंह है लेकिन वे अपने को यादव बता रहे हैं। पहलवान से नेता बने ददन राबड़ी देवी सरकार में एक मंत्री थे।
आश्चर्य की बात है कि इस बार के नामांकन पत्रों में उन्होंने अपने पिता के नाम के आगे भी यादव लगा दिया जबकि पिछले मौकों पर उनके पिता स्वर्गीय लालचंद सिंह थे, जो कि जिले के नेनुआ पुलिस थाने के अंतर्गत सम्भर गांव के निवासी थे। उनके पिता का नाम भी लालचंद सिंह यादव हो गया है।
ददन एक रोचक उम्मीदवार हैं और 2010 के विधानसभा चुनावों से पहले एक पार्टी प्रजातांत्रिक लोक एकता दल बनाई थी लेकिन बाद में उन्होंने अपने दल का विलय जनता दल (एस) में कर लिया था, लेकिन चुनावों में हार के बाद वे मायावती के समर्थक हो गए।
पटना साहिब से कांग्रेस उम्मीदवार कुणाल सिंह ने अपने प्रचार पोस्टरों पर अपना नाम कुणाल यादव कर लिया है। यह उपनाम सभी पोस्टरों में ब्रैकेट में लिखा है। ददन पहलवान बिहार में सपा इकाई के अध्यक्ष भी रह चुके हैं लेकिन पार्टी ने उन्हें निकाल बाहर किया तो वे मायावती से जुड़ गए। पिछले कई वर्षों के दौरान उनका नाम बहुत सारे विवादों से जुड़ा है।
'डेली मेल ऑन लाइन' के अनुसार उन पर आरोप है कि उन्होंने पटना में एक सरकारी बंगले पर भी जबरन कब्जा कर रखा है। बक्सर और पटना साहिब सीटों पर 17 अप्रैल को मतदान होना है।