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Written By सुरेश एस डुग्गर

कश्मीर चुनाव में आतंकी खौफ का असर

कश्मीर चुनाव में आतंकी खौफ का असर -
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कश्मीर वादी की 3 लोकसभा सीटों के लिए पहले चरण के मतदान का आगाज 24 अप्रैल को होना है, पर आतंकी खौफ उससे पहले ही अपना असर दिखाने लगा है।

पीडीपी से जुड़े एक सरपंच और नेकां के एक युवा नेता की आतंकियों द्वारा की गई हत्या के बाद पंचों और सरपंचों द्वारा इस्तीफे देने का सिलसिला थमा नहीं था और न ही उन पोस्टरों का सिलसिला थम पाया है जिनमें मतदाताओं को चुनाव प्रक्रिया से दूर रहने के लिए कहा जा रहा है।

चुनावों की घोषणा के साथ ही अलगाववादियों ने इलेक्शन बायकॉट की रेल को पटरी पर खड़ा कर दिया था। उन्हें बंदूकधारी आतंकियों का भी समर्थन प्राप्त था। वे जानते थे कि बंदूक के डर के बिना कश्मीरी बायकॉट में हिस्सा इसलिए नहीं लेंगे, क्योंकि उन्हें अब 25 साल के आतंकवाद के दौर में इलेक्शन बायकॉट बेमायने लगने लगा था।

नतीजा सामने था। वोटरों को डराने-धमकाने और पोलिंग बूथों से दूर रखने की खातिर आतंकियों ने फिर से वही पुरानी चाल चली है। इसमें कोई नई बात भी नहीं थी, क्योंकि कश्मीरियों के लिए वैसे भी चुनावों के मायने आतंक की लहर होती है। चाहे यह आतंक आतंकियों द्वारा फैलाया जा रहा था या फिर सुरक्षाबलों द्वारा घर-घर तलाशी अभियान चलाकर।

अगले पन्ने पर आतंकी पोस्टर और अलगाववादी नेताओं की अपील...

कुछ भी कहा जाए, आतंकी खौफ अपना काम कर रहा है। इस आतंकी खौफ की सबसे अधिक चिंता पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को है, क्योंकि वह जानती है कि नेकां का परंपरागत वोटर तो इलेक्शन बायकॉट के बावजूद मतदान करने के लिए आएगा और इलेक्शन बायकॉट का साफ मतलब उसके लिए नेकां उम्मीदवारों की जीत है।

यही कारण था कि लोगों को आतंकी खौफ से परे रहने की अपील पीडीपी द्वारा बार-बार की जा रही है, पर ऐसा कुछ नेकां की ओर से नजर नहीं आता था।

हालांकि कश्मीरियों के चेहरों पर विशेषकर उन आतंकवादग्रस्त क्षेत्रों में जहां आतंकी पोस्टर मतदान से दूर रहने की चेतावनी दे रहे हैं, कश्मीरी फिलहाल फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि वे 25 सालों से चली आ रही परंपरा को निभाएं या फिर इसे इस बार तोड़ दें।

इस परंपरा को तोड़ पाना कश्मीरियों के लिए आसान भी नहीं है। चुनावों के लिए कश्मीर वादी की 3 सीटों पर मतदान का पहला चरण 24 अप्रैल को अनंतनाग की सीट पर मतदान से आरंभ होना है, पर कश्मीर में अभी भी वह चुनावी माहौल नहीं है जिसकी उम्मीद की गई थी।

इतना जरूर था कि आतंकियों द्वारा की जाने वाली हत्याओं के बाद मातम का माहौल जरूर नजर आता था तो अलगाववादियों की चुनाव विरोधी मुहिम जरूर दिख रही थी।

कश्मीर के चुनावी माहौल का एक रोचक तथ्य यह था कि चुनाव मैदान में उतरने वाले चाहे वोट मांगने की खातिर घर-घर नहीं जा रहे थे, पर अलगाववादी नेता जरूर इलेक्शन बायकॉट की मुहिम के तहत लोगों के द्वार खटखटा रहे थे।