कैसे होते हैं एक्जिट पोल और कितने सही...
-राकेश कुमार
भारत में जब भी चुनाव होता है उसके तुरंत बाद ही सभी मीडिया चैनल और समाचार-पत्र संस्थान चुनाव संबंधी एक्जिट पोल तैयार कर सामने रखते हैं जिससे यह मालूम होता है कि चुनाव के बाद किसकी सरकार बनने वाली है।सर्वे एजेंसियां इसे लोगों की पसंद की सरकार करार देते हैं, जो मीडिया संस्थान वर्तमान सरकार के प्रति गुस्सा और प्यार बताते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो इस बार भी 5 राज्यों में चुनाव खत्म होते ही एक्जिट पोल दिखा दिए गए। कुछ पार्टियों को इस पोल से निराशा हुई तो कुछ काफी खुश दिखाई दिए।लेकिन ये एक्जिट पोल कितने प्रतिशत तक सही हैं, उसके बारे में कोई मीडिया संस्थान नहीं बताता और न ही सर्वे एजेंसी। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने तो इस पोल को पूरी तरह बकवास बताया। सर्वे कंपनियों का कहना है कि इसके नतीजे लगभग सही होते हैं। यह कभी-कभी पूरी तरह सही भी हो जाता है लेकिन पूरी तरह से गलत कभी नहीं।
आइए हम आपको बताते हैं कि किस तरह से एक्जिट पोल तैयार करती हैं कंपनियां...
यह एक्जिट पोल शोध के सर्वे विधि और प्रश्नावली विधि के आधार पर तैयार किया जाता है। सर्वे कंपनियां पहले यह तय करती हैं कि किन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं। फिर उस राज्य में सरकार किसकी है और विपक्ष में कौन है।इसके बाद कंपनी एक सर्वे टीम तैयार करती है जिसे कि चुनाव वाले राज्यों के सभी क्षेत्रों में भेजा जा सके। इसके बाद 15 से 20 प्रश्नों की प्रश्नावली तैयार की जाती है जिसमें 90 फीसदी प्रश्न में 4 से 5 ऑप्शन रहते हैं। इसमें केवल 2-5 प्रश्न ऐसे होते हैं जिसके लोग उत्तर लिख सकें।इन प्रश्नावलियों की प्रत्येक शहर के अनुसार 10,000 कॉपियां तैयार की जाती हैं और फिर अपनी सर्वे टीम को उस क्षेत्र में भेज दिया जाता है। यह टीम शहर के सभी इलाकों में घूम-घूमकर लोगों से प्रश्नावलियां भरवाती है।हालांकि यह टीम कभी भी पूरे क्षेत्र का दौरा नहीं करती और खुद ही 40 फीसदी प्रश्नावलियां भर देती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह प्रश्नावलियां केवल अपर वर्ग व मध्य वर्ग के लोगों से भरवाई जाती हैं। लगभग 1 महीने में यह टीम सभी प्रश्नावलियां भरवाकर अपने प्रमुख संस्थान वापस लौट जाती है और उसके बाद सर्वे कंपनी एकत्र प्रश्नावलियों का विश्लेषण करती है और उसकी एक रिपोर्ट तैयार करती है जिसे संस्थान एक्जिट पोल करार देती है। यह पोल 1 महीने पूर्व एकत्र आंकड़ों का विश्लेषण होता है। यही आंकडा़ चुनाव खत्म होने के तुरंत बाद और परिणाम आने से पूर्व दिखाया जाता है जिसे चुनाव में लड़ रहीं पार्टियों के ऊपर मानसिक प्रभाव भी पड़ता है।