एक सदी से ज्यादा का विवाद
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लखनऊ से अरविंद शुक्ला यूँ तो बाबरी मस्जिद पर मालिकाना हक का मामला तो 100 बरस से भी अधिक पुराना है। लेकिन यह अदालत पहुँचा वर्ष 1949 में, जब 23 दिसम्बर 1949 को सुबह बाबरी मस्जिद का दरवाजा खोलने पर पाया गया कि उसके भीतर हिन्दुओं के आराध्य देव रामलला की मूर्ति रखी थी।इस जगह हिन्दुओं के आराध्य राम की जन्मभूमि होने का दावा करने वालों का कहना था कि रामलला यहाँ प्रकट हुए हैं, लेकिन मुसलमानों का आरोप है कि रात में किसी ने चुपचाप बाबरी मस्जिद में घुसकर यह मूर्ति वहाँ रख दी थी। मुसलमानों का कहना है कि ऐसा कोई सबूत नही है कि वहाँ कभी मन्दिर था। पाँच जनवरी 1950 को जिलाधिकारी ने साम्प्रदायिक तनाव की आशंका से बाबरी मस्जिद को विवादित इमारत घोषित कर दिया और उस पर ताला लगाकर इसे सरकारी कब्जे में ले लिया था। इसी घटना के बाद से मुकदमे शुरू हुए।अदालत में चल रहा पहला मुकदमा ओएसएस नम्बर 1 ऑफ 1989, रेगुलर सूट संख्या 2/1950 जो कि 18 जनवरी 1950 को दाखिल हुआ था। गोपाल सिंह विशारद बनाम जहूर अहमद एवं अन्य का है। 18 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद द्वारा सिविल जज की अदालत में मुकदमा दाखिल किया गया था। इसमें राहत माँगी गई है कि, यह घोषणा की जाए कि भूमि के निकट जाकर बिना रोकटोक निर्विवाद, निर्विघिन पूजा करने का अधिकारी है। यह कि, स्थाई व सतत् निषेधात्मक आदेश प्रतिवादीगण एक लगायात 6 और 6 लगायात 9 व प्रतिवादी संख्या 10 व उनके स्थानापन्न स्थान जन्मभूमि जिसका विवरण (पूरब भण्डार चबूतरा, पश्चिम परती, उत्तर सीता रसोई, दक्षिण परती) उसमें श्री भगवान रामचन्द्र आदि की विराजमान मूर्तियों को जहाँ है, वहाँ से कभी न हटाया जाए और उसके प्रवेश द्वार व अन्य आने-जाने के मार्ग न बंद करें और पूजा तथा दर्शन में किसी प्रकार की बाधा न डालें।इस मुकदमें में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड तथा निर्मोही अखाड़ा भी पक्षकार है। मुस्लिम पक्ष का कहना था कि आखिरी नमाज 16 दिसम्बर 1949 तक पढ़ी गई। विशारद का कहना था कि यहाँ अनादिकाल से बिना रोक-टोक पूजा करते चले आए हैं और यह भगवान राम की जन्मस्थली है। अदालत ने सभी प्रतिवादियों को नोटिस देने के आदेश दिए और 16 जनवरी 1950 को ही गोपाल सिंह विशारद के पक्ष में अन्तिम आदेश जारी कर पूजा अर्चना की अनुमति प्रदान की। सिविल जज ने 3 मार्च 1951 को अपने अन्तरिम आदेश की पुष्टि कर दी। मुस्लिम समाज के कुछ लोग इस आदेश के विरूद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय में गए। मुख्य न्यायाधीश श्रीबाथम व श्रीरघुबर दयाल की पीठ ने 26 अप्रैल 1955 को अपने आदेश के द्वारा सिविल जज के आदेश को पुष्ट कर दिया और ढाँचे के अन्दर निर्वाध पूजा व अर्चना का अधिकार सुरक्षित रहा। इसी आदेश के तहत आज तक भगवान श्रीरामलला की पूजा-अर्चना हो रही है। दूसरा मुकदमा पहले मुकदमे के ठीक समान प्रार्थना के साथ दूसरा मुकदमा नियमित वाद संख्या 25/1950 महंत परमहंस श्रीराम चन्दास ने 5 दिसम्बर 1950 को सिविल जज फैजाबाद की अदालत में दायर किया था। अदालत ने गोपाल सिंह विशारद को दी गई सुविधा परमहंसजी को भी प्रदान की। परमहंसजी ने यह मुकदमा 1992 में वापस ले लिया। तीसरा मुकदमा ओएसएस नम्बर 3 ऑफ 1989, रेगुलर सूट नम्बर 26/1959 जो कि 17-12-1959 को दायर किया गया था। सात पृष्ठ के यह दावा अंग्रेजी में पंच रामानन्दी निर्मोही अखाड़ा एवं अन्य बनाम बाबू प्रियदत्त राम एवं 10 अन्य से सम्बन्धित है। बाबू प्रियदत्त राम रिसीवर थे। निर्मोही अखाड़ा द्वारा विवादित सम्पत्ति की देखरेख के लिए रिसीवर की नियुक्ति रद्द कर मंदिर का कब्जा अखाड़े को देने के लिए मुकदमा दर्ज किया गया। इसमे सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड पार्टी बनी। मुस्लिम पक्ष का कहना था कि भारत में विजय अभियान के बाद बाबरी मस्जिद को बाबर ने 460 साल पहले बनवाया था। वहाँ पर पुरानी कब्रगाह है। यह उन मुसलमानों की कब्र हैं, जिन्होंने अयोध्या के शासन एवं बाबर के बीच हुए युद्ध में अपनी जान दी थी। यह मस्जिद मोहल्लाकोट मे स्थित है। बाबरी मस्जिद पब्लिक वक्फ है क्योंकि बाबर एक सुन्नी मुसलमान था और उसने वक्फ की स्थापना की थी। इस मुकदमें में मुस्लिम पक्ष द्वारा रिलीफ माँगी गई कि विवादिन स्थान को बाबरी मस्जिद घोषित किया जाए। वहाँ स्थित मूर्तियों को हटाकर कब्जा मुसलमानों को दिया जाए। चौथा मुकदमा 4/1989 रेगुलर सूट नम्बर 12/1961 को उत्तरप्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से 18 दिसम्बर 1961 को जिला अदालत फैजाबाद में, जिसमें सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने हकदारी मुकदमा दायर कर माँग की थी कि विवादित ढाँचे से मूर्तियाँ हटायी जाए तथा कब्जा मुसलमानों को दे दिया जाए और उस स्थान को मस्जिद घोषित कर दी जाए। इस मामले में 22 विपक्षी पार्टियाँ हैं। इस मुकदमें में राहत माँगी गई कि वाद पत्र के साथ नत्थी किए गए नक्शे में एबीसीडी अक्षरों से दिखाई गई सम्पत्ति को मस्जिद घोषित कर दिया जाए और उस स्थान पर कब्जा मुसलमानों को दिलाया जाए एवं वहाँ पर जो विराजमान मूर्तियाँ हैं, उनको हटाया जाए। उल्लेखनीय है कि सिविल जज फैजाबाद द्वारा 6 जनवरी 1964 को दिए गए आदेश के माध्यम से उपरोक्त चारों मुकदमे की सुनवाई के लिए एक साथ जोड़ दिए गए।पाँचवाँ मुकदमा ओओएस नम्बर 5/1989 रेगुलर सूट नम्बर 236/1989 जो कि 37 पृष्ठ का अंग्रेजी में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त पूर्व न्यायाधीश एवं एडव्होकेट देवकी नन्दन अग्रवाल ने रामलला विराजमान की तरफ से राजेन्द्र सिंह विशारद एवं 27 अन्य के नाम से सम्बन्धित है दाखिल किया था।इस मुकदमें में अदालत से माँग की गई थी कि यह घोषणा की जाए कि अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि का सम्पूर्ण परिसर श्रीरामलाल विराजमान का हैं और प्रतिवादियों के विरुद्ध स्थायी स्थगनादेश जारी करके कोई व्यवधान खड़ा करने या कोई आपत्ति करने से या अयोध्या में श्रीराम जनमभूमि पर नए मंदिर के निर्माण कोई बाधा खड़ी करने से रोका जाए। इलाहाबाद उच्च न्यायालय को अयोध्या मामले विवाद से सम्बन्धित 100 सें अधिक बिन्दुओं पर अपना फैसला देना है। इन सभी का केन्द्र 130 गुणा 90 फीट की वह जमीन जिस पर बाबरी मस्जिद के तीनों गुम्बद खड़े थे और जिसे हिन्दू भगवान का जन्म स्थान मानते है। अन्य मुख्य वाद बिन्दु 1.
क्या उक्त विवादित स्थल श्रीरामचन्द्र की जन्मभूमि है।2.
क्या प्रकरणगत स्थल बाबर द्वारा 1528 में बनवाई गई बाबरी मस्जिद है। 3.
क्या वहाँ पर भगवान श्रीरामचन्द्र आदि की मूर्तियाँ विराजमान हैं। 4.
क्या प्रकरणगत स्थल पर विवादित ढाँचा श्रीराम जन्मभूमि मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। 5.
क्या प्रकरणगत स्थल इस्लामिक लॉ के अन्तर्गत मस्जिद है।6.
क्या प्रकरणगत का स्थल तीन तरफ समाधियों से घिरा होने के कारण मस्जिद हो सकता है। 7.
क्या प्रकरणगत भवन के अन्दर जो खम्भे लगे थे उन पर देवी-देवताओं जानवरों और अन्य सजीवों के चित्र उकेरे हुए थे।8.
क्या प्रकरणगत भवन राम जन्मभूमि स्थल को तोड़कर बाबर द्वारा बनवाया गया था। 9.
क्या प्रकरणगत स्थल से हिन्दू अनादिकाल से अनवरत पूजा, इस पर आस्था विश्वास और परम्परा करते आ रहे हैं कि उक्त स्थल उनके अराध्य देव भगवान राम की जन्मस्थली रही है। 10.
क्या मुसलमानों का वाद कालवाधित (बार्ड बाई लिमिटेशन) है। 11.
क्या विवादित भवन नजूल प्लाट संख्या 583 पर मोहल्ला रामकोट अयोध्या में था। 12.
क्या प्रकरणगत भवन बाबर द्वारा बनवाया गया था या मीर बांकी द्वारा।13.
क्या अधिकांशत: हिन्दू श्रीराम जन्मभूमि में आस्था रखते हैं।