अरविंद केजरीवाल : बुलंद हौसले से 'दबंगों' को डराया
नई दिल्ली। राजनीति के वैकल्पिक ब्रांड के प्रतीक के रूप में उभरे और इंजीनियर से लोकसेवक बने अरविंद केजरीवाल ने ‘आप’ को सत्ता में लाकर राजनीतिक सोच बदल दी है। आम आदमी पार्टी (आप) की इस जीत से कार्यकर्ताओं की उस पार्टी ने उस व्यंग्य का एक मीठा-सा बदला ले लिया है जिसमें उसे कभी ‘बेहद कमजोर’ बताया गया था। 6
अगस्त 1968 को हरियाणा के हिसार में गोबिंद राम केजरीवाल और गीतादेवी के घर पैदा हुए अरविंद ने भ्रष्टाचार, बिजली दरों और पानी के बिलों में वृद्धि, महिला सुरक्षा के मुद्दों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों पर हमला बोलकर पूरे राजनीतिक परिदृश्य में घबराहट पैदा कर दी थी।आम आदमी पार्टी के 45 वर्षीय नेता ने सामने से मोर्चा संभालकर गैरपरंपरागत तरीके से अपनी मुहिम शुरू की और उनकी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर कांग्रेस के 15 साल के शासन को समाप्त कर दिया। ‘आप’ के एजेंडे में आम आदमी के हितों को केंद्र में रखते हुए केजरीवाल ने 3 बार मुख्यमंत्री रह चुकीं शीला दीक्षित को हरा दिया।
अगले पन्ने पर, रॉबर्ट वॉड्रा के मैंगो पीपुल....
देश के राजनीतिक क्षितिज पर नए सितारे की तरह उभरकर पहली बार में चुनावी मैदान में सफलता हासिल कर लेने वाले केजरीवाल की पार्टी 'आप' को अपना सबसे यादगार उपनाम उस समय मिला था, जब कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा ने इस साल की शुरुआत में ‘आप’ को ‘मैंगो पीपुल इन बनाना रिपब्लिक’ यानी ‘राजनीतिक रूप से बेहद कमजोर देश के लोग’ कहा था।
ळजनता के मुद्दों को मुखरता के साथ उठाने वाले केजरीवाल इन दोनों ही दलों के वोट बैंकों में सेंध लगाने में कामयाब रहे। दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा की ओर से ‘नगण्य’ माने जा रहे केजरीवाल मुख्य रूप से वर्ष 2011 में जनलोकपाल विधेयक के समर्थन में 75 वर्षीय अन्ना हजारे द्वारा किए गए आंदोलन में सामने आए थे। अगले पन्ने पर, वाणी में कोमलता, लेकिन मजबूत इरादे...
केजरीवाल ने भारतीय राजनीति के खेल के पुराने नियम-कायदों को हटाते हुए इस खेल के नए मापदंड तय किए। भ्रष्टाचार विरोधी पार्टी के रूप में शुरू हुए इस सामाजिक आंदोलन ने पूरे भारत में मौजूद छात्रों, किसानों, नागरिक अधिकार समूहों, गैर सरकारी संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, महिला समूहों और शहरी युवाओं की असीमित उर्जा अपने साथ ले ली।