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वन नेशन वन इलेक्शन में दक्षिण भारत पर भारी पड़ेगा उत्तर भारत?

वन नेशन वन इलेक्शन में दक्षिण भारत पर भारी पड़ेगा उत्तर भारत? - Will North India outweigh South India in One Nation One Election?
वन नेशन-वन इलेक्शन को मोदी मंत्रिमंडल ने बुधवार को वन नेशन वन इलेक्शन प्रस्ताव पर पूर्व राष्‍ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी। सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में इस पर बिल लाएगी। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिश को मंत्रिमंडल की मंजूरी मिलने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि यह हमारे लोकतंत्र को अधिक जीवंत और सहभागी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर मैं पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस प्रयास की अगुवाई के लिए बधाई देता हूं। यह हमारे लोकतंत्र की मजबूती ‍की दिशा में अहम कदम होगा। हालांकि विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया है।

दक्षिण भारत पर भारी होगा उत्तर भारत?-वन नेशन वन इलेक्शन को देश में 2029 के लोकसभा चुनाव में लागू किया जा सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वन नेशन वन इलेक्शन में उत्तर भारत दक्षिण भारत पर भारी पड़ेगा। दरअसल इसकी वजय 2029 में लोकसभा और विधानसभाओं के लिए होना वाला परिसीमन है। परिसीमन में लोकसभा की सीटों की संख्या 543 से बढ़कर 750 तक हो  सकती है। ऐसे में 2029 का लोकसभा चुनाव लगभग साढ़े सात सौ सीटों के लिए हो सकता है।
लोकसभा की सीटें दक्षिण भारत की जगह उत्तर भारत में अधिक संख्या में बढ़ सकती है, इसका कारण परिसीमन में जनसंख्या के आधार पर सीटों की संख्या का निर्धारण होना है। दक्षिण भारत के राज्यों की तुलना में उत्तर भारत के राज्यों में जनसंख्या तेजी से बढ़ी है, ऐसे में यदि समान जनसंख्या के आधार पर सीटों पर निर्धारण होता है तो लोकसभा में दक्षिण के राज्यों का प्रतिनिधित्व गिर सकता है, उत्तर भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व यानि सीटों की संख्या बढ़ेगी। यहीं कारण है कि लोकसभा सीटों को बढ़ाने में सबसे ज्यादा पेंच दक्षिण के राज्यों के विरोध का है।
यहीं कारण है कि दक्षिण भारत के राज्य परिसीमन को लेकर आंशकित नजर आ रहे है और उन्होंने केंद्र के सामने अपनी चिंता जताई है। इसके तहत सिर्फ जनसंख्या के आधार पर सीटों के निर्धारण के बजाय उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय राज्यों के बीच एक आनुपातिक प्रणाली के तहत सीटों को बढ़ाने का फॉर्मूला निकाला जा सकता है। ताकि दक्षिण के राज्यों का लोकसभा प्रतिनिधित्व प्रभावित नहीं हो।

दअसल 2002 के परिसीमन कानून के मुताबिक 2026 तक लोकसभा की सीटें बढ़ाने पर रोक लगी हुई। कानून में साफ किया गया है कि 2026 के बाद होने वाली जनगणना के आधार पर ही सीटों का परिसीमन होगा। ऐसे में अब जब केंद्र सरकार जनगणना शुरु करने जा रही है, तब उसके आंकड़ों के आधार परिसीमन करने में कोई समस्या भी नहीं होगी।

विरोध में दक्षिण भारत के सियासी दल-वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए तेजी से आगे बढ़ती मोदी सरकार के सामने कई चुनौतियां भी है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती गठबंधन के सहयोगियों को इसके लिए सहमत करना है। दरअसल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा के नेतृत्व वाले NDA गठबंधन ने भले ही तीसरी बार सरकार बनाई हो लेकिन यह 2014, 2019 की तुलना में बहुत अलग है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां भाजपा को सदन में अकेले बल पर भी बहुमत प्राप्त था तो वहीं इस बार भाजपा सदन में अपने बल पर बहुमत के आंकड़े से बहुत दूर है, ऐसे में इस बार उसे गठबंधन के सहयोगियों के भरोसे ही सरकार चलाना है।

ऐसे में जब सरकार में चंद्रबाबू की पार्टी तेलुगु देशम पार्टी और जेडीएस ने वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर अपने  पत्ते नहीं खोले है। ऐसे में जब यह दोनों सहयोगी दल दक्षिण भारत से आते है और वह सरकार में एक महत्वपूर्ण सहयोगी दल है, ऐसे में इनकी सहमति होना जरूरी है। ऐसे में जब गठबंधन सरकार चला रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने पहले 100 दिन में कई बार अपने फैसलों से से पीछे भी हटना पड़ा है।

वन नेशन-वन इलेक्शन पर क्या है पार्टियों का रूख-
वन नेशन-वन इलेक्शन का समर्थन- भाजपा और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के अलावा अन्नाद्रमुक, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, अपना दल (सोनेलाल), असम गण परिषद, बीजू जनता दल, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), मिजो नेशनल फ्रंट, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, शिरोमणि अकाली दल और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल

विरोध में राजनीतिक पार्टियां-कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के अलावा क्षेत्रीय पार्टियों में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ), तृणमूल कांग्रेस, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), द्रमुक, नागा पीपुल्स फ्रंट और समाजवादी पार्टी ने एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का विरोध किया। अन्य दलों में भाकपा (माले) लिबरेशन, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया ने इसका विरोध किया। राष्ट्रीय लोक जनता दल, भारतीय समाज पार्टी, गोरखा नेशनल लिबरल फ्रंट, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) भी विरोध करने वाले राजनीतिक दलों में शामिल हैं।

इन पर्टियों ने साधी चुप्पी-  भारत राष्ट्र समिति, तेलुगु देशम पार्टी,वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, जनता दल (सेक्युलर),
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, जम्मू- कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस,झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल कांग्रेस (एम), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार), राष्ट्रीय जनता दल, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट।

महिलाओं का 33 फीसदी होगा आरक्षण?- वन नेशन-वन इलेक्शन में महिलाओं का संसद में प्रतिधित्व बढ़ना निश्चित है। नारी शक्ति वंदन अधिनियम के मुताबिक परिसीमन के बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में पिछले साल 20 सितंबर को नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल पास किया था। बिल के जरिए लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% सीटें रिजर्व होंगी। इसके बाद संसद और विधानसभाओं में आधी आबादी की 33% भागीदारी हो जाएगी।

भारत में परिसीमन आयोग का गठन-भारत में सबसे पहले 1952 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था। इसके बाद 1963,1973 और 2002 में परिसीमन आयोग गठित किए जा चुके हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-82 के तहत हर बार जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम (डिलिमिटेशन एक्ट) लागू किया जाता है, वहीं अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को भी हर जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में बांटा जाता है। यह अधिनियम लागू होने के बाद केंद्र सरकार परिसीमन आयोग का गठन करती है। परिसीमन आयोग का उद्देश्य जनगणना के ताजा आंकड़ों के आधार पर सभी लोकसभा और विधानसभा के सीटों की संख्या के साथ उनकी सीमाएं निर्धारित करना।
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