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Written By Author सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021 (10:08 IST)

कश्मीर में सबसे बड़ा सवाल, विदेशी मेहमानों के आगमन पर ही क्यों होते हैं हमले और हत्याएं

Jammu and Kashmir | कश्मीर में सबसे बड़ा सवाल, विदेशी मेहमानों के आगमन पर ही क्यों होते हैं हमले और हत्याएं
जम्मू। पिछले 32 सालों से कश्मीर में आतंकी हमले कोई नई बात नहीं हैं। बंकरों को बनाना भी कोई नई बात नहीं है। सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर नागरिकों को जिल्लत के दौर से गुजारना भी कोई नई बात नहीं है। यही कारण था कि आम नागरिकों का सवाल था कि आखिर विदेशी मेहमानों के आगमन पर ही ऐसे हमले और ऐसी कवायदें क्यों तेज हो जाती हैं?
 
ताजा घटनाक्रम में श्रीनगर के सबसे प्रसिद्ध एकमात्र शुद्ध शाकाहारी ढाबा कृष्णा ढाबा पर हुआ आतंकी हमला फिलहाल जांच का विषय है कि आखिर आतंकियों ने पहली बार इस ढाबे को निशाना क्यों बनाया? कश्मीर में फैले 32 सालों के आतंकवाद के इतिहास में आतंकियों ने कभी भी इस ढाबे को निशाना नहीं बनाया था, जो कश्मीर आने वाले लाखों पर्यटकों की खास पसंद है।
दरअसल कृष्णा ढाबे पर हुआ हमला ऐसे समय पर हुआ था, जब कश्मीर में 24 देशों के राजनयिक 'सब चंगा है' को देखने के लिए आए थे। वर्ष 2019 में 5 अगस्त को तत्कालीन राज्य के 2 टुकड़े कर देने और उसकी पहचान खत्म कर देने की कवायद के बाद विदेशी राजनयिकों का यह तीसरा दौरा था जिसे कांग्रेस 'गाइडिड टूर' के नाम पुकारती थी।
 
यही सवाल अब उठ रहा है कि आखिर वर्ष 2000 के मार्च की 20 तारीख को आतंकियों ने कश्मीर के छत्तीसिंहपोरा में 36 सिखों का नरसंहार क्यों किया था? तब अमेरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत के दौरे पर आने वाले थे। छत्तीसिंहपोरा नरसंहार की जिम्मेदारी आज तक किसी भी आतंकी गुट ने नहीं ली है। लेकिन इतना जरूर था कि कृष्णा ढाबे पर आतंकी हमले की जिम्मेदारी उस मुस्लिम जांबाज फोर्स ने ले ली जिसने हमले के कुछ घंटे पहले ही सोशल मीडिया पर धमकी दी थी कि वे प्रवासी नागरिकों को कश्मीर से मार भगाएंगे।
इस हमले में गंभीर रूप से जख्मी होने वाला आकाश मेहरा ढाबे के मालिक का बेटा था और जम्मू के जानीपुरा का रहने वाला था। ऐसे में यह सवाल जरूर उठता था कि वाकई आतंकियों ने उसे प्रवासी नागरिक मानकर हमला किया था या फिर उनके निशाने पर वे टूरिस्ट थे, जो देश-विदेश से आए थे और जो उस समय ढाबे पर मौजूद थे।
 
सवालों के ढेर में एक और सवाल उठ खड़ा होता था कि आखिर राजनयिकों के दौरे से पहले ही श्रीनगर शहर से उन बीसियों सुरक्षा बंकरों को क्यों हटा दिया गया था जिन्हें सुरक्षा के नाम पर कुछ माह पहले बनाया गया था और जो सूर्यनगरी श्रीनगर की खूबसूरती पर पैबंद की तरह लग रहे थे। हालांकि सुरक्षाधिकारी सफाई पेश करते थे कि अब उनकी जरूरत नहीं थी। पर वे इस सवाल का जवाब नहीं देते थे कि क्या सुरक्षा का माहौल ठीक हो चुका है। उनकी चुप्पी को बंकरों को हटाए जाने के 12 घंटों के बाद हुआ आतंकी हमला जरूर तोड़ देता था।