मंगलवार, 19 नवंबर 2024
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  4. When we say slogans like Sar tan se juda wrong, we are called anti-Muslim

जब हम ‘सर तन से जुदा’ जैसे नारे को गलत कहते हैं, तो हमें एंटी मुस्‍लिम कहा जाता है

sushant sinha
इंदौर में हाल ही आयोजित सोशल मीडिया कॉनक्‍लेव में शिरकत करने आए ख्‍यात पत्रकार सुशांत सिन्‍हा ने खासतौर से वेबदुनिया से चर्चा की। वे अपनी अलग तरह की पत्रकारिता के लिए अक्‍सर चर्चा में रहते हैं। जब उनसे पूछा गया कि इन दिनों पत्रकारिता दो खेमों में बंटी हुई है, वो या तो सरकार के पक्ष में है या फिर सरकार के ठीक खिलाफ। इस पर उनका कहना था कि एक तीसरी तरह की पत्रकारिता भी होती है, जिसमें पत्रकार राष्‍ट्रप्रथम या राष्‍ट्र हित की बात उठाता है।

वेबदुनिया ने सुशांत सिन्‍हा से ऐसे कई मुद्दों पर बात की, उन्‍होंने बेबाकी से सवालों के जवाब दिए, आइए जानते हैं देश के इस पूरे राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्‍य पर वे क्‍या सोचते हैं।

सवाल : इन दिनों फेसबकु और ट्विटर से टीवी न्‍यूज के कार्यक्रम बनते हैं, ट्रेंडिंग से अखबारों में खबरें बन रही हैं, पहले ऐसा नहीं था, क्‍या अब सोशल मीडिया के हिसाब से पत्रकारिता चल रही है?

जवाब : मैं इससे पूरी तरह से सहमत नहीं हूं। मैं मानता हूं कि सोशल मीडिया में क्‍या चल रहा है, इस पर हमारी नजरें रहती हैं, लेकिन सोशल मीडिया देश के सेंटीमेंट की एक बानगीभर है। यह पूरे देश का सेंटीमेंट नहीं है। अगर सोशल मीडिया के हिसाब से न्‍यूज को ड्राइव करेंगे तो हम एक नरेटिव में फंस जाएंगे, उसके ट्रैक में फंस जाएंगे, जबकि यह पूरा सच नहीं है। कितना सही है, कितना एजेंडा है यह देखना होगा, उसका एक सेंटीमेंट् ले सकते हैं। जिन लोगों ने अपना नरेटिव चला रखा है, एक ईको सिस्‍टम बना रखा है, उन लोगों के हिसाब से जाएंगे तो नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री नहीं हो सकते हैं, क्‍योंकि उनके हिसाब से तो वे दस बार हार गए हैं, कई बार उनकी कुर्सी चली गई है। लेकिन हकीकत में कई जगहों पर लोग पीएम को भगवान की तरह मानते हैं। कोई कहता है हमें शौचालय मिला, किसी को राशन तो किसी को घर मिला है। तो सोशल मीडिया सबकुछ नहीं है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वो कुछ भी नहीं है, कुछ चीजें उससे प्रभावित होती हैं।

सवाल : तो यह मान लेना चाहिए कि सोशल मीडिया और जमीनी हकीकत में अंतर है?
जवाब : मैं यह नहीं कहूंगा कि सोशल मीडिया में जितनी चीजें दिख रही हैं, वो जमीन पर नहीं हैं, लेकिन सोशल मीडिया को भी कुछ लोगों ने कैप्‍चर कर रखा है। जैसे देश में भी देखेंगे कि कुछ लोगों ने हर जगह कैप्‍चर कर रखा है, जब तक आप उसे आजाद नहीं कराएंगे आपको असल सेंटीमेंट्स पता नहीं चलेंगे। तो सही सेंटीमेंट्स पता करने के लिए जैसे हम खबरों को दस जगह देखते हैं,क्रॉस चेक करते हैं, ठीक ऐसे चेक करना पड़ेगा, नहीं तो हम नरेटिव में फंस जाएंगे। ठीक इसी तरह से सोशल मीडिया में जो ट्रेंड चल रहा है, उसकी खोजबीन में भी आपको मेहनत करना पड़ेगी। जो ट्रेंड चला रहे हैं वे कौन लोग हैं, इनमें कितनी पब्‍लिक की है।

सवाल : सेना में भर्ती को लेकर सरकार की अग्‍निवीर योजना का खासा विरोध हुआ था? 
जवाब : जब सेना में भर्ती को लेकर यह योजना आई तो कुछ स्‍टेट में उसका विरोध हुआ, इसे भी किसान आंदोलन की तरह एक नरेटिव में फंसा दिया गया। अगर आप सोशल मीडिया में जाएंगे तो उसके हिसाब से यह योजना आनी ही नहीं चाहिए थी, लेकिन हकीकत में योजना आई और उसके लिए रिकॉर्ड आवेदन आए।

सवाल : क्‍या सोशल मीडिया को सरकार विरोधी ताकतों ने अपने लिए हथियार बना लिया है?
जवाब : हर बार यही होता है, आप सोशल मीडिया को देखेंगे तो वो देश विरोधी नजर आएगा, लेकिन जमीन उसका सेंटीमेट्स यह होता है कि पूरा देश उस योजना के साथ है।

सवाल : तो क्‍या सरकार का विरोध नहीं करना चाहिए?
जवाब : सरकार का विरोध होना चाहिए, उसकी नीतियों का विरोध होना चाहिए, लेकिन देश विरोधी बात नहीं होनी चाहिए।

सवाल : आपको क्‍या लगता है देश को किस चीज से खतरा है?
जवाब :
मैंने अभी अपने सत्र में कहा कि हम एक वॉर में हैं। देश में एक युद्ध चल रहा है कि कैसे 2014 के बाद एक पॉलिटिक्‍स ऐसी चल रही है जो देश को कई बंधनों से आजाद कर रही है, बोलने का मौका दे रही है, उसे रोका जाए। एक उदाहरण देखिए कि आज पद्म सम्‍मान डिजर्व करने वालों को मिल रहा है, आज आदिवासी, नंगे पैर चलने वाले लोगों को सम्‍मान मिल रहा है। पहले उनके हिसाब से लिस्‍ट बनती थी। अपने लोगों को रखा सम्‍मान सूची में और बस हो गया। यह टूट रहा है। यहां तक कि दुनिया को पसंद नहीं आ रहा है कि भारत जैसा देश कोरोना से कितने बेहतर तरीके से बाहर निकलकर आया। चीन तक नहीं कर पाया। हमारे यहां मास्‍क उतर गया है। भारत को नीचे गिराने की साजिश चल रही है। दिक्‍कत यह है कि भारत सुपरपॉवर हो गया तो हमारी राजनीति कैसे होगी। यहां लोग कहते हैं कि मुसलमान खतरे में हैं, कौनसी योजना है, जिसका लाभ मुसलमानों को नहीं मिला। शौचालय नहीं मिला, बैंक अकाउंट नहीं खुला, आपके अकाउंट में पैसा नहीं आया या आयुष्‍मान का कार्ड नहीं बन रहा है। क्‍या इस देश में हुआ जो मुसलमान को नहीं मिला। हम जैसे लोग जब यह कहते हैं कि 'सर तन से जुदा' जैसा नारा गलत है, ऐसा कहने वालों को जेल में डालो तो हमें एंटी मुस्‍लिम कहा जाता है। तो क्‍या मुसलमानों को सर तन से जुदा करने की इजाजत मिलनी चाहिए। एक साइकोलॉजी वॉर चल रहा है, जो देश के विरोध में है

सवाल : यह युद्ध कैसे खत्‍म होगा, क्‍या सरकार के पास इसका कोई समाधान है?   
जवाब : इसे लड़ते रहना होगा। इसका अभी अंत नहीं होगा। क्‍योंकि दूसरी तरफ कुछ लोग सिस्‍टम में बैठे हुए हैं। ये लोग इतने साल से राज किया ये बार-बार लौटेंगे, इसलिए उनसे लड़ते रहना है, हमें समझना होगा कि देश हित में क्‍या है। उनके नरेटिव को उजागर करना, यह करते रहना होगा। वैसे ये लोग इस युद्ध में हार भी रहे हैं, अगर जीत रहे होते तो देश नीचे की ओर जा रहा होता, लेकिन देश आगे बढ़ रहा है।

सवाल : आज पत्रकारिता भी दो खेमो में बंट गई है, एक सरकार के साथ और दूसरी सरकार के खिलाफ। पहले की तरह निष्‍पक्ष पत्रकारिता के उदाहरण नजर नहीं आते?
जवाब : देखिए, पहले भी पत्रकारिता इतनी निष्‍पक्ष नहीं थी। तब भी सरकारों, नेताओं और पत्रकारों का गठजोड़ हुआ करता था। लेकिन तब उन लोगों को एक्‍सपोज करने वाले लोग नहीं थे। इसलिए अब उन्‍होंने गोदी मीडिया का सहारा ले लिया। हमारे पास फैक्‍ट हैं, फिगर्स हैं हमारे पास उन्हें चेक कर लीजिए, अगर वो गलत हैं तो बताइए। वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो गोदी मीडिया कहने लगते हैं। मैं तो तीन तरह के खेमे मानता हूं पत्रकारिता में। सरकार के पक्ष में, दूसरा विरोध में और तीसरी देश हित में। हम तो देश हित वाली पत्रकारिता कर रहे हैं।

सवाल : आप जिस तरह की पत्रकारिता करते हैं, उसमे खतरे भी हैं, तो कैसे इसे अंजाम देते हैं?
जवाब : पत्रकारिता इस तनाव के साथ करेंगे तो नहीं हो पाएगा। कोई गोदी मीडिया कहेगा, कोई दलाल कहेगा, कोई भक्‍त कहेगा। भक्‍त तो अच्‍छा शब्‍द है, भगवान तुल्‍य है। चमचा होने से बेहतर है भक्‍त होना। तो जान से मारने की धमकी भी मिलती है, गाली भी मिलती है। डर कर पत्रकारिता नहीं होती। मैंने तो कहा था कि सारे पत्रकार अपनी संपत्‍ति सार्वजनिक कर दें। कौन कितने पैसे कहां से कमा रहा है, किस के पास कितना बड़ा बंगला है कौन सी गाड़ी से चलते हैं, यह सब निकलवा लें सब पता चल जाएगा। वे एक 40 हजार वेतन वाले प्‍यून की नौकरी नहीं बचा पाते हैं, खुद 8 लाख रुपए महीना कमाते हैं और न्‍यूज रूम में बैठकर सामाजिक न्‍याय की बातें करते हैं।

सवाल : राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं। आप राहुल गांधी की के राजनीतिक भविष्‍य और कांग्रेस के अस्‍तित्‍व को कैसे देखते हैं?
जवाब :
अच्‍छी बात है राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर रहे हैं, लेकिन इसका मकसद यही था न कि आप पॉलिटिकली अपनी पार्टी को रिवाइव कर सको। लेकिन चुनाव कहां है हिमाचल और गुजरात में और आप हैं दक्षिण में। यानी पेपर मैथ्‍स का है और पर पढ़ रहे हैं साइंस। कैसे नंबर आएंगे। आप किताब ही गलत पढ़ रहे हैं तो नंबर कैसे आएंगे। दूसरी तरफ एक आदमी है जो 10 मार्च को यूपी के नतीजे आए वो 11 मार्च को गुजरात में मौजूद है। गुजरात चुनाव की घोषणा के ढाई सो दिन पहले वे गुजरात पहुंच गए और अपना काम शुरू कर दिया। उसके नंबर आएंगे या आपके नंबर आएंगे।

सवाल : कांग्रेस रणनीति पर काम नहीं करती?  
जवाब : लोकसभा में 249 सीटें देश के 5 राज्‍यों से आती हैं, बिहार से, यूपी से, महाराष्‍ट्र से तमिलनाडु से और पश्‍चिम बंगाल से। इन पांच राज्‍यों में कांग्रेस की क्‍या रणनीति है। बंगाल में जीरो यूपी में दो, बिहार में कुछ नहीं है, महाराष्‍ट्र में गठबंधन कर के आपने एनसीपी को बड़ा बना दिया। अब अपना कांग्रेस अध्‍यक्ष उन्‍होंने 80 साल के आदमी को बना दिया।

सवाल : क्‍या राहुल गांधी अपनी ही पार्टी में मिस गाइड होते हैं?
जवाब : क्‍यों होते हैं मिस गाइड। क्‍या नरेंद्र मोदी को मिसगाइड करने वाले कम होंगे। हम भी काम करते हैं अपने न्‍यूज प्रोग्राम बनाते हैं, कई लोग आकर कहते हैं कि यह खबर नहीं है, वो होना चाहिए थी, तो हम तो अपने विवेक से काम करते हैं ना।
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