बुधवार, 9 अक्टूबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. What will be the role of Election Commission in the fight over Shiv Sena
Written By Author विकास सिंह
Last Modified: शनिवार, 25 जून 2022 (19:03 IST)

चुनाव आयोग पहुंची महाराष्ट्र की सियासी लड़ाई, चुनाव आयोग कैसे करेगा फैसला, जानिए पूर्व चुनाव आयुक्त ओपी रावत से

चुनाव आयोग पहुंची महाराष्ट्र की सियासी लड़ाई, चुनाव आयोग कैसे करेगा फैसला, जानिए पूर्व चुनाव आयुक्त ओपी रावत से - What will be the role of Election Commission in the fight over Shiv Sena
महाराष्ट्र में सरकार की लड़ाई अब पार्टी पर कब्जे को लेकर आ गई है। बागी एकनाथ शिंदे के गुट ने खुद को असली शिवसेना बताते हुए बाला साहेब ठाकरे के नाम के साथ पार्टी सिंबल पर भी अपना दावा ठोंक दिया है। बागी गुट के विधायक दीपक केसरकर के मुताबिक ‘शिवसेना बालासाहेब’ नया समूह गठित किया गया है।

वहीं दूसरी तरफ शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उद्धव के नेतृत्व वाली शिवसेना को ही असली शिवसेना बताया गया। बैठक में शिवसेना प्रमुख प्रमुख उद्धव ठाकरे को कई अधिकार देते हुए बालसाहेब और शिवसेना का नाम किसी अन्य को इस्तेमाल नहीं करने देने का अधिकार दिया गया। वहीं बैठक में निर्णय लेने के बाद शिवसेना ने चुनाव आयोग को पत्र लिखर बालसाहेब और शिवसेना का नाम किसी को इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं देने को कहा है।
 
ऐसे में अब सरकार से शुरु हुई लड़ाई अब पार्टी शिवसेना पर कब्जे तक आ गई है। ऐसे मामलों में चुनाव आयोग की भूमिका क्या होती है और चुनाव आयोग कैसे फैसला करता है इसको लेकर ‘वेबदुनिया’ ने देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत से खास बातचीत की।
 
पार्टी में टूट पर चुनाव आयोग की भूमिका?- ‘वेबदुनिया’ से बातचीत में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत कहते हैं कि चुनाव आयोग की तब तक कोई भूमिका नहीं होती है जब तक दोनों धड़ों में से कोई चुनाव आयोग के पास जाए और यह दावा करें कि मैं टूट कर अलग हुआ है और मेरी ही पार्टी असली पार्टी है पार्टी का सिंबल मुझे दिया जाए। ऐसे में जब चुनाव आयोग की ओऱ से मान्यता प्राप्त पार्टी में किसी भी प्रकार की टूट होती है या पार्टी को लेकर कोई गुट दावा करता है तब किसी एक गुट के चुनाव आयोग के पास पहुंचने के बाद चुनाव आयोग चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) नियम 1968 के तहत सुनवाई करता है। 
 
चुनाव आयोग कब करता है सुनवाई?-पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत कहते हैं कि जब किसी पार्टी में टूट या विभाजन होता है या कोई गुट पार्टी पर अपना दावा करता है तो पार्टी पर दावा करने वाला धड़ा प्रमाण के साथ चुनाव आयोग को अपनी पिटीशन देता है।
एक धड़े से प्राप्त पिटीशन और प्रमाण को देखने के बाद चुनाव आयोग पार्टी के दूसरे धड़े को इसकी सूचना देने के साथ कहता हैं कि सिंबल को लेकर यह दावा आया है और दूसरे गुट को पार्टी पर अपे दावे के समर्थन में अपने प्रमाण और सूबुत चुनाव आयोग के पास जमा करने को कहता है। इसके बाद चुनाव आयोग दोनों पक्षों को सुनता है और फैसला करता है।    
पार्टी और सिंबल पर कैसे होता है फैसला?- पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत कहते हैं चुनाव आयोग फैसला करने में दो-तीन मुख्य बातों का ध्यान रखता है। पहला कि किसके चुने हुए प्रतिनिधि ज्यादा है यानि लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा में चुने हुए प्रतिनिधियों की कुल संख्या किसके पक्ष में ज्यादा है।

इसके बाद दूसरा प्रमुख पार्टी पदाधिकारियों की संख्या जिसमें जिलों के पार्टी अध्यक्ष की संख्या और कार्यकारिणी के मेंबर आदि की संख्या किस गुट के पक्ष में ज्यादा है। इसके साथ पार्टी के संविधान और पार्टी से जुड़े अन्य दस्तावेज आदि तथ्यों के आधार पर चुनाव आयोग निर्णय करता है कि असली पार्टी कौन है और किसको पार्टी का सिंबल मिलेगा। 
पार्टी में विभाजन होने पर चुनाव आयोग की भूमिका?- जब किसी पार्टी में टूट होती है और उसके पार्टी पार्टी सिंबल पर कोई गुट दावा करता है तो विधानसभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के ऑर्डर ( अलग गुट को मान्यता या सदस्यता डिसक्वालीफाई से जुड़ा) मुख्य हो जाता है। ऐसे में चुनाव आयोग में सुनवाई के दौरान विधानसभा की सदस्यता के सर्टिफिकेट के साथ-साथ दूसरा पक्ष विधायकों की सदस्यता शून्य होने की बात को चुनाव आयोग के समक्ष सुनवाई के दौरान रख सकता है।
 
ये भी पढ़ें
हिमालय क्षेत्र में मिला दुर्लभ मांसाहारी पौधा, उत्तराखंड वन विभाग की पहली खोज