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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 17 जुलाई 2021 (17:27 IST)

राहुल गांधी के 'RSS में चले जाओ' के बयान का क्या है सिंधिया कनेक्शन?

राहुल गांधी केे अंतर्विरोध के चलते कांग्रेस को हो रहा नुकसान : रशीद किदवई

राहुल गांधी के 'RSS में चले जाओ' के बयान का क्या है सिंधिया कनेक्शन? - What is the Scindia connection to Rahul Gandhi's 'Go to RSS' statement?
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का कांग्रेस से RSS की विचारधारा वाले नेताओं के बाहर जाने के फरमान के बाद सियासत गरम हो गई है। राहुल गांधी ने जिस तरह अपनी ही पार्टी के नेताओं को भाजपा से डरने वाला और आरएसएस समर्थक करार दिया है उससेे कांग्रेस के अंदर भी सियासी बवाल खड़ा हो गया है।
 
पार्टी के बड़े नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने ट्वीट कर लिखा कि “राहुल जी की इस “बात” में पूरा दम है कि कांग्रेस में भी “RSS” के लोग हैं, लेकिन समय रहते हुए इन्हें बाहर का रास्ता “कौन” दिखाएगा,ये बड़ा सवाल है”। आचार्य प्रमोद कृष्णम के सवाल के साथ यह सवाल फिर उठ खड़ा हो गया है कि कांग्रेस में आज अऩिर्णय़ वाली स्थिति मेेें पहुंच गई है। वहीं पंजाब में मचे सियासी घमासान और सिंधिया के मोदी सरकार में मंत्री बनने के बाद राहुल गांधी केेे इस बयान के कई ऩिहितार्थ निकाले जा रहे है। 
 
कांग्रेस में मची कलह और राहुल गांधी के बयान को लेकर वेबदुनिया ने कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति को पिछले चार दशक से अधिक लंबे समय से बहुत करीब से देखऩे वाले और कांग्रेस मुख्यालय की सियासत पर चर्चित किताब 24,Akbar Road  लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई से खास बातचीत की।

“वेबदुनिया” से बातचीत में रशीद किदवई कहते हैं कि राहुल गांधी के बयान में कुछ भी अनुचित ‌या आपत्तिजनक नहीं है। राहुल पार्टी में एक तरह की वैचारिक स्पष्टता चाहते हैं वह कहते है कि जिसको आरएसएस में जाना है वह जाए और जो कांग्रेस की विचारधारा में यकीन रखता है वह रहे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में वैचारिक लड़ाई में एक भ्रम सा आ गया है। कांग्रेस ने ही ऐसे कई राजनीतिक दलों से समझौता किया है जैसे महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ और असम में अजमल के‌ साथ गठबंधन जो उसकी विचारधआरा सेे मेेल नहीं खाते। जब गठबंधन की राजनीति में जाते हैं तो विचारधारा थोड़ा पीछे हट जाती है,इसलिए राहुल गांधी का यह कहना लोगों को व्यवहारिक नहीं लग रहा है। 
 
रशीद किदवई आगे कहते हैं कि पहले भी राहुल गांधी की यह समस्या रही है, जैसे अब सिंधिया के मोदी सरकार में मंत्री बनाने के बाद यह सब बातें कही जा रही हैं, उससे पहले राहुल को क्या किसी चीज का इंतजार था? क्या उन्हें लगता था कि सिंधिया वापस आ जाएंगे? पारिवारिक और व्यक्तिगत मित्रता को ध्यान में रखते हुए उन्होंने पिछले सवा साल में सिंधिया के खिलाफ कोई कटु शब्द नहीं कहा था। 
राहुल गांधी की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह पार्टी का कार्यकर्ता जो सोच रहा है और उनकी पार्टी जो सोच रही है, उसके साथ तालमेल नहीं कर पा रहे है। राहुल कहते हैं कि कांग्रेस में आम कार्यकर्ता की तरह रहेंगे,अध्यक्ष नहीं बनेंगे। लेकिन फैसले लेने में चाहे पंजाब में सिद्धू का मामला हो या कोई अन्य वह अलग भूमिका में आते है और यहीं अंतर्विरोध कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रहा है। सोनिया गांधी कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष हैं और अब 2 साल का लंबा समय हो रहा है किसी राजनीतिक दल में शीर्ष स्तर पर इस तरह के निर्णय अच्छा संकेत नहीं देता है।
 
रशीद किदवई कहते हैं कि राहुल ने जो बातें कहीं है उसमें कुछ भी गलत नहीं है लेकिन यह बातें तब कही जाती है जब आप मजबूत हो। आज कांग्रेस का चुनावों में प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। कांग्रेस केरल में चुनाव नहीं जीत पाई, असम में उसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा है,बंगाल में जो उसकी बची कुची‌ जमीन थी वह भी निकल गई। ऐसे हालातों में ऐसे बयानों का कोई महत्व नहीं होता है जो होना चाहिए और राहुल गांधी को देर सबेर यह सब बातें भी समझ में आएंगी, केवल बयान देने से कोई मनोबल नहीं बढ़ेगा।

राहुल गांधी को अगर भाजपा और आरएसएस से ही आपत्ति है तो कांग्रेस ‌में कृष्णा तीरथ जैसे कई ऐसे नाम है जो भाजपा में चले गए थे और फिर राहुल गांधी ने खुले दिल से उनको कांग्रस में स्वीकार किया है। अगर भाजपा का कोई नेता आज कांग्रेस ज्वाइन करना चाहे तो क्या राहुल गांधी उसको मना कर देंगे? क्या राहुल गांधी कह पाएंगे कि वह भाजपा के किसी नेता को कांग्रेस में नहीं लेंगे। महाराष्ट्र के जो अभी प्रदेश अध्यक्ष है नाना पटोले वह भाजपा के सांसद रह चुके हैं। कांग्रेस ने न उनको लिया बल्कि महाराष्ट्र जैसे राज्य का अध्यक्ष भी बनाया। आज की सियासत में हृदय परिवर्तन तो होता ही है और राजनीतिक दल पार्टी बदलते रहते गठबंधन की बात है।