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Last Modified: बुधवार, 12 जनवरी 2022 (19:35 IST)

सावधान! 'वैक्सीन राष्ट्रवाद' दे सकता है Corona के नए स्वरूपों को जन्म

सावधान! 'वैक्सीन राष्ट्रवाद' दे सकता है Corona के नए स्वरूपों को जन्म - 'Vaccine nationalism' can give birth to new forms of Corona variant
कोच्चि। विकसित देशों द्वारा कोरोनावायरस (Coronavirus) के टीकों के उत्पादन पर एकाधिकार करने और उन्हें 'टीका राष्ट्रवाद' के रूप में वर्णित करने के प्रयास महामारी के खिलाफ लड़ाई को कमजोर कर सकते हैं और टीका-रोधी नए वायरस स्वरूप को जन्म दे सकते हैं। एक प्रमुख चिकित्सा विशेषज्ञ ने इस तरह की चेतावनी दी है।
 
यह ओमिक्रोन के व्यापक प्रसार और फ्रांस में कोविड-19 के एक नये स्वरूप का पता चलने के मद्देनजर काफी महत्व रखता है। फ्रांस में पाए गए नए स्वरूप को अस्थायी रूप से 'आईएचयू' नाम दिया गया है।
 
राजधानी स्थित वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज और सफदरजंग अस्पताल के प्रो. (डॉ.) यतीश अग्रवाल के अनुसार संकीर्ण और आत्म-केंद्रित व्यवहार न केवल महामारी विज्ञान की दृष्टि से खुद से पराजय को गले लगाने वाला और चिकित्सकीय रूप से प्रतिगामी होगा, बल्कि असुरक्षित आबादी के बीच और आसपास संक्रमण को जारी रखकर इस महामारी को लम्बा खींचेगा।
 
मनोरमा ईयरबुक-2022 में प्रकाशित एक लेख में प्रो. अग्रवाल ने लिखा है कि अगर दुनिया की अधिकांश आबादी बगैर टीकाकरण के रह जाती है तो कोविड-19 बीमारी से होने वाली मौतों का कहर जारी रहेगा।
 
टीकों के समान वितरण और पूरी दुनिया में लोगों के टीकाकरण की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि टीके के वितरण का राजनीतिकरण वैश्विक लोकतांत्रिक प्रयासों के लिए प्रतिगामी साबित होगा। डॉ. अग्रवाल ने दलील दी कि ऐसी प्रथा 'सभी के लिए स्वास्थ्य' की डब्ल्यूएचओ की घोषणा के मद्देनजर 'एक नैतिक विफलता' साबित होगी। बाजार के दृष्टिकोण से प्रेरित ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ एक ऐसी स्थिति में बदल सकता है जो बहुत ही गलत हो सकता है।
 
डॉ. अग्रवाल ने लिखा है कि ऐसी स्थिति में, वायरस बढ़ने तथा नए उत्परिवर्तन को जन्म देने के लिए बाध्य होते हैं। संभव है, कोरोनवायरस के इन नए स्वरूपों पर टीके का असर न हो, जिससे मानव जाति के लिए नया खतरा पैदा हो सकता है।
राजधानी स्थित गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के डीन डॉ. अग्रवाल का कहना है कि समृद्ध देशों की आर्थिक ताकत और बेहद बेहतर वैज्ञानिक और दवा क्षमताओं के कारण कोरोनोवायरस रोधी टीके की आपूर्ति असमान हुई है, जिसके कारण तीसरी दुनिया के नागरिकों के लिए बहुत कम या न के बराबर विकल्प बचे हैं।
 
डॉ. अग्रवाल का कहना है कि विकसित देशों में लोकतांत्रिक सरकारों की चुनावी राजनीति की मजबूरियां समझ में आती हैं, क्योंकि उन्हें दूसरों के स्वास्थ्य की तुलना में अपने लोगों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की आवश्यकता होती है।
 
हालांकि, इन राष्ट्रों को टीकों के भंडार को साझा करने, पेटेंट सुरक्षा समाप्त करने, टीका उत्पादन के लिए उपयोग की जाने वाली सामग्री पर निर्यात नियंत्रण में ढील देने और गरीब देशों के लिए टीके की लागत को कम करने के लिए एक अच्छा संतुलन बनाना चाहिए।
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